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भारत की पहली पेटेंट बांस चेयर को क्या चीज खास बनाती है?
भारत की पहली पेटेंट बांस चेयर को क्या चीज खास बनाती है?
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गुजरात के वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय के अंकित कुमार ने हाल ही में स्थानीय कामगारों और युवा पीढ़ी को बांस की जरूरत और इससे बनने वाली चीजों के बारे जागरूक करने के लिए बांस की एक कुर्सी का पेटेंट कराया है।
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गुजरात के वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय के अंकित कुमार ने हाल ही में स्थानीय कामगारों और युवा पीढ़ी को बांस की जरूरत और इससे बनने वाली चीजों के बारे जागरूक करने के लिए बांस की एक कुर्सी का पेटेंट कराया है।बम्बूसा दक्षिण गुजरात में पाए जाने वाली बांस की किस्म है, जिससे इस कुर्सी को बनाया गया है। बांस की यह किस्म मजबूत है और फर्नीचर में उपयोग के लिए आदर्श है।अंकित एक इन्टीरिअर डिजाइनर रहे हैं और जिन्हें अपनी पढ़ाई खत्म करने के कुछ साल बाद अपने ही कॉलेज में पढ़ाने का मौका मिला और 2016 से वे असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर पढ़ा रहे हैं। उन्होंने Sputnik भारत से बात करते हुए बताया कि मणिपुर में उन्होंने विश्व बम्बू महोत्सव में भाग लिया था। जहाँ उन्होंने पाया कि बांस से काफी कुछ किया जा सकता है, तब मैंने इस पर काम करना शुरू किया।इसके बाद उन्होंने अपने इंस्टिट्यूट में वर्कशॉप का आयोजन किया, आगे उन्होंने दक्षिण गुजरात में मौजूद बांस की किस्म बम्बूसा को जाना और देखा कि स्थानीय कामगारों ने इसका सही से इस्तेमाल नहीं किया है। तब उन्होंने स्थानीय लोगों और युवा वर्ग को बांस की ओर आकर्षित करने के लिए इस क्षेत्र में काम करना शुरू किया।अंकित ने आगे बताया कि उनका इरादा कुर्सी का व्यवसायीकरण करना नहीं हैं, हालांकि लोगों ने इसे खरीदने के लिए जानकरी मांगी थी। लेकिन मेरा उद्देश्य जागरूकता बढ़ाना और प्रशिक्षण प्रदान करना है। उन्होंने बताया कि मेरे साथ काम कर रहे सभी कारीगर बहुत कुशल हैं, मैंने प्रोडक्ट को डिजाइन किया। मैंने अपनी कामगारों की टीम के साथ मिलकर बांस पर काम करना शुरू किया, जिससे प्रोडक्ट की मांग पैदा की जा सके।अंकित ने अपनी बात में जोड़ते हुए कहा कि बांस की अपार क्षमता का प्रदर्शन करना बहुत महत्वपूर्ण था, जिससे कामगार और उनकी आने वाली पीढ़ियाँ अपनी कला को छोड़कर नौकरियों की तलाश में शहरों की ओर पलायन न करें। इसलिए मैंने आधुनिक डिजाइन का सहारा लेकर रोजमर्रा के उपयोग में आने वाले फर्नीचर बनाने का फैसला किया। मैंने शुरुआत में कुछ छात्रों और चार स्थानीय कारीगरों के साथ टिकाऊ लेकिन आधुनिक डिजाइन बनाना शुरू किया।इस कुर्सी का पैटर्न किसी आम कुर्सी की तरह नहीं है, यह डिजाइनिंग, कामगारों की कुशलता, आर्थिक महत्त्व के साथ-साथ नई युवा पीढ़ी को यह दिखाने का प्रयास है कि बांस से बहुत कुछ किया जा सकता है और नए स्टार्ट अप भी खोले जा सकते हैं। अभी हम कई और नए प्रोडक्टस पर भी काम कर रहे हैं, जिन्हें हम जल्दी ही लेकर आएंगे।
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भारत की पहली पेटेंट बांस चेयर को क्या चीज खास बनाती है?
भारत में बांस एक मूल्यवान संसाधन माना जाता है, देश भर में 60 प्रतिशत से अधिक का उत्पादन उत्तर पूर्व में किया जाता है। इसके अलावा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र,अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और गुजरात राज्य भी हैं, जिनमें बांस उगाया जाता है।
गुजरात के वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय के अंकित कुमार ने हाल ही में स्थानीय कामगारों और युवा पीढ़ी को बांस की जरूरत और इससे बनने वाली चीजों के बारे जागरूक करने के लिए
बांस की एक कुर्सी का पेटेंट कराया है।
बम्बूसा दक्षिण गुजरात में पाए जाने वाली
बांस की किस्म है, जिससे इस कुर्सी को बनाया गया है। बांस की यह किस्म मजबूत है और फर्नीचर में उपयोग के लिए आदर्श है।
अंकित एक इन्टीरिअर डिजाइनर रहे हैं और जिन्हें अपनी पढ़ाई खत्म करने के कुछ साल बाद अपने ही कॉलेज में पढ़ाने का मौका मिला और 2016 से वे
असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर पढ़ा रहे हैं। उन्होंने Sputnik भारत से बात करते हुए बताया कि मणिपुर में उन्होंने विश्व बम्बू महोत्सव में भाग लिया था। जहाँ उन्होंने पाया कि बांस से काफी कुछ किया जा सकता है, तब मैंने इस पर काम करना शुरू किया।
इसके बाद उन्होंने अपने इंस्टिट्यूट में वर्कशॉप का आयोजन किया, आगे उन्होंने दक्षिण गुजरात में मौजूद बांस की किस्म बम्बूसा को जाना और देखा कि स्थानीय कामगारों ने इसका सही से इस्तेमाल नहीं किया है। तब उन्होंने स्थानीय लोगों और युवा वर्ग को बांस की ओर आकर्षित करने के लिए इस क्षेत्र में काम करना शुरू किया।
अंकित कुमार ने बताया, "जब मैंने उन सब के साथ काम करना शुरू किया, तो पाया कि उनकी नई पीढ़ी इस काम को आगे नहीं बढ़ाना चाहती है, क्योंकि उन्हें इसमें आर्थिक लाभ नजर नहीं आ रहा था। फिर मैंने इसके पीछे का कारण जाना और पाया कि वे लोग जो भी चीज बना रहे हैं, वह परंपरागत है और आज के समय में उनका कम इस्तेमाल किया जाता है, और लोगों के बीच उन वस्तुओं की मांग भी बहुत कम है।"
अंकित ने आगे बताया कि उनका इरादा कुर्सी का व्यवसायीकरण करना नहीं हैं, हालांकि लोगों ने इसे खरीदने के लिए जानकरी मांगी थी। लेकिन मेरा उद्देश्य जागरूकता बढ़ाना और प्रशिक्षण प्रदान करना है। उन्होंने बताया कि मेरे साथ काम कर रहे सभी कारीगर बहुत कुशल हैं, मैंने प्रोडक्ट को डिजाइन किया। मैंने अपनी कामगारों की टीम के साथ मिलकर बांस पर काम करना शुरू किया, जिससे प्रोडक्ट की मांग पैदा की जा सके।
अंकित कुमार ने बताया, "इसके बाद हमने अलग-अलग डिजाइन बनाए, फिर हमने पाया कि हम जो माल इस्तेमाल कर रहे हैं, वह बहुत मजबूत है। और विभिन्न प्रयोगों से गुजारने के बाद हमने सबसे सिम्पल कुर्सी को डिजाइन किया, जिसके बाद हमने इसे पेटेंट भी करा लिया, जिससे लोग इसके बारे में जान सकें।"
अंकित ने अपनी बात में जोड़ते हुए कहा कि बांस की अपार क्षमता का प्रदर्शन करना बहुत महत्वपूर्ण था, जिससे कामगार और उनकी आने वाली पीढ़ियाँ अपनी कला को छोड़कर नौकरियों की तलाश में शहरों की ओर पलायन न करें। इसलिए मैंने आधुनिक डिजाइन का सहारा लेकर रोजमर्रा के उपयोग में आने वाले फर्नीचर बनाने का फैसला किया। मैंने शुरुआत में कुछ छात्रों और चार स्थानीय कारीगरों के साथ टिकाऊ लेकिन आधुनिक डिजाइन बनाना शुरू किया।
उन्होंने कहा, "मैंने बम्बूसा को चुना, क्योंकि इसकी भार वहन करने की क्षमता बहुत अच्छी है। यह लंबे समय तक चलने वाला और काफी मजबूत है। इसके अलावा, यह प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। मैंने इस प्रोजेक्ट पर अपनी जेब से खर्च किया। कुर्सी मजबूत है। यह भारत में पेटेंट होने वाली पहली बांस की कुर्सी है।"
इस कुर्सी का पैटर्न किसी आम कुर्सी की तरह नहीं है, यह डिजाइनिंग, कामगारों की कुशलता, आर्थिक महत्त्व के साथ-साथ नई युवा पीढ़ी को यह दिखाने का प्रयास है कि बांस से बहुत कुछ किया जा सकता है और नए स्टार्ट अप भी खोले जा सकते हैं। अभी हम कई और नए प्रोडक्टस पर भी काम कर रहे हैं, जिन्हें हम जल्दी ही लेकर आएंगे।