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चाबहार समझौते पर किसी का दबाव नहीं मानेगा भारत
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भारत ने अमेरिका को साफ संदेश दे दिया है कि चाबहार बंदरगाह को विकसित करने के लिए ईरान के साथ समझौता जारी रहेगा।
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भारत ने अमेरिका को साफ संदेश दे दिया है कि चाबहार बंदरगाह को विकसित करने के लिए ईरान के साथ समझौता जारी रहेगा। भारत ने अमेरिका को ऐसा सख्त संदेश पहली बार नहीं दिया है। 2018 में रूस के साथ हुए रक्षा सौदे पर भी ऐसा ही सख्त संदेश दिया गया था। भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि किसी को इस समझौते के बारे में संकीर्ण सोच नहीं रखना चाहिए। जयशंकर का यह बयान अमेरिका के उस बयान के जवाब में था जिसमें उसने छिपे शब्दों में भारत पर प्रतिबंधों की धमकी दी थी।भारत ने 13 मई को ईरान के साथ चाबहार बंदरगाह को विकसित करने के लिए 10 साल का समझौता किया है। इस समझौते के बाद भारत चाबहार बंदरगाह में निवेश करेगा। इसके बदले में भारत को अगले दस साल के लिए इस बंदरगाह का उपयोग करने का अधिकार होगा। इस बंदरगाह के ज़रिए भारत अफग़ानिस्तान के साथ-साथ उज़्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान जैसे देशों तक अपना माल पहुंचा पाएगा। साथ ही इस बंदरगाह से भारत को सेंट्रल एशिया, मध्य एशिया, रूस और यूरोप तक सीधे माल ले जाने में आसानी होगी।समझौते का अंतरराष्ट्रीय रणनीति पर असरइस समझौते से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हलचल है। यह समझौता भारत और ईरान के बीच मज़बूत होते संबंधों का प्रतीक है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अमेरिकी-नेतृत्व वाले गुट के लिए ईरान बड़ा दुश्मन है। अमेरिका ने ईरान और रूस को अलग-थलग करने के लिए 2017 में THE COUNTERING AMERICA'S THROUGH SANCTIONS ACT यानि CAATSA को पारित किया था। ईरान और अमेरिका के बीच दुश्मनी 4 दशक से ज्यादा पुरानी है। पिछले साल 7 अक्टूबर को शुरू हुए हमास-इज़राइल संघर्ष में ईरान ने खुलकर इज़राइल और अमेरिका का विरोध किया। अमेरिका ईरान पर हूती विद्रोहियों की सहायता करने का भी आरोप लगाता है जो इज़राइल से संबंध रखने वाले जहाज़ों पर हमले कर रहे हैं। 13 अप्रैल को ईरान के इज़राइल पर हमले के बाद तो दोनों देश लगभग आमने-सामने आ गए थे। ऐसे में भारत और ईरान के बीच रणनैतिक संबंधों की मज़बूती अमेरिका को बहुत ज्यादा परेशान कर रही है।लेकिन भारत ने अमेरिका की इस धमकी को गंभीरता से नहीं लिया है। भारत अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में अपनी एक अलग पहचान बना रहा है जो किसी के दबाव में आने के लिए तैयार नहीं है। उसे यह भी पता है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका के लिए भारत से दोस्ती बनाए रखना ज़रूरी है। भारत ने 2018 में भी रूस के साथ हुए रक्षा समझौतो पर अमेरिकी दबाव को मानने से इंकार कर दिया था। हालांकि अमेरिका ने भारत को इस समझौते से रोकने के लिए दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्रियों की बातचीत को स्थगित करने तक की धमकी दी थी। भारत ने रूस के साथ उस समय न केवल S-400 एयर डिफेंस सिस्टम का सौदा किया बल्कि AK-203 के भारत में उत्पादन और चार फ्रिगेट्स के निर्माण के लिए भी समझौता किया था। भारत का अमेरिका को साफ़ संदेश है - अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मामले में वह किसी भी देश की दखलअंदाज़ी बर्दाश्त नहीं करेगा।
https://hindi.sputniknews.in/20240514/us-threatens-sanctions-after-port-deal-between-india-and-iran-7360525.html
https://hindi.sputniknews.in/20240115/bharat-iran-ke-beech-chaabahaar-bandargaah-pr-sahyog-dhaanchaa-sthaapit-krne-ke-liye-baatchit-6215732.html
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caatsa act, भारत-अमेरिका संबंध,चाबहार बंदरगाह, अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति, हमास-इज़रायल संघर्ष, भारतीय विदेशमंत्री
caatsa act, भारत-अमेरिका संबंध,चाबहार बंदरगाह, अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति, हमास-इज़रायल संघर्ष, भारतीय विदेशमंत्री
चाबहार समझौते पर किसी का दबाव नहीं मानेगा भारत
15:32 16.05.2024 (अपडेटेड: 15:33 16.05.2024) भारत ने अमेरिका को साफ संदेश दे दिया है कि चाबहार बंदरगाह को विकसित करने के लिए ईरान के साथ समझौता जारी रहेगा। भारत ने अमेरिका को ऐसा सख्त संदेश पहली बार नहीं दिया है। 2018 में रूस के साथ हुए रक्षा सौदे पर भी ऐसा ही सख्त संदेश दिया गया था।
भारत ने अमेरिका को साफ संदेश दे दिया है कि चाबहार बंदरगाह को विकसित करने के लिए ईरान के साथ समझौता जारी रहेगा। भारत ने अमेरिका को ऐसा सख्त संदेश पहली बार नहीं दिया है। 2018 में रूस के साथ हुए रक्षा सौदे पर भी ऐसा ही सख्त संदेश दिया गया था। भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि किसी को इस समझौते के बारे में संकीर्ण सोच नहीं रखना चाहिए। जयशंकर का यह बयान अमेरिका के उस बयान के जवाब में था जिसमें उसने छिपे शब्दों में भारत पर प्रतिबंधों की धमकी दी थी।
भारत ने 13 मई को ईरान के साथ चाबहार बंदरगाह को विकसित करने के लिए
10 साल का समझौता किया है। इस समझौते के बाद भारत चाबहार बंदरगाह में निवेश करेगा। इसके बदले में भारत को अगले दस साल के लिए इस बंदरगाह का उपयोग करने का अधिकार होगा। इस बंदरगाह के ज़रिए भारत अफग़ानिस्तान के साथ-साथ उज़्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान जैसे देशों तक अपना माल पहुंचा पाएगा। साथ ही इस बंदरगाह से भारत को सेंट्रल एशिया, मध्य एशिया, रूस और यूरोप तक सीधे माल ले जाने में आसानी होगी।
समझौते का अंतरराष्ट्रीय रणनीति पर असर
इस समझौते से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हलचल है। यह समझौता भारत और ईरान के बीच मज़बूत होते संबंधों का प्रतीक है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अमेरिकी-नेतृत्व वाले गुट के लिए ईरान बड़ा दुश्मन है। अमेरिका ने ईरान और रूस को अलग-थलग करने के लिए 2017 में THE COUNTERING AMERICA'S THROUGH SANCTIONS ACT यानि CAATSA को पारित किया था। ईरान और अमेरिका के बीच दुश्मनी 4 दशक से ज्यादा पुरानी है। पिछले साल 7 अक्टूबर को शुरू हुए हमास-इज़राइल संघर्ष में ईरान ने खुलकर इज़राइल और अमेरिका का विरोध किया। अमेरिका ईरान पर
हूती विद्रोहियों की सहायता करने का भी आरोप लगाता है जो इज़राइल से संबंध रखने वाले जहाज़ों पर हमले कर रहे हैं। 13 अप्रैल को ईरान के इज़राइल पर हमले के बाद तो दोनों देश लगभग आमने-सामने आ गए थे। ऐसे में भारत और ईरान के बीच रणनैतिक संबंधों की मज़बूती अमेरिका को बहुत ज्यादा परेशान कर रही है।
लेकिन भारत ने अमेरिका की इस धमकी को गंभीरता से नहीं लिया है। भारत अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में अपनी एक अलग पहचान बना रहा है जो किसी के दबाव में आने के लिए तैयार नहीं है। उसे यह भी पता है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका के लिए भारत से दोस्ती बनाए रखना ज़रूरी है। भारत ने 2018 में भी रूस के साथ हुए रक्षा समझौतो पर अमेरिकी दबाव को मानने से इंकार कर दिया था। हालांकि अमेरिका ने भारत को इस समझौते से रोकने के लिए दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्रियों की बातचीत को स्थगित करने तक की धमकी दी थी। भारत ने रूस के साथ उस समय न केवल S-400 एयर डिफेंस सिस्टम का सौदा किया बल्कि AK-203 के भारत में उत्पादन और चार फ्रिगेट्स के निर्माण के लिए भी समझौता किया था। भारत का अमेरिका को साफ़ संदेश है - अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मामले में वह किसी भी देश की दखलअंदाज़ी बर्दाश्त नहीं करेगा।