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कज़ान में मोदी और शी की मुलाकात के बाद दोनों पक्षों में नरमी: विशेषज्ञ
कज़ान में मोदी और शी की मुलाकात के बाद दोनों पक्षों में नरमी: विशेषज्ञ
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भारत और चीन की सेनाओं के बीच मई 2020 में पूर्वी लद्दाख के कई हिस्सों में आमने सामने थी और 15 जून 2020 को गलवान में एक खूनी मुठभेड़ हुई।
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भारत और चीन के बीच लद्दाख क्षेत्र में सीमा से दोनों सेनाओं की वापसी को लेकर सफल वार्ता और रूस के कज़ान में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान भारतीय पीएम मोदी और उनके चीनी समकक्ष शी जिनपिंग के बीच हुई मुलाकात ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है।रूसी कज़ान में मोदी और शी के बीच पांच वर्षों में पहली द्विपक्षीय वार्ता के बाद दोनों देशों की सेनाओं के लद्दाख के डेमचौक और डेपसांग से पीछे हटने की शुरुआत को लेकर चीन की विदेश एवं सुरक्षा नीतियों के जानकार और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर श्रीकांत कोंडापल्ली ने Sputnik India को बताया कि दोनों देशों के बीच कुछ प्रगति हुई है, और इस बात पर बारीकी से नज़र रखने की ज़रूरत है कि चीज़ें कैसे विकसित होती हैं क्योंकि भारतीय और चीनी दोनों पक्षों ने अपनी स्थिति घोषित कर दी है।प्रोफेसर ने बताया कि "हमें इंतजार करना चाहिए और देखना चाहिए कि पीछे हटने की प्रक्रिया के लिए इसका क्या मतलब है। रिपोर्ट बताती है कि चीनी सैनिक कुछ हद तक पीछे हट सकते हैं, और भारतीय पक्ष भी कुछ हद तक सैनिकों को वापस ले जाएगा।"Sputnik India ने भारत में स्थित एक स्वतंत्र थिंक-टैंक सोसाइटी फॉर पॉलिसी स्टडीज (एसपीएस) के निदेशक कमोडोर (सेवानिवृत्त) उदय भास्कर से जानने की कोशिश की कि दोनों देशों के बीच इस गतिरोध के समाधान के बाद दक्षिण एशिया पर क्या प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने बताया कि जून 2020 की गलवान घटना के बाद से भारत-चीन के बीच तनावपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों में नरमी आई है। पीएम मोदी ने बातचीत की बहाली का स्वागत करते हुए दोहराया कि सीमा पर शांति और स्थिरता को 'प्राथमिकता' दी जानी चाहिए, जबकि राष्ट्रपति शी ने दोनों देशों से संवाद और सहयोग बढ़ाने का आह्वान किया।कमोडोर उदय भास्कर ने कज़ान में मोदी-शी की बैठक का स्वागत करते हुए कहा, "बातचीत के माध्यम से कुछ हद तक सुलह की संभावना तलाशी जानी चाहिए और उच्च हिमालय में सैन्य स्थिति को लेकर तनावपूर्ण स्थिति में नहीं पड़ना चाहिए। [...] मौजूदा शत्रुता और मतभेद को कम करने के लिए विभिन्न स्तरों पर काम करना होगा।"
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भारत और चीन, लद्दाख सीमा से दोनों सेनाओं के पीछे हटने, रूस के कजान में आयोजित, ब्रिक्स शिखर सम्मेलन, पीएम मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात, पूर्वी लद्दाख के डेमचौक और डेपसांग, भारतीय और चीनी सैनिक, प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग की मुलाकात, कज़ान में द्विपक्षीय वार्ता
भारत और चीन, लद्दाख सीमा से दोनों सेनाओं के पीछे हटने, रूस के कजान में आयोजित, ब्रिक्स शिखर सम्मेलन, पीएम मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात, पूर्वी लद्दाख के डेमचौक और डेपसांग, भारतीय और चीनी सैनिक, प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग की मुलाकात, कज़ान में द्विपक्षीय वार्ता
कज़ान में मोदी और शी की मुलाकात के बाद दोनों पक्षों में नरमी: विशेषज्ञ
भारत और चीन की सेनाएं मई 2020 में पूर्वी लद्दाख के कई हिस्सों में आमने-सामने थीं और 15 जून 2020 को गलवान में खूनी मुठभेड़ भी हुई थी। तब से इलाके में दोनों पक्षों के 50-50 हजार सैनिक टैंकों और बख्तरबंद वाहनों के साथ आमने-सामने डटे हुए थे।
भारत और चीन के बीच लद्दाख क्षेत्र में सीमा से दोनों सेनाओं की वापसी को लेकर सफल वार्ता और रूस के कज़ान में आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान भारतीय पीएम मोदी और उनके चीनी समकक्ष शी जिनपिंग के बीच हुई मुलाकात ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है।
भारत में पूर्वी लद्दाख के डेमचौक और डेपसांग मैदानों में चार साल से आमने-सामने डटे भारतीय और चीनी सैनिक अब पीछे हटने लगे हैं। सेना के वरिष्ठ सूत्रों के अनुसार, डेमचौक के चार्डिंग नाला जंक्शन और डेपसांग में वाई जंक्शन के पास दोनों पक्षों के सैनिक पीछे हट रहे हैं। इस क्षेत्र में मई 2020 के बाद स्थापित टेंट, बंकर और अस्थायी ठिकानों को हटाया जा रहा है।
रूसी कज़ान में मोदी और शी के बीच पांच वर्षों में पहली द्विपक्षीय वार्ता के बाद दोनों देशों की सेनाओं के लद्दाख के डेमचौक और डेपसांग से पीछे हटने की शुरुआत को लेकर चीन की विदेश एवं सुरक्षा नीतियों के जानकार और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर श्रीकांत कोंडापल्ली ने Sputnik India को बताया कि दोनों देशों के बीच कुछ प्रगति हुई है, और इस बात पर बारीकी से नज़र रखने की ज़रूरत है कि चीज़ें कैसे विकसित होती हैं क्योंकि भारतीय और चीनी दोनों पक्षों ने अपनी स्थिति घोषित कर दी है।
श्रीकांत कोन्डापल्ली ने कहा, "भारतीय पक्ष ने कहा है कि सभी क्षेत्रों में गश्त के अधिकार बहाल किए जाने चाहिए, क्योंकि उन्हें पहले इन क्षेत्रों में गश्त करने का अधिकार था, इसलिए हमें प्रगति का पूर्वानुमान लगाने की ज़रूरत है। अगले चार से पाँच दिनों में, भारतीय गश्ती दल संभवतः उन क्षेत्रों में वापस आ जाएंगे जहाँ वे दशकों से गश्त करते आ रहे हैं, ऐसी उम्मीदें की जा रही हैं।"
प्रोफेसर ने बताया कि "हमें इंतजार करना चाहिए और देखना चाहिए कि पीछे हटने की प्रक्रिया के लिए इसका क्या मतलब है। रिपोर्ट बताती है कि चीनी सैनिक कुछ हद तक पीछे हट सकते हैं, और भारतीय पक्ष भी कुछ हद तक सैनिकों को वापस ले जाएगा।"
Sputnik India ने भारत में स्थित एक स्वतंत्र थिंक-टैंक सोसाइटी फॉर पॉलिसी स्टडीज (एसपीएस) के निदेशक कमोडोर (सेवानिवृत्त)
उदय भास्कर से जानने की कोशिश की कि दोनों देशों के बीच इस गतिरोध के समाधान के बाद दक्षिण एशिया पर क्या प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने बताया कि जून 2020 की गलवान घटना के बाद से
भारत-चीन के बीच तनावपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों में नरमी आई है। पीएम मोदी ने बातचीत की बहाली का स्वागत करते हुए दोहराया कि सीमा पर शांति और स्थिरता को 'प्राथमिकता' दी जानी चाहिए, जबकि राष्ट्रपति शी ने दोनों देशों से संवाद और सहयोग बढ़ाने का आह्वान किया।
कमोडोर (सेवानिवृत्त) उदय भास्कर ने कहा, "ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच उच्च स्तरीय वार्ता के फिर से शुरू होने से दोनों देशों के बीच संबंधों में नरमी आई है।"
कमोडोर उदय भास्कर ने
कज़ान में मोदी-शी की बैठक का स्वागत करते हुए कहा, "बातचीत के माध्यम से कुछ हद तक सुलह की संभावना तलाशी जानी चाहिए और उच्च हिमालय में सैन्य स्थिति को लेकर तनावपूर्ण स्थिति में नहीं पड़ना चाहिए। [...] मौजूदा शत्रुता और मतभेद को कम करने के लिए विभिन्न स्तरों पर काम करना होगा।"