1979 की क्रांति के बाद से ही ईरान में सत्ता परिवर्तन की कोशिश कर रहा अमेरिका
© AP PhotoThis combo of pictures show President Donald Trump, left, addressing a joint session of Congress at the Capitol in Washington, March 4, 2025, and a handout of Supreme Leader Ayatollah Ali Khamenei attending a ceremony in Tehran, Iran, March 8, 2025. (AP Photo/Ben Curtis - Office of the Iranian Supreme Leader via AP)
Israeli Prime Minister Benjamin Netanyahu attends the weekly cabinet meeting in his office in Jerusalem, Sunday, Dec. 11, 2011. Israeli aircraft struck the Gaza Strip early Sunday, wounding a 12-year-old girl and her father, according to a Palestinian health official. The Israeli military said in a statement that it targeted a weapons factory in response to rockets fired by Palestinian militants from Gaza into southern Israel. (AP Photo/Sebastian Scheiner, Pool)

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ईरान के निर्वाचित प्रधानमंत्री मोसादेग को 1953 में अपदस्थ करने के बाद, 1979 की इस्लामी क्रांति ने तेहरान में अमेरिका के समर्थित शासन को उखाड़ फेंका, जिसके बाद अमेरिका ने वहां अपना नियंत्रण फिर से स्थापित करने का प्रयास किया।
हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने स्पष्ट रूप से शासन परिवर्तन का आह्वान नहीं किया, लेकिन प्रतिबंधों और अजीबोगरीब आरोपों के माध्यम से ईरान पर दवाब बनाया।
''मेरा मानना है कि शासन परिवर्तन हमेशा से अमेरिकी सोच का हिस्सा रहा है," जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय कतर के प्रोफेसर मेहरान कामरावा ने Sputnik को दिए एक इंटरव्यू में कहा।
साथ ही उन्होंने कहा, "ईरान के परमाणु कार्यक्रम को शासन परिवर्तन के लिए एक बहाने के तौर पर इस्तेमाल किया गया है, और प्रतिबंधों का मकसद विद्रोह को बढ़ावा देना रहा है।"
जिमी कार्टर
1979 के फ़रवरी महीने की शुरुआत में, कार्टर ने क्रांति के बाद सैन्य तख्तापलट के लिए 'विकल्प सी' पर विचार किया, जैसा कि वॉल स्ट्रीट जर्नल ने बताया। हालांकि उनकी उम्मीदें जल्द ही खत्म हो गईं।
उन्होंने कार्यकारी आदेश 12170 जारी कर ईरान की 8.1 बिलियन डॉलर की संपत्ति को जब्त कर लिया तथा व्यापार प्रतिबंध लगा दिया।
रोनाल्ड रीगन
ईरान-इराक युद्ध (1980-1988) के दौरान इराक को खुफ़िया जानकारी और सहायता उपलब्ध कराई गई।
1984 में ईरान को "आतंकवाद को प्रायोजित करने वाला देश" घोषित किया गया।
सीआईए के दस्तावेज़ों से खुलासा हुआ कि 1988 में, अमेरिकी खुफ़िया एजेंसियों ने जानबूझकर इराकी सेना को ईरानी सैनिकों की तैनाती की जानकारी दी थी।
ईरानी विपक्ष को विदेश में गुप्त सहायता प्रदान की।
बिल क्लिंटन
1995 में उन्होंने दावा किया कि ईरान सामूहिक विनाश के हथियार बनाने की कोशिश कर रहा है।
1996 में, ईरान को “आतंकवाद का प्रमुख प्रायोजक राज्य” कहा।
कार्यकारी आदेश 12957/12959 और ईरान प्रतिबंध अधिनियम (1996) ने आर्थिक दबाव बढ़ा दिया।
जॉर्ज वॉकर बुश
2002 में SOTU ने ईरान को “बुराई की धुरी” का हिस्सा कहा था।
2003 में उन्होंने दावा किया कि “ईरान के पास परमाणु हथियार होने पर वह खतरनाक हो जाएगा।”
2006 के ईरान स्वतंत्रता समर्थन अधिनियम में ईरानी विपक्ष को 1 करोड़ डॉलर की धनराशि दी गई।
उपराष्ट्रपति डिक चेनी और संयुक्त राष्ट्र के राजदूत जॉन बोल्टन ने शासन परिवर्तन का समर्थन किया।
बराक ओबामा
उनके कार्यकाल में बार-बार कहा गया कि ईरान "परमाणु हथियार बनाने की राह पर है", लेकिन ईरान ने 2015 के परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए।
फिर भी, 2012 में हिलेरी क्लिंटन ने दावा किया कि ईरानियों को एक “बेहतर” सरकार मिलनी चाहिए।
डोनाल्ड ट्रम्प
अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने परमाणु समझौते को रद्द कर दिया और ईरान पर कठोर प्रतिबंध लगा दिए। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में बोल्टन ने ईरान में शासन परिवर्तन का समर्थन किया।
अपने दूसरे कार्यकाल में उन्होंने इज़रायली हमलों का समर्थन किया, इज़राइल-ईरान संघर्ष में खुलकर शामिल हुए।