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लेखक कौन है? वैज्ञानिकों ने टेक्स्ट निर्माण में एआई की भूमिका का किया आकलन

CC0 / / Artificial intelligence brain think
Artificial intelligence brain think - Sputnik भारत, 1920, 17.08.2025
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रूस के समारा विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने लेखकत्व निर्धारित करने के लिए एक मॉडल प्रस्तावित किया है जो लेखन प्रक्रिया में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के योगदान को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है।
उनके निष्कर्ष सेमिओटिक स्टडीज पत्रिका में प्रकाशित हुए
शोध कार्यों में एआई के बढ़ते उपयोग के साथ सवाल उठता है: क्या एआई को अकादमिक प्रकाशनों का सह-लेखक माना जा सकता है? समारा राष्ट्रीय अनुसंधान विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसे उदाहरण पहले से हैं, जहाँ एआई को लेखक के रूप में, और कभी-कभी एकमात्र लेखक के रूप में, सूचीबद्ध किया गया है।
विश्वविद्यालय की टीम ने एआई द्वारा लेख निर्माण की प्रक्रिया का अध्ययन किया और Web of Science व Scopus डेटाबेस में ऐसी प्रथाओं की तलाश की। उन्हें चार लेख मिले जिनमें ChatGPT को लेखक बताया गया था, जिनमें से दो में वह अकेला लेखक था। Scopus में उन्हें दो प्रकाशन मिले जिनमें एआई सह-लेखक था, लेकिन एक मामले में संपादक के अनुरोध पर बाद में उसका नाम हटा दिया गया।
शोधकर्ताओं का कहना है कि जनरेटिव एआई के दौर में लेखकत्व की पारंपरिक धारणा पर पुनर्विचार जरूरी है। अब इंसान सिर्फ निर्माता नहीं, बल्कि क्यूरेटर, संपादक और व्याख्याकार की भूमिका भी निभाता है।

समारा विश्वविद्यालय की समाजशास्त्र और सांस्कृतिक अध्ययन विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर नतालिया मास्लेनकोवा ने कहा, “हमने पाया कि ऐसे कार्य स्वभाव से संकर होते हैं। इससे ‘वितरित’ और ‘जटिल’ लेखकत्व के नए मॉडल खुलते हैं, जहाँ एआई रचनात्मक प्रक्रिया में भाग लेता है, लेकिन अंतिम ज़िम्मेदारी शोधकर्ता की होती है।”

शोधकर्ताओं ने अकादमिक लेखन में एआई के इस्तेमाल से जुड़ी नैतिक चुनौतियों पर भी जोर दिया। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर कोई व्यक्ति संपादक या ज़िम्मेदार लेखक की भूमिका निभाए बिना पूरी तरह एआई-जनित सामग्री को अपना बताकर प्रस्तुत करता है, तो यह अकादमिक कदाचार का नया रूप बन सकता है।
मास्लेनकोवा ने आगे कहा, "हमारे निष्कर्ष नैतिक और कानूनी मानकों का आधार बन सकते हैं जो एआई के उपयोग में पारदर्शिता को बढ़ावा देते हैं और दुरुपयोग को रोकने में मदद करते हैं। यह शिक्षा, विज्ञान और मीडिया के क्षेत्र में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जहाँ एआई-जनित सामग्री के लिए जवाबदेही का प्रश्न अत्यंत महत्वपूर्ण है।"
विशेषज्ञों के अनुसार, उनके अध्ययन की खासियत इसका बहु-विषयक दृष्टिकोण है, जिसमें कानूनी विश्लेषण के साथ दार्शनिक और सामाजिक-सांस्कृतिक पहलू भी शामिल हैं। शोधकर्ता मौजूदा एआई प्रथाओं को वितरित और नेटवर्क लेखकत्व के सिद्धांतों से जोड़ते हैं और बताते हैं कि पाठ निर्माण में इंसान और मशीन की भूमिकाएँ कैसे बदल रही हैं।

"एआई एक 'स्टोकेस्टिक तोता' है यानी AI को भाषा की समझ नहीं है, वह केवल सांख्यिकीय पैटर्न के आधार पर मानवीय भाषण की नकल करता है। इसकी 'व्यक्तिपरकता', फिलहाल, एक सामाजिक संरचना है जो डेवलपर्स और उपयोगकर्ताओं के सामूहिक इनपुट को दर्शाती है," मास्लेनकोवा ने कहा।

शोधकर्ताओं के लिए अगली चुनौती शिक्षा और अकादमिक प्रकाशन में जनरेटिव मॉडल के पारदर्शी और जिम्मेदार उपयोग के लिए दिशानिर्देश विकसित करना है, साथ ही यह अध्ययन करना है कि एआई के प्रसार के साथ-साथ विभिन्न सामाजिक समूहों की लेखकत्व की धारणाएं किस प्रकार विकसित होती हैं।
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