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लुटनिक से नवारो तक: अमेरिका की आवाज़ें भारत पर क्यों हमलावर हैं? विशेषज्ञ से जानें

© Getty Images / Chip SomodevillaCommerce Secretary Howard Lutnick speaks during a cabinet meeting with U.S. President Donald Trump in the Cabinet Room of the White House on August 26, 2025 in Washington, DC.
Commerce Secretary Howard Lutnick speaks during a cabinet meeting with U.S. President Donald Trump in the Cabinet Room of the White House on August 26, 2025 in Washington, DC. - Sputnik भारत, 1920, 29.09.2025
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रूसी तेल खरीदने को लेकर अमेरिकी सरकार द्वारा भारतीय निर्यात पर लगाए गए 50 प्रतिशत के बाद नई दिल्ली ने वाशिंगटन के सामने झुकने से इनकार कर दिया था।
50 प्रतिशत टैरिफ के लागू होने के बाद अमेरिका के तरफ से प्रतिदिन भारत के खिलाफ बयान दिए जा रहे हैं। इसी कड़ी में अमेरिका के वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक जैसे अमेरिकी अधिकारी लगातार भारत की आलोचना कर रहे हैं।
NewsNation से बात करते हुए वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ने कि अमेरिका को भारत जैसे देशों को 'ठीक' करना होगा और साथ ही यह जोर दिया कि ऐसी नीतियों को खत्म किया जाए जो अमेरिकी हितों को नुकसान पहुंचा रही हैं।
रूसी तेल खरीदने के लिए भारत पर टैरिफ बढ़ाने की मांग को लेकर सीनेटर लिंडसे ग्राहम, वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक और व्हाइट हाउस के सलाहकार पीटर नवारो सहित अमेरिकी अधिकारियों द्वारा बार-बार किए गए हमलों पर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, ऊर्जा बाजारों और भू-राजनीति के अंतर्संबंध पर केंद्रित एक स्वतंत्र थिंक टैंक ग्लोबल एनर्जी एंड ट्रेड इंस्टीट्यूट (GETI) के वरिष्ठ फेलो डॉ. माइकल हैरिंगटन ने टिप्पणियां की हैं।
डॉ. हैरिंगटन ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अमेरिकी अधिकारी रूसी तेल खरीद के कारण भारत पर टैरिफ लगाने की बात करते हैं, तो वे व्यापक परिदृश्य को नजरअंदाज कर रहे होते हैं।

उन्होंने कहा, "भारत ऊर्जा बाजार को अस्थिर नहीं कर रहा है बल्कि वह इसे पश्चिमी देशों सहित सभी के लिए वहनीय बनाए रखने में मदद कर रहा है। रियायती दर पर कच्चा तेल ख़रीदकर और उसे परिष्कृत करके, भारत यह सुनिश्चित कर रहा है कि वैश्विक तेल की कीमतें नियंत्रण से बाहर न हों। टैरिफ़ लगाकर इसकी सज़ा देने से कीमतें और बढ़ेंगी, और अमेरिकी उपभोक्ता सबसे पहले इसका दर्द महसूस करेंगे।"

ग्लोबल एनर्जी एंड ट्रेड इंस्टीट्यूट (GETI) के वरिष्ठ फेलो कहते हैं कि भारत के साथ टैरिफ़ युद्ध यूक्रेन में संघर्ष को खत्म करने के करीब नहीं लाएगा। यह मास्को के आकलन को नहीं बदलेगा, और न ही यह वाशिंगटन के कूटनीतिक प्रभाव को मजबूत करेगा।

वरिष्ठ फेलो डॉ. माइकल ने कहा, "इससे ऊर्जा बाजारों में दरार पड़ जाएगी, नई दिल्ली को वैकल्पिक व्यापारिक साझेदारों की ओर धकेला जाएगा, और बिल्कुल गलत समय पर एशिया में अमेरिकी प्रभाव कमजोर हो जाएगा। यह कोई रणनीति नहीं है बल्कि यह आत्म-विनाश है।"
अंत में माइकल ने कहा कि ऊर्जा सुरक्षा व्यावहारिकता पर आधारित है, दबाव पर नहीं। भारत के फैसले एक विकासशील अर्थव्यवस्था की ज़रूरतों को दर्शाते हैं जो अपने लोगों को वैश्विक झटकों से बचाने की कोशिश कर रही है।

विशेषज्ञ ने जोर देकर कहा, "अमेरिका द्वारा इसे दंडित करने की कोशिश करने के बजाय, अमेरिका को भारत के साथ मिलकर काम करना चाहिए, उसके खिलाफ नहीं। अन्यथा, वाशिंगटन एक भयावह गलती करने का जोखिम उठाता है: एक ऐसी नीति के नाम पर एक महत्वपूर्ण साझेदार को अलग-थलग करना जो अपने घोषित लक्ष्यों को भी हासिल नहीं करती।"

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