जवाब तो मामूली ही है: अपने बड़े और ज़्यादा शक्तिशील पड़ोसियों से बुरे रिश्तों के कारण।
पाकिस्तान नूक्लीअर क्लब का सदस्य कब बन गया?
28 मई 1998 को पाकिस्तान दुनिया का सातवाँ ऐसा मुल्क बन गया जिसने परमाणु हथियारों का परीक्षण कर चुका है। ऑपरेशन चगाई-1 नामक परीक्षान के दौरान पाँच भूमिगत परमाणु विस्फोटक चलाए गए थे। यह परीक्षण पश्चिमी पाकिस्तान के बलोचिस्तान प्रदेश के पहाड़ी और जनशून्य जिले में किया गया था। कुल पाँच विस्फोटों का उत्पादन टीएनटी के 40 किलोटन के समान निकल। यह हिरोशिमा पर अमरीका द्वारा 1945 में डाले Little Boy नामक बम से दो गुणा से ज़्यादा जोरदार था। Little Boy का उत्पादन 15 किलोटन ही था लेकिन एक नगर नेस्तनाबूद करने के लिए और अधिक से अधिक 146,000 लोगों को मौत के घाट उतारने के लिए वह काफी था।
चगाई-1 परीक्षण के दो दिनों बाद पाकिस्तान ने बलोचिस्तान के रेगिस्तान क्षेत्र में चगाई-2 परीक्षण चलाया। इस बार बम का उत्पादन टीएनटी के 25 किलोटन के समान निकल। पहले परीक्षण के विपरीत, जिस में हथियार-ग्रेड यूरेनियम का इस्तेमाल किया गया, दूसरे बम में हथियार-ग्रेड प्लूटोनियम का इस्तेमाल किया गया। इसके माध्यम से पाकिस्तान ने दिखाया कि उसे दो प्रौद्योगिकियों से हथियार बनाना आता है।
मई 1998 में चलाए गए परीक्षण पाकिस्तान का पहला और आज तक इकलौता परमाणु हथियार का परीक्षण था। वे उस अध्ययन की परिणति थे जो 1972 में शुरू होकर दशकों तक जा रहा था। उस साल इस्लामाबाद ने सख्त गुप्त रूप से अपना परमाणु कार्यक्रम शुरू किया और यह परमाणु अप्रसार संधि लागू होने के दो ही सालों बाद हुआ। मगर माना जाता है कि पकिस्तान ने चगाई-1 और चगाई-2 से एक दशक से ज़्यादा पहले परमाणु हथियार प्राप्त किया था। इसके बारे में नीचे पढ़ें।
पाकिस्तान परमाणु हथियार अपनाना क्यों चाहता था?
पाकिस्तान ने 1971 में हुए बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में अपमानजनक हार के एक ही साल बाद अपना परमाणु कार्यक्रम शुरू किया था। यह युद्ध भारत के पाकिस्तान में दाखिल के समानांतर चल रहा था और अपनी शक्तिशील पड़ोसी से तीन उन युद्धों में से एक था जो 1947 में स्वतंत्रता पाने से तब तक पाकिस्तान ने लड़े और हारे।
पाकिस्तानी आधिकारी, मीडिया और परमाणु क्षेत्र में विश्लेषक कहते रहते थे कि जो परीक्षण पाकिस्तान ने 1998 में किए, वे भारतीय उपमहाद्वीप में “रणनीतिक संतुलन” बहाल करने के लिए किए गए थे। वे भारत के परमाणु परीक्षणों के कई ही हफ्तों बाद किए गए, जो 11 मई से 13 मई तक 1998 में किए गए थे। वे परीक्षण ज़मीन के नीचे किए गए थे और जिनमें दोनों संलयन और विखंडन आधारित बम शामिल थे। वे भारत के 1974 में हुए स्माइलिंग बुद्धा अभियान यानी तथाकथित शांत परमाणु विस्फोट से लेकर परमाणु विस्फोटों के भारत का दूसरा चरण था।
पाकिस्तान के तत्काल प्रधान मंत्री, ज़ुल्फिकर आलो भुट्टो ने, जो मुल्क की परमाणु कार्यक्रम का निर्माता था, भारत के 1974 के परमाणु परीक्षण को “परमाणु भयदोहन” कहा और पाकिस्तानी विशेषज्ञों को परमाणु बम बनाने की आज्ञा दी। पाकिस्तानी अधिकारियों ने सार्वजनिक तौर पर चेताया कि भारत के परमाणु परीक्षण के होने पर पाकिस्तान को अपना ही परमाणु बम बनाना पड़ेगा, इसके बावजूद कि उस समय पाकिस्तान की सालों तक ही अपना बम का विकासन कर रहा था।
हालांकि पाकिस्तान ने 1998 तक अपना पहला परमाणु परीक्षण नहीं किया, सोच जाता है कि वह प्रोद्योगिक तौर पर 1983-1984 में ही अपना परमाणु बम बनाने और इसे चलाने में सक्षम था। इसके अलावा, केंद्रीय खुफिया एजेंसी के अनुसार उसने 7 से लेकर 12 तक परमाणु जुगतें 1990 तक बना दिए।
दोस्तों ने की थोड़ी मदद: बम बनाने में पाकिस्तान को समर्थन कौन दिया?
अपने भारतीय समकक्षों कि तरह, पाकिस्तान डॉ अब्दुल क़दीर खान, पाकिस्तानी परमाणु बम के सम्मानित पिता जैसे अपने ही विशेषज्ञों पर भरोसा कर सकता था कि वे परमाणु बम पर काम का सबसे मुश्किल भाग कर सकते हैं। मगर भारत के विपरीत, शीत युद्ध के समय पाकिस्तान की भू-राजनीतिक स्थिति की विशेषताओं के कारण पाकिस्तान के बहुत से समर्थक थे जो उसे परमाणु बम बनाने में मदद दे सकते थे।
माना जाता है कि पाकिस्तान ने अपने परमाणु कार्यक्रम के लिए कथित तौर पर सऊदी अरब और लीबिया समेत मुसलमान भागीदार राज्यों से करोड़ों डॉलर प्राप्त किया था। भारतीय अधिकारियों और विशेषज्ञों यह कयास भी लगाई कि चीन ने पाकिस्तान को अत्यधिक समृद्ध यूरेनियम सहित परमाणु बम के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी प्रदान किया। एह भी माना जाता है कि चीन ने उत्तर-केन्द्रीय पाकिस्तान के खुशब में प्लूटोनियम उत्पादक रिएक्टर बनाने में पाकिस्तान का समर्थन लिया। चीनी अधिकारियों ने ठोस रूप से इन अनुमानों को त्याग किया।
पिछली सदी के नब्बे दशक के अंत में अमरीकी अधिकारियों ने उजागर किया कि वाशिंगटन ने इस्लामाबाद की परमाणु बम अपनाने की इच्छा जान-बूझकर नजरंदाज किया था और सोवीएट सैनिकों को अफ़ग़ानिस्तान से भगाने के लिए उत्सुक होकर अमरीकी हुकूमत ने पाकिस्तानी नेताओं को बम बनाने का “आशीर्वाद” दिया। अस्सी के दशक के मध्य और अंत में और नब्बे के दशक में क्रमिक प्रशासन कांग्रेस को झूठी सूचनाएं प्रदान करते थे कि पाकिस्तान के पास परमाणु प्रौद्योगिकी तक पहुँच नहीं है।
कुछ अमरीकी अधिकारियों ने तब से कई बार पाकिस्तान को परमाणु कार्यक्रम को लेकर अमेरिका की सहायता को लेकर अफसोस जताया है। पिछले साल अफगानिस्तान से अमरीकी की अपमानजनक रवानगी के बाद डोनाल्ड ट्रम्प के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टोन ने पाकिस्तान को दोमुंहा साझेदार कहा क्योंकि पाकिस्तानी हुकूमत ने कथित तौर पर तालिबान* को समर्थन प्रदान किया। उन्होंने अमरीका से “निवारक कार्रवाई” का आह्वान किया ताकि “इस्लामाबाद का आगामी आतंकवादी शासन या आज की हुकूमत ही या समान विचारधारा वाले उत्तराधिकारी”आतांवादियों को परमाणु क्षमता प्रदान न करें।“
परमाणु सामग्री की आपूर्तियाँ पाकिस्तान कैसे करता है?
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, पाकिस्तान के परमाणु हथियारों का कुल संख्या 165 है। यह भारत से पाँच परमाणु हथियार ज्यादा है। फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स के अनुमान के अनुसार, पकिस्तान के परमाणु हथियार देश के अमरीका द्वारा बनाये एफ-16 बेड़े, फ्रेंच मीरज III/5 और चीन के बनाए A-5 समेत विमानों से ले जाया जा सकते हैं।
पाकिस्तान के पास हाँट्फ़-1I, जिसकी दूरी 100 किमी से अधिक है, ग़ज़नवी, जिसकी दूरी 320 किमी है, शाहीन सीरीज, जिसकी दूरी 750 से 1000 किमी तक है और घौरी, अबाबील और शाहीन-II, जिनकी दूरी 1,500 किमी और 2,750 किमी हैं समेत युद्धक्षेत्र और सामरिक, कम दूरी और मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों की एक श्रृंखला है।
पाकिस्तानी फौज के पास बबूर 1, 1A, 1B और 2 सिरीस जो परमाणु सक्षण हैं और जिन की दूरी 900 किमी तक है समेत मिसाइलों की श्रृंखला तक पहुँच भी है।
* आतंकवादी गतिविधियों के लिए संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों के तहत