अलेक्सेई ड्रोबिनिन के लेख में कहा गया कि "यह मानना संभव है कि रूस के विशेष सैन्य अभियान ने इस स्थिति में बड़े परिवर्तन को बढ़ावा दिया है। पश्चिम के रूसी-विरोधी प्रतिबंधों और राजनीतिक प्रचारों वाले अभियान में भग लेने से इन्कार करने का विश्व के बहुमत का निर्णय इस तथ्य का सबूत है।"
लेखक के अनुसार, रूसी-विरोधी गठबंधन का हिस्सा बनने को लेकर बहुमत देशों की अनिच्छा के गहरे कारण यूक्रेन में स्थिति से सीधे संबंधित नहीं हैं। पूर्व "तृतीय दुनिया" के निवासी पूर्व औपनिवेशिक शासकों का सामना करने को ऐतिहासिक रूप से सही और अपरिवर्तनीय समझते हैं।
ड्रोबिनिन ने यह भी लिखा कि "रूस की गतिविधियों को ऐतिहासिक न्याय को बहाल करने के संदर्भ में देखा जाता है। पश्चिम के खिलाफ नहीं, उसकी भागीदारी के बिना ही बातचीत और विकास की प्रभावी योजनाएं बनाने का वास्तविक अवसर रोशनी में आ रहा है।"
लेखक के अनुसार, अब पश्चिमी सभ्यता के साथ रूस, चीन, भारत, दक्षिण पूर्व एशिया (आसियान संगठन), अरब दुनिया, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन देशों जैसे राज्य-सभ्यताएं और सभ्यतागत समुदाय सामने आ रहे हैं।
लेखक ने समझाया कि "शीर्ष स्तर के ये खिलाड़ी बहुध्रुवीय दुनिया की पहचान को बनाने में सबसे गंभीर भूमिका निभाने की तैयारी कर रहे हैं। विश्व का बहुमत यह अवसरों को जोड़ने और शांति की मदद से करेगा, और पश्चिम वास्तविक ऐतिहासिक प्रक्रियाओं को लेकर किशोरों के अपने शून्यवाद की मौजूदा स्थिति में यह बाकी दुनिया का विरोध करने के माध्यम से करेगा।"
उन्होंने जोर देकर लिखा कि पश्चिमी दुनिया पांच सौ सालों के अपने प्रभुत्व को खो रही है।
ड्रोबिनिन ने अंत में यह भी लिखा कि "हमें विश्वास है कि "(नियमों पर आधारित) संतुलन" जल्द ही पूरी तरह गायब हो जाएगा, या (इसके प्रेरकों के लिए सबसे अच्छी स्थिति में) केवल पश्चिमी दुनिया की भौगोलिक सीमाओं के बाहर अपना प्रभाव डालेगा।"