रूसी अंतरिक्ष यात्री यूरी गागरिन ने 12 अप्रैल, 1961 को वोस्तोक-1 अंतरिक्ष यान में कक्षा में सफलतापूर्ण उड़ान भरी थी। यूरी 108 मिनट बाद धरती पर वापस लौटे। पूरी दुनिया ने उनका स्वागत एक हीरो की तरह किया।
1934 में सोवियत संघ यानी रूस के क्लूशीनो गांव में जन्मे यूरी एलेक्सेविच गगारिन को 16 साल की उम्र में सरातोव के एक टेक्निकल स्कूल में जाने का मौका मिला। वहां उन्होंने एक फ्लाइंग स्कूल को ज्वॉइन कर लिया। साल 1955 में उन्होंने पहली बार अकेले विमान उड़ाया। 1957 में ग्रेजुएशन पूरा कर यूरी एक फाइटर पायलट बन गए थे।
1957 में ही सोवियत संघ ने पहले सैटेलाइट Sputnik-1 को अंतरिक्ष में स्थापित किया था। इसके बाद फैसला किया गया कि अब इंसान को अंतरिक्ष में भेजा जाए। इसके लिए देश के हजारों लोगों की कड़ी परीक्षा ली गई। आखिरकार यूरी गागरिन का चयन किया गया।
यूरी गगारिन 12 अप्रैल 1961 को सिर्फ 27 वर्ष की उम्र में अंतरिक्ष यान वोस्तोक-1 में बैठकर बायकोनूर कॉस्मोड्रोम से अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरी, जहां उनसे पहले कोई इंसान नहीं गया था। पृथ्वी की ग्रेविटेशनल फोर्स से बाहर जाने के लिए उनके यान ने एक सेकेंड में आठ किलोमीटर की दूरी तय की। ऐसा पहली बार मुमकिन हुआ और गगारिन सफतलतापूर्वक अंतरिक्ष में पहुँच गए। वहां से उन्होंने पृथ्वी की सुंदरता को देखा।
यूरी गागरिन जब अंतरिक्ष में गए तो कोई उन्हें नहीं जानता था, लेकिन जब वे लौटे तो दुनिया भर में मशहूर हो गए थे। वे दुनिया के देशों में एक रॉल मॉडल बन गए थे। हर कोई उन्हें नजदीक से देखने के लिए उत्साहित था।
अंतरिक्ष से लौटने के पश्चात गागरिन अंतरिक्ष यात्रियों को ट्रेनिंग देने लगे। 27 मार्च 1968 को एक ट्रेनिंग सत्र के दौरान उनका जहाज दुर्घटना का शिकार हो गया। इस दुखद हादसे में यूरी गागरिन और साथी पायलट का निधन हो गया।
कॉस्मोनॉटिक्स दिवस
पृथ्वी के चारों ओर मनुष्य की पहली कक्षीय उड़ान के सम्मान में अप्रैल 1962 में कॉस्मोनॉटिक्स दिवस आधिकारिक तौर पर स्थापित किया गया है । साल 2011 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा के 65वें सत्र में, पहली मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान के सम्मान में 12 अप्रैल को मानव अंतरिक्ष उड़ान के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में घोषित किया गया था। दरअसल सोवियत पायलट गागरिन ने ही अंतरिक्ष में मानव उड़ान के स्वर्णिम युग की शुरुआत की। इसलिए यूरी गगारिन द्वारा पहली मानव अंतरिक्ष उड़ान का स्मरण करते हुए प्रत्येक वर्ष 12 अप्रैल को 'इंटनेशनल डे ऑफ ह्यूमन स्पेस फ्लाइट' मनाया जाता है।
भारत में भव्य स्वागत
अंतरिक्ष की सफल यात्रा से कुशलतापूर्ण वापसी के कुछ महीने बाद ही उन्होंने भारत की यात्रा की और दिल्ली के पालम हवाई अड्डे पर बड़ी गर्मजोशी तथा खुली बांहों से भारतीयों ने उनका स्वागत किया। बड़ी संख्या में भारतीयों ने गागरिन और उनकी पत्नी वेलेंटीना गोरीचेवा का अभिवादन किया था। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, औपचारिक कपड़े पहने और एक सुंदर टोपी पहने उन्होंने भारत के अपने दौरे के दौरान जिन भी शहरों का दौरा किया, वहां भारतीयों ने उनका भव्य स्वागत किया। दिल्ली में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने दिल्ली स्थित अपने पीएम आवास में गागरिन और उनकी पत्नी की मेजबानी की थी।
प्रथम भारतीय अंतरिक्ष यात्री
भारत से अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले प्रथम भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा का जन्म 13 जनवरी 1949 को पंजाब के पटियाला में हुआ था। वे भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री थे जिन्हें अंतरिक्ष यात्रा करने का गौरव प्राप्त हुआ। स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा ने लो ऑर्बिट में स्थित सोवियत स्पेस स्टेशन से 2 अप्रैल, 1984 को सफल उड़ान भरी थी और आठ दिन स्पेस स्टेशन पर बिताए थे।
भारत-सोवियत संघ मित्रता की स्वर्णिम यात्रा
भारत के अंतरिक्ष विज्ञान संगठन ‘इसरो’ और सोवियत संघ के ‘इन्टरकॉसमॉस’ के संयुक्त अभियान के तहत अंतरिक्ष का अध्ययन करने के लिए दोनों देशों के तीन अंतरिक्ष यात्री को अंतरिक्षयान द्वारा अंतरिक्ष में जाना था। तीन अंतरिक्ष यात्रियों में से दो सोवियत संघ से और एक भारत से चुने जाने थे। बहरहाल, भारत से चयनित दो लोगों राकेश शर्मा और रवीश मल्होत्रा को अंतरिक्ष की यात्रा से पूर्व प्रशिक्षण के लिए सोवियत संघ स्थित अंतरिक्ष स्टेशन भेजा गया। इस प्रशिक्षण के पश्चात राकेश शर्मा को अंतिम तौर चयन अंतरिक्ष यात्रा के लिए कर लिया गया।
फिर 2 अप्रैल 1984 को राकेश शर्मा ने दो सोवियत अंतरिक्ष यात्रियों कमांडर वाई वी मलिशेव और फ्लाइट इंजीनियर जी एम स्त्रोक्लोफ़ के साथ रूसी अंतरिक्षयान सोयुज टी-11 में अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरा। उड़ान भरने के पश्चात तीनों अंतरिक्ष यात्री सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में सोवियत संघ द्वारा स्थापित ऑर्बिटल स्टेशन सोल्युज-7 में पहुंच गए। इस ऐतिहासिक अंतरिक्ष मिशन के साथ भारत अंतरिक्ष में मानव भेजने वाला विश्व का 14वा देश बन गया। राकेश शर्मा ने अंतरिक्ष में लगभग 8 दिन बिताए थे। इस दौरान इस अंतरिक्ष दल ने वैज्ञानिक और तकनीकी अध्ययन से संबंधित 33 प्रयोग किए।
अंतरिक्ष यात्रा के दौरान संयुक्त दल ने मास्को के सोवियत संघ के अधिकारीयों के साथ मिलकर नई दिल्ली में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के साथ एक संयुक्त वार्तालाप का भी आयोजन किया। इस वार्तालाप के दौरान गाँधी ने राकेश शर्मा से एक दिलचस्प सवाल पूछा था – ‘अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखता है?’ इस दिलचस्प प्रश्न का उत्तर भी राकेश शर्मा ने बड़े दिलचस्प अंदाज में दिया – ‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा…’
भारत में अंतरिक्ष उद्योग का विकास
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्था (इसरो) 15 अगस्त 1969 में अस्तित्व में आया था तबसे लेकर आज तक देश की अंतरिक्ष के के क्षेत्र में लगातार नए कीर्तिमान स्थापित किए जा रहे हैं।
1975 में पूर्व सोवियत संघ से अपना पहला उपग्रह आर्यभट्ट लॉन्च करने के लिए इसरो इंटरकोस्मोस कार्यक्रम में शामिल हुआ। भारत ने पहली बार 1975 में अपने पहले आर्यभट्ट उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे जो 5 दिन बाद काम करना बंद कर दिया था। उसके बाद इसरो ने 7 जून 1979 को देश के 442 किलो के दूसरे उपग्रह भास्कर को पृथ्वी की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया। इसके बाद भारत में अंतरिक्ष विकास को नया आयाम मिला।
भारत 2035 तक अपना खुद का स्पेस स्टेशन स्थापित करने की योजना बना रहा है। साथ ही इसरो भारी-भरकम पेलोड कक्षा में स्थापित करने और दोबारा इस्तेमाल किए जाने वाले रॉकेट बनाने की कोशिश में है।
साल 2025 तक भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था लगभग 1.05 लाख करोड़ रुपये होने की उम्मीद जताई जा रही है। भारत सरकार ने हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023 को मंजूरी दी है। यह नीति भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र को मजबूत करने और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता हासिल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।