विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

Marsoplane: मंगल ग्रह का अध्ययन करने की भारतीय-रूसी परियोजना के बारे में सब से जरूरी जानकारी

 - Sputnik भारत, 1920, 14.03.2023
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बहुत क्षेत्रों में रूस और भारत के संबंध लंबे समय से मजबूत हैं, उदाहरण के लिए, दोनों देश अपने द्विपक्षीय व्यापार और सांस्कृतिक साझेदारी को बढ़ावा देते रहते हैं। इसके अलावा रूस पाँच महीनों से भारत का सब से बड़ा तेल का आपूर्तिकर्ता हो रहा है।
Marsoplane रोबोटिक अन्मानड एरियल वीइकल है जिसका उद्देश्य मंगल ग्रह के वातावरण और सतह का अध्ययन करना है। यह परियोजना मंगल ग्रह के अध्ययन के क्षेत्र में रूस और भारत का पहला सहयोग है।

रूस के विज्ञान कोष और भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान संस्था (इसरो) द्वारा वित्त पोषित और रूसी और भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा विकसित इस परियोजना की मदद से मंगल ग्रह से संबंधित नई वैज्ञानिक सूचना मिल सकती है।

भारतीय-रूसी Marsoplane परियोजना के बारे में जरूरी जानकारी क्या है?

Marsoplane यानी मंगल ग्रह का अध्ययन करने वाला फिक्स्ड-विंग रोबोटिक एरियल प्लेटफॉर्म मास्को एविएशन इंस्टीट्यूट (MAI) के वैज्ञानिकों की एक टीम के साथ-साथ भारत के विशेषज्ञों द्वारा बनाया जा रहा है।
खड़गपुर के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के कम्प्यूटेशनल फ्लूइड डाइनैमिक्स विशेषज्ञ इस टीम में शामिल हैं।
इस परियोजना के अनुसंधान मिशन पर काम में रूसी विज्ञान अकादमी के अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान हिस्सा लेता है।
अनुसंधान करने वाली टीम रूसी अंतरिक्ष रॉकेट उद्योग के शोध संस्थानों के संपर्क में है।
Marsoplane बनाने पर काम अप्रैल 2022 में शुरू हुआ था और योजना के अनुसार प्रौद्योगिकी प्रदर्शक का परीक्षण 2024 के अंत तक किया जाएगा।

भारतीय-रूसी Marsoplane परियोजना की विशेषताएं क्या हैं?

संभव है कि इस परियोजना का लक्ष्य मंगल ग्रह के मैग्नेटिक फील्ड का अध्ययन और मौसम विज्ञान, खनिज विज्ञान और थर्मोफिजिकल अध्ययन करना होगा।
इस वीइकल पर नियंत्रण धरती से रिमोट रूप से किया जाएगा और इसका मार्ग मंगल ग्रह पर पहुँचने से पहले प्रोग्राम किया जाएगा।
मंगल ग्रह की बुरी जलवायु और वातावरण के कारण Marsoplane को इस तरह बनाना जरूरी है कि वह उनका सामना करके अपना लक्ष्य पूरा कर सके।
इसलिए Marsoplane छोटा होना चाहिए या इसका फॉल्डिंग या सॉफ्ट संरचना का डिजाइन होना चाहिए।
इसके अलावा, इस वीइकल को बुरे मौसम के समय प्रणालियों और उपकरणों की रक्षा करने में सक्षम किया जाना चाहिए।
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