28 जनवरी 1899 को भारत में कर्नाटक के कूर्ग में करियप्पा का जन्म हुआ, 1919 में वे ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल हुए और उनकी पहली नियुक्ति राजपूत लाइट इन्फैंट्री की दूसरी बटालियन में सेकंड लेफ्टिनेंट के तौर पर हुई थी।
करियप्पा ने अपनी सेवा द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्मा में आजाद हिन्द फौज के खिलाफ की और उन्हें सैन्य संचालन के उप निदेशक नियुक्त किया गया। उनकी सेवाओं के लिए उन्हें ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर से नवाजा गया।
भारत को 1947 में स्वतंत्रता मिलने के बाद ब्रिटिश जनरल रॉय बुचर के बाद साल 1949 में उन्हें भारतीय सेना के कमांडर-इन-चीफ के रूप में नियुक्त किया गया और फिर उन्होंने 1953 में अपनी सेवानिवृत्ति तक अपनी सेवाएं दी।
1949 में भारतीय सेना के कमांडर-इन-चीफ के तौर पर नियुक्त किये जाने वाले फील्ड मार्शल कोडंडेरा मडप्पा करियप्पा इस पद पर पहले भारतीय अधिकारी थे।
करिअप्पा भारतीय संघ में रियासतों के एकीकरण के प्रबल पक्षधर थे। उन्होंने मैसूर के महाराजा को भारत में शामिल होने के लिए राजी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, और उनके प्रयासों ने अन्य रियासतों के शांतिपूर्ण एकीकरण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। करियप्पा को उनके करियर के दौरान कई पुरस्कारों और सम्मानों से सम्मानित किया गया, जिनमें पद्म भूषण और लीजन ऑफ मेरिट शामिल हैं।
फील्ड मार्शल करियप्पा का 1993 में 94 वर्ष की आयु में निधन हो गया था। उन्हें उनके जबरदस्त नेतृत्व, समर्पण और भारतीय सेना के विकास में योगदान के लिए हमेशा याद किया जाएगा।