प्रोखोरोव्का की लड़ाई कैसी थी?
12 जुलाई 1943 को सोवियत संघ में कुर्स्क शहर के 87 किलोमीटर दूर दक्षिण-पूर्व में प्रोखोरोव्का गाव के पास एक टैंक लड़ाई हुई थी जो पूर्वी मोर्चे पर जगह लेते हुए कुर्स्क की व्यापक लड़ाई का हिस्सा थी। जर्मन कमांड ने कुर्स्क क्षेत्र में युद्ध का रुख अपने पक्ष में करने के लिए एक "सिटाडेल" नाम का रणनीतिक आक्रामक अभियान शुरू करने की योजना बनाई।
प्रोखोरोव्का की लड़ाई के दौरान सोवियत लाल सेना की 5 वीं गार्ड टैंक सेना ने द्वितीय विश्व युद्ध की सबसे बड़ी टैंक लड़ाइयों में से एक में जर्मन वेहरमाच के द्वितीय एसएस-पैंजर कोर पर हमला किया।
लड़ाई में दोनों पक्षों के कुल मिलाकर लगभग 20 लाख लोगों तथा टैंक और स्व-चालित तोपखानों सहित 1,100 से अधिक बख्तरबंद वाहनों ने प्रदर्शन किया।
लड़ाई के परिणाम
कोई भी अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाया है, लेकिन महत्त्वपूर्ण बात यह है कि नाज़ी प्रोखोरोव्का पर कब्ज़ा करने, सोवियत सैनिकों की सुरक्षा को तोड़ने और आगे बढ़ने में असमर्थ थे।
प्रोखोरोव्का के पास उग्र चाप (Fiery Arc) पर लड़ाई के दौरान महत्वपूर्ण मोड़ों में से एक साबित हुई। यह स्पष्ट हो गया कि 5 जुलाई 1943 को जर्मन का जो ‘सिटाडेल’ ऑपरेशन शुरू हो गया था, जिसका उद्देश्य पूर्वी मोर्चे पर सोवियत सैनिकों के फ्लैंकों पर रक्षा-पंक्ति तोड़कर शत्रु सेना को घेरना और कुर्स्क पर फिर से कब्जा करना था, वह पूरी तरह विफल रहा।
विरोधी सेनाओं को क्या नुकसान हुआ?
रूसी सशस्त्र बलों के जनरल स्टाफ के सैन्य अकादमी के सैन्य इतिहास अनुसंधान संस्थान के प्रमुख शोधकर्ता वालेरी माकोवस्की के मुताबिक, प्रोखोरोव्का के पास इस भिड़ंत में 35,000 लाल सेना के सैनिक और लगभग 10,000 जर्मन सैनिक मारे गये।
लाल सेना ने 470 टैंकों और स्व-चालित तोपखाने खो दिए। जर्मनों ने टैंकों सहित 50 बख्तरबंद वाहन खो दिए।
1995 में विजय की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर प्रोखोरोव्का के पास मारे गए लोगों की याद में युद्ध स्थल पर एक संग्रहालय-रिजर्व खोला गया जिसमें ‘ज़्वोन्नित्सा (बेल्फ़्री)’ स्मारक और चर्च ऑफ़ द होली एपोस्टल्स पीटर और पॉल शामिल है।