"अभी जिस तरीके से लड़ाई चल रही है, उसमें पश्चिमी मीडिया अपनी सरकार की नीतिगत पहलू का पक्ष ले रहा है। विनाश की जो बहुत सारी घटनाएं हो या गाजा में मानवाधिकार हनन की घटनाएं हो उनको पश्चिमी मीडिया दिखाते नहीं है। इसका एक कारण यह भी है कि अमेरिका, ब्रिटेन में भी बहुत से लोग फिलिस्तीनी संघर्ष का समर्थन कर रहे हैं। उनका कहना है कि फिलिस्तीनियों के साथ अन्याय हुआ है, उनका न्याय होना चाहिए। कहीं न कहीं पश्चिमी समाज में भी इस पर प्रतिक्रिया आ रही है," प्रोफ़ेसर अश्विनी महापात्रा ने Sputnik India को बताया।
"अब स्थिति पहले जैसा नहीं है। सोशल मीडिया का युग है जहाँ पर लोगों को पता मुख्यधारा की मीडिया के बिना भी पता चल जाता है कि क्या हो रहा है और क्या नहीं हो रहा है," प्रोफ़ेसर महापात्रा ने टिप्पणी की।
लेकिन पक्षपात क्यों?
"इसके पीछे का कारण यह भी है कि मध्य पूर्व या पश्चिमी एशियाई क्षेत्र में पश्चिमी देश को भी इज़राइल का सहयोग प्राप्त है इसलिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं कि इज़राइल को किसी भी तरह का संकट न हो और इज़राइल की सुरक्षा मध्य पूर्व में सुनिश्चित हो। इसलिए दो कारण हैं: एक तो सामाजिक विभाजन जो कि अमेरिकी विश्वविद्यालय में विरोध-प्रदर्शन हो रहा है। जर्मनी और फ़्रांस में प्रदर्शन हो रहा है तो कहीं न कहीं उसका भी प्रभाव वहां के समाज के ऊपर है और दूसरी बात है कि कुछ भी हो फिलिस्तीन के साथ जो मानवाधिकार हनन हुआ है और उनकी अलग राज्य की मांग पूरी नहीं हुई है, इसलिए भी सामाजिक विभाजन के डर से पश्चिमी मीडिया फिलिस्तीन के मानवाधिकार को पीछे कर धकेल रहा है," प्रोफ़ेसर महापात्रा ने Sputnik India के साथ साक्षात्कार में रेखांकित किया।