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इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष के पश्चिमी मीडिया कवरेज पर विश्वास क्यों नहीं करना चाहिए? विशेषज्ञ की राय
इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष के पश्चिमी मीडिया कवरेज पर विश्वास क्यों नहीं करना चाहिए? विशेषज्ञ की राय
Sputnik भारत
इज़राइल-हमास संघर्ष के पश्चिमी मीडिया कवरेज में उल्लेखनीय पूर्वाग्रह उस सांस्कृतिक धारणा को दर्शाता है कि फिलिस्तीनी और इज़राइली जीवन समान नहीं हैं।
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गाजा में युद्ध शुरू हुए चार सप्ताह से अधिक समय हो गया है। लगातार इज़राइली बमबारी से 8,000 से अधिक फिलिस्तीनी मारे गए हैं और दक्षिणी इज़राइल पर सशस्त्र फिलिस्तीनी प्रतिरोध समूह हमास के हमले में 1,400 इज़राइली मारे गए हैं।कई पश्चिमी मीडिया आउटलेट इज़राइली नागरिकों की हत्या और क्रूरता को उजागर करने पर जोर देते हैं, जैसा कि कथित तौर हमास ने किया है, जबकि गाजा पट्टी पर कालीन बमबारी (कार्पेट बॉम्बिंग) करके इज़राइली सेना द्वारा फिलीस्तीनी नागरिकों की अंधाधुंध हत्या पर नरम रुख अपनाया है।अविश्वास अब और अधिक स्पष्ट है क्योंकि द न्यूयॉर्क टाइम्स की एक हेडलाइन में शुरू में कहा गया था कि इज़राइली हमले के कारण गाजा के अल-अहली अरब अस्पताल में विस्फोट और आग लग गई थी। बाद में इज़राइली भागीदारी से बचने के लिए शीर्षक को संशोधित किया गया। हालांकि दोनों तरफ से भीषण कृत्य हो रहे हैं, पश्चिमी मीडिया द्वारा इज़राइल और फिलिस्तीन में सामने आ रही स्थितियों के बारे में स्पष्ट विभाजन को अनदेखा करना कठिन है। Sputnik India ने दिल्ली के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में पश्चिम एशिया मामलों के विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर अश्विनी महापात्रा के साथ बात की, जिन्होंने बताया कि इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष के पश्चिमी मीडिया कवरेज पर विश्वास क्यों नहीं करना चाहिए। अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्टिंग में शब्दों का सावधानीपूर्वक चयन उस एकपक्षीय आख्यान के बारे में बता रहा है जिसे पश्चिमी मीडिया बढ़ाना चुन रहा है। लेकिन नेटिजनों ने सही और गलत के बारे में बहस करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया है।लेकिन पक्षपात क्यों?विशेषज्ञ कहते हैं कि पश्चिमी मीडिया में कथित पूर्वाग्रह का कारण फ़िलिस्तीन और इज़राइल के मध्य बड़े स्तर पर असंतुलित शक्ति संबंध हैं। इज़राइल पश्चिम के साथ मजबूत व्यापार, सैन्य और राजनयिक संबंधों वाला एक मान्यता प्राप्त राज्य है, इसलिए वह परिष्कृत राज्य प्रचार और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली ब्रीफिंग प्रदान कर सकता है और कथा को बेहतर ढंग से नियंत्रित और आकार दे सकता है, जबकि फ़िलिस्तीनी उत्पीड़ित, गरीबी, गुटबाजी और व्यवहार्य प्रतिनिधित्व की कमी की स्थितियों में फंसे हुए हैं।इन कारणों से, पश्चिमी मीडिया के इज़राइल समर्थक पूर्वाग्रहों को पश्चिमी सरकारों के साथ इज़राइल के व्यापक राजनीतिक जुड़ाव का प्रतिबिंब माना जाता है और इस प्रकार ये स्थानिक हैं। मुख्यधारा के पश्चिमी मीडिया में इज़राइल समर्थक पूर्वाग्रह एक व्यवस्थित विशेषता बनी हुई है। बड़े स्तर पर ध्रुवीकरण और सूचना के चयनात्मक प्रदर्शन के कारण आलोचनात्मक चर्चा की संभावना कम है। विशेषज्ञ के अनुसार, इस व्यापक आरोप को गंभीरता से लेने और पूछताछ करने की आवश्यकता है कि यदि कोई फ़िलिस्तीनियों के लिए न्याय का समर्थन करता है, तो वे आतंकवाद का भी समर्थन करते हैं और यहूदी विरोधी हैं।हमले के पक्षपाती रिपोर्टिंग के माध्यम से राजनीतिक झुकाव अधिक स्पष्ट हो गए हैं। धर्म का उपयोग जटिल राजनीति को सरल बनाता है और लोगों को समूह और पहचान-आधारित राजनीति में विभाजित करना और प्रेरित करना सहज बनाता है।यह गंभीर स्थिति दशकों से बनी हुई है। जबकि अमेरिका इज़राइल को हथियार भेज रहा है, गाजा को सहायता मिलनी बंद हो गई है, जहां परिवारों और बच्चों को इसकी अत्यंत आवश्यकता है। और अधिक असंतुलन उत्पन्न करने से मात्र तनाव बढ़ेगा, मानव जीवन की हानि होगी, और व्यापक समाधान तक पहुंचने की किसी भी संभावना में देरी होगी।
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इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष के पश्चिमी मीडिया कवरेज पर विश्वास क्यों नहीं करना चाहिए? विशेषज्ञ की राय
14:48 04.11.2023 (अपडेटेड: 14:52 04.11.2023) इज़राइल-हमास संघर्ष के पश्चिमी मीडिया कवरेज में उल्लेखनीय पूर्वाग्रह उस सांस्कृतिक धारणा को दर्शाता है कि पश्चिमी मीडिया के अनुसार फिलिस्तीनी और इज़राइली जीवन समान नहीं हैं।
गाजा में युद्ध शुरू हुए चार सप्ताह से अधिक समय हो गया है। लगातार इज़राइली बमबारी से 8,000 से अधिक फिलिस्तीनी मारे गए हैं और दक्षिणी इज़राइल पर सशस्त्र फिलिस्तीनी प्रतिरोध समूह हमास के हमले में 1,400 इज़राइली मारे गए हैं।
कई
पश्चिमी मीडिया आउटलेट इज़राइली नागरिकों की हत्या और क्रूरता को उजागर करने पर जोर देते हैं, जैसा कि कथित तौर हमास ने किया है, जबकि गाजा पट्टी पर कालीन बमबारी (कार्पेट बॉम्बिंग) करके इज़राइली सेना द्वारा फिलीस्तीनी नागरिकों की
अंधाधुंध हत्या पर नरम रुख अपनाया है।
अविश्वास अब और अधिक स्पष्ट है क्योंकि द न्यूयॉर्क टाइम्स की एक हेडलाइन में शुरू में कहा गया था कि इज़राइली हमले के कारण गाजा के अल-अहली अरब अस्पताल में विस्फोट और आग लग गई थी। बाद में इज़राइली भागीदारी से बचने के लिए शीर्षक को संशोधित किया गया।
हालांकि दोनों तरफ से भीषण कृत्य हो रहे हैं, पश्चिमी मीडिया द्वारा इज़राइल और फिलिस्तीन में सामने आ रही स्थितियों के बारे में स्पष्ट विभाजन को अनदेखा करना कठिन है।
Sputnik India ने दिल्ली के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में पश्चिम एशिया मामलों के विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर अश्विनी महापात्रा के साथ बात की, जिन्होंने बताया कि इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष के पश्चिमी मीडिया कवरेज पर विश्वास क्यों नहीं करना चाहिए।
"अभी जिस तरीके से लड़ाई चल रही है, उसमें पश्चिमी मीडिया अपनी सरकार की नीतिगत पहलू का पक्ष ले रहा है। विनाश की जो बहुत सारी घटनाएं हो या गाजा में मानवाधिकार हनन की घटनाएं हो उनको पश्चिमी मीडिया दिखाते नहीं है। इसका एक कारण यह भी है कि अमेरिका, ब्रिटेन में भी बहुत से लोग फिलिस्तीनी संघर्ष का समर्थन कर रहे हैं। उनका कहना है कि फिलिस्तीनियों के साथ अन्याय हुआ है, उनका न्याय होना चाहिए। कहीं न कहीं पश्चिमी समाज में भी इस पर प्रतिक्रिया आ रही है," प्रोफ़ेसर अश्विनी महापात्रा ने Sputnik India को बताया।
अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्टिंग में शब्दों का सावधानीपूर्वक चयन उस एकपक्षीय आख्यान के बारे में बता रहा है जिसे पश्चिमी मीडिया बढ़ाना चुन रहा है। लेकिन नेटिजनों ने सही और गलत के बारे में बहस करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया है।
"अब स्थिति पहले जैसा नहीं है। सोशल मीडिया का युग है जहाँ पर लोगों को पता मुख्यधारा की मीडिया के बिना भी पता चल जाता है कि क्या हो रहा है और क्या नहीं हो रहा है," प्रोफ़ेसर महापात्रा ने टिप्पणी की।
विशेषज्ञ कहते हैं कि पश्चिमी मीडिया में कथित पूर्वाग्रह का कारण फ़िलिस्तीन और इज़राइल के मध्य बड़े स्तर पर
असंतुलित शक्ति संबंध हैं।
इज़राइल पश्चिम के साथ मजबूत व्यापार, सैन्य और राजनयिक संबंधों वाला एक मान्यता प्राप्त राज्य है, इसलिए वह परिष्कृत राज्य प्रचार और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली ब्रीफिंग प्रदान कर सकता है और कथा को बेहतर ढंग से नियंत्रित और आकार दे सकता है, जबकि
फ़िलिस्तीनी उत्पीड़ित, गरीबी, गुटबाजी और व्यवहार्य प्रतिनिधित्व की कमी की स्थितियों में फंसे हुए हैं।
इन कारणों से, पश्चिमी मीडिया के इज़राइल समर्थक पूर्वाग्रहों को पश्चिमी सरकारों के साथ इज़राइल के व्यापक राजनीतिक जुड़ाव का प्रतिबिंब माना जाता है और इस प्रकार ये स्थानिक हैं।
मुख्यधारा के पश्चिमी मीडिया में इज़राइल समर्थक पूर्वाग्रह एक व्यवस्थित विशेषता बनी हुई है। बड़े स्तर पर ध्रुवीकरण और सूचना के चयनात्मक प्रदर्शन के कारण आलोचनात्मक चर्चा की संभावना कम है। विशेषज्ञ के अनुसार, इस व्यापक आरोप को गंभीरता से लेने और पूछताछ करने की आवश्यकता है कि यदि कोई फ़िलिस्तीनियों के लिए
न्याय का समर्थन करता है, तो वे आतंकवाद का भी समर्थन करते हैं और यहूदी विरोधी हैं।
"इसके पीछे का कारण यह भी है कि मध्य पूर्व या पश्चिमी एशियाई क्षेत्र में पश्चिमी देश को भी इज़राइल का सहयोग प्राप्त है इसलिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं कि इज़राइल को किसी भी तरह का संकट न हो और इज़राइल की सुरक्षा मध्य पूर्व में सुनिश्चित हो। इसलिए दो कारण हैं: एक तो सामाजिक विभाजन जो कि अमेरिकी विश्वविद्यालय में विरोध-प्रदर्शन हो रहा है। जर्मनी और फ़्रांस में प्रदर्शन हो रहा है तो कहीं न कहीं उसका भी प्रभाव वहां के समाज के ऊपर है और दूसरी बात है कि कुछ भी हो फिलिस्तीन के साथ जो मानवाधिकार हनन हुआ है और उनकी अलग राज्य की मांग पूरी नहीं हुई है, इसलिए भी सामाजिक विभाजन के डर से पश्चिमी मीडिया फिलिस्तीन के मानवाधिकार को पीछे कर धकेल रहा है," प्रोफ़ेसर महापात्रा ने Sputnik India के साथ साक्षात्कार में रेखांकित किया।
हमले के पक्षपाती रिपोर्टिंग के माध्यम से राजनीतिक झुकाव अधिक स्पष्ट हो गए हैं। धर्म का उपयोग जटिल राजनीति को सरल बनाता है और लोगों को समूह और पहचान-आधारित राजनीति में विभाजित करना और प्रेरित करना सहज बनाता है।
यह गंभीर स्थिति दशकों से बनी हुई है। जबकि अमेरिका इज़राइल को हथियार भेज रहा है,
गाजा को सहायता मिलनी बंद हो गई है, जहां परिवारों और बच्चों को इसकी अत्यंत आवश्यकता है। और अधिक असंतुलन उत्पन्न करने से मात्र तनाव बढ़ेगा, मानव जीवन की हानि होगी, और व्यापक समाधान तक पहुंचने की किसी भी संभावना में देरी होगी।