"एक बात तो अमेरिका ने चाहे कोरिया, वियतनाम, अफगानिस्तान, इराक, सूडान, सीरिया, यूक्रेन में जहां भी सैन्य हस्तक्षेप किया है, वहां वह अपना उद्देश्य या लक्ष्य हासिल नहीं कर सका है। सभी जगह उसको मुहतोड़ जवाब मिला है। दूसरी बात जो अमेरिकी सैन्य औद्योगिक परिसर है, जो हथियार बेचते हैं सिर्फ निर्यात के लिए और अपना एजेंडा कि इक्कीसवीं सदी अमेरिका की होगी (....) वे बोलते हैं। अपने सैन्य उद्योग को जारी रखना चाहते हैं," आफ़ताब कमाल पाशा ने Sputnik India को बताया।
"गाजा की पट्टी ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है। वहां कई राजा, महाराजा, किंगडम वगैरह डोमिनेट किए थे और उनका खात्मा भी हुआ था। उस इलाके में तीन या चार बार इज़राइलियों ने हमला किया है। (...) अब जो हमला हो रहा है उसमें सिर्फ इज़राइली सैनिक ही नहीं, अमेरिका के स्पेशल फोर्सेज और ब्रिटेन, इटली, जर्मनी और फ्रांस के भी स्पेशल फोर्सेज इज़राइल के साथ उत्तरी गाजा में हैं," प्रोफ़ेसर आफ़ताब कमाल पाशा ने कहा।
"बहुत लंबी कई अरसे तक हमास के साथ गाजा में बमबारी वगैरह जंग चलेगी। और मुझे लगता है कि ये जो नया वर्ल्ड ऑर्डर या मल्टीपोलर वर्ल्ड ऑर्डर, जिसकी तहत ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, चीन, भारत और दक्षिण अफ्रीका), चाहते हैं उसकी शुरुआत फिलिस्तीन से ही होगा। इजराइल और अमरीका सब मिलकर जो अतिक्रमण गाजा की पट्टी में कर रहे हैं, वहां बहुध्रुवीय दुनिया का जन्म होगा। क्योंकि पश्चिमी देश और यूरोपियन यूनियन इज़राइल के पक्ष में हैं और उसको जिताना चाहते हैं जो कि असंभव है," प्रोफ़ेसर पाशा ने कहा।
"अमेरिका और यूरोपीय संघ का एजेंडा था कि रूस को यूक्रेन के जरिए कमजोर कर दें और रूस का हौसला पस्त कर दें और यूक्रेन को नाटो में शामिल करें, लेकिन उनका एजेंडा कामयाब नहीं हुआ क्योंकि रूस डटकर मुकाबला कर रहा है, जिससे पश्चिमी कोशिश पूरी तरह असफल रही। अमेरिका की साजिश और प्लान था कि (...) यूक्रेन के जरिए रूस को टुकड़े-टुकड़े करना चाहते थे लेकिन हो नहीं पाया। रूस ताकतवर रहा और राष्ट्रपति पुतिन की लीडरशिप बहुत कामयाब रही, जिससे अमेरिकी और पश्चिमी मंसूबों पर पानी फिर गया," प्रोफ़ेसर पाशा ने Sputnik India से कहा।