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दुनिया के अधिकतर विवादों की जड़ में अमेरिका और उसके साम्राज्यवादी एजेंडे हैं: विशेषज्ञ

इज़राइल-फिलिस्तीन से लेकर रूस-यूक्रेन सहित उत्तर और दक्षिण कोरिया तक, अमेरिकी साम्राज्यवाद और हथियारों की होड़ को दुनिया के लगभग सभी बड़े संघर्षों का मुख्य कारण माना जाता है।
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बहुत विशेषज्ञ कहते हैं कि अमेरिका ने मध्य पूर्व और दुनिया भर में अफ्रीका से लेकर एशिया तक कुछ नेताओं को हथियारों से लैस किया है और फिर तथाकथित सभ्यताओं के टकराव और आतंक के खिलाफ युद्ध के नाम पर उन पर युद्ध की घोषणा की है।
दशकों से अमेरिका किसी भी ताकत की तुलना में विनाश को दशकों से बढ़ावा दे रही है जो व्यापक मानवता के लिए बहुत महंगा रहा है।
यह कहा जाता है कि ऐतिहासिक भूलने की बीमारी, आकंठ लालच और सैन्य-औद्योगिक परिसर, सभी का लोकतंत्र और मानवाधिकारों के नाम पर अमेरिका द्वारा रणनीतिक रूप से दुरुपयोग किया गया है।
विशेषज्ञों के अनुसार, अमेरिकी साम्राज्यवादी डिजाइन उपनिवेशवाद का सबसे खराब रूप रहा है। Sputnik India ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में गल्फ़ स्टडीज़ के पूर्व डायरेक्टर प्रोफ़ेसर आफ़ताब कमाल पाशा से बात की, जिन्होंने अमेरिकी नीति के बारे में विस्तार से बताया।

"एक बात तो अमेरिका ने चाहे कोरिया, वियतनाम, अफगानिस्तान, इराक, सूडान, सीरिया, यूक्रेन में जहां भी सैन्य हस्तक्षेप किया है, वहां वह अपना उद्देश्य या लक्ष्य हासिल नहीं कर सका है। सभी जगह उसको मुहतोड़ जवाब मिला है। दूसरी बात जो अमेरिकी सैन्य औद्योगिक परिसर है, जो हथियार बेचते हैं सिर्फ निर्यात के लिए और अपना एजेंडा कि इक्कीसवीं सदी अमेरिका की होगी (....) वे बोलते हैं। अपने सैन्य उद्योग को जारी रखना चाहते हैं," आफ़ताब कमाल पाशा ने Sputnik India को बताया।

Ukrainian servicemen load a truck with the FGM-148 Javelin, American man-portable anti-tank missile provided by US to Ukraine as part of a military support, upon its delivery at Kiev's airport Borispol on February 11,2022.
कहा जाता है कि अमेरिका कोई सामान्य देश नहीं है, बल्कि वह पूंजीवाद के रूप में निहित सैन्य-औद्योगिक परिसर का एक समूह बन गया है। प्रोफ़ेसर आफ़ताब कमाल पाशा के अनुसार, "अमेरिका और पश्चिमी देशों का डबल स्टैंडर्ड दुनिया के सामने उजागर हो गया" और "इन डबल स्टैंडर्ड से अमेरिका और पश्चिम की छवि कमजोर हो गई है।"

"गाजा की पट्टी ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है। वहां कई राजा, महाराजा, किंगडम वगैरह डोमिनेट किए थे और उनका खात्मा भी हुआ था। उस इलाके में तीन या चार बार इज़राइलियों ने हमला किया है। (...) अब जो हमला हो रहा है उसमें सिर्फ इज़राइली सैनिक ही नहीं, अमेरिका के स्पेशल फोर्सेज और ब्रिटेन, इटली, जर्मनी और फ्रांस के भी स्पेशल फोर्सेज इज़राइल के साथ उत्तरी गाजा में हैं," प्रोफ़ेसर आफ़ताब कमाल पाशा ने कहा।

प्रोफ़ेसर पाशा ने Sputnik India से यह भी कहा कि बहुध्रुवीय दुनिया की शुरुआत फिलिस्तीन से ही होगा।

"बहुत लंबी कई अरसे तक हमास के साथ गाजा में बमबारी वगैरह जंग चलेगी। और मुझे लगता है कि ये जो नया वर्ल्ड ऑर्डर या मल्टीपोलर वर्ल्ड ऑर्डर, जिसकी तहत ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, चीन, भारत और दक्षिण अफ्रीका), चाहते हैं उसकी शुरुआत फिलिस्तीन से ही होगा। इजराइल और अमरीका सब मिलकर जो अतिक्रमण गाजा की पट्टी में कर रहे हैं, वहां बहुध्रुवीय दुनिया का जन्म होगा। क्योंकि पश्चिमी देश और यूरोपियन यूनियन इज़राइल के पक्ष में हैं और उसको जिताना चाहते हैं जो कि असंभव है," प्रोफ़ेसर पाशा ने कहा।

याद दिलाएं कि बहुत लोगों ने अपना ध्यान उस तथ्य पर दिया है कि जब भी समझौते और अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लेख किया जाता है, तो यह केवल इज़राइल को अपनी बसने की प्रथाओं को जारी रखने के लिए और अधिक छूट देता है और यह छूट जो अमेरिका ने इज़राइल को सात दशकों से अधिक समय से प्रदान की है।
This picture taken from the Israeli side of the border with the Gaza Strip on November 11, 2023.
शांति प्रक्रिया तभी संभव हो सकती है जब इसमें शामिल पक्षों को स्वीकार्य हो, न कि शक्तिशाली भागीदारों की सुविधा के अनुसार समझौता हो। फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ इज़रायल को "सुरक्षित रखने" के लिए अमेरिका ने 40 से अधिक बार वीटो किया है।
मूल्य, शांति और मानवता पर सिर्फ किसी एक का अधिकार नहीं है। रंगों के आधार पर मानवता का विभाजन हिंसा का सबसे खराब रूप है और विशेषज्ञों के अनुसार इज़राइल के लिए अमेरिका का समर्थन और दुनिया भर में इसी तरह की कार्रवाइयां इस बात को दर्शाती हैं कि अमेरिका पहले विवाद को गढ़ता है और फिर अपने आर्थिक और सामरिक हित साधता है।

"अमेरिका और यूरोपीय संघ का एजेंडा था कि रूस को यूक्रेन के जरिए कमजोर कर दें और रूस का हौसला पस्त कर दें और यूक्रेन को नाटो में शामिल करें, लेकिन उनका एजेंडा कामयाब नहीं हुआ क्योंकि रूस डटकर मुकाबला कर रहा है, जिससे पश्चिमी कोशिश पूरी तरह असफल रही। अमेरिका की साजिश और प्लान था कि (...) यूक्रेन के जरिए रूस को टुकड़े-टुकड़े करना चाहते थे लेकिन हो नहीं पाया। रूस ताकतवर रहा और राष्ट्रपति पुतिन की लीडरशिप बहुत कामयाब रही, जिससे अमेरिकी और पश्चिमी मंसूबों पर पानी फिर गया," प्रोफ़ेसर पाशा ने Sputnik India से कहा।

मानवीय जीवन कोई हॉलीवुड फिल्में नहीं हैं जहां केवल अमेरिकी ही दुनिया को अराजकता से बचा सकते हैं बल्कि अमेरिकी नीतियां और सोच और उसका साम्राज्यवादी डिजाइन सभी अराजकता की जड़ हैं। इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद तभी हल हो सकता है जब अमेरिका दुनिया का रक्षक बनना बंद करे और अपने साम्राज्यवादी डिजाइन के प्रति आत्मनिरीक्षण करे।
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मध्य पूर्व में अशान्ति का सबसे बड़ा जिम्मेदार इज़राइल और अमेरिका: विशेषज्ञ
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