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जानें कैसे मार गिराए गए संसद पर हमला करने वाले आतंकी?

21 साल पहले 13 दिसंबर को भारतीय संसद पर हुए जानलेवा आतंकी हमले ने देश को हिलाकर रख दिया था। आज भारत उन शहीदों को श्रद्धांजलि देता है जिन्होंने हमले को रोकने के दौरान अपना सर्वोच्च बलिदान दिया।
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इस दुखद घटना में नौ लोगों की मौत हो गई और 18 घायल हो गए, जिनमें छह दिल्ली पुलिस के जवान और दो संसद सुरक्षा अधिकारी भी शामिल थे।
13 दिसंबर, 2001 को पांच आतंकवादी गृह मंत्रालय के फर्जी स्टिकर के साथ एक सफेद एम्बेस्डर कार में संसद परिसर में घुस गए।

13 दिसंबर के दिन क्या हुआ था?

13 दिसंबर, 2001 को भारतीय समयनुसार सुबह लगभग 11.30 बजे, नई दिल्ली में संसद परिसर में सुरक्षा उल्लंघन हुआ, क्योंकि पांच आधुनिक हथियारों से लैस आतंकवादी एक सफेद कार में संसद परिसर में घुसपैठ करने के लिए नकली वीआईपी कार्ड और एक लाल बत्ती का इस्तेमाल किया।
यह घुसपैठ संसद स्थगित होने के लगभग 40 मिनट बाद हुई, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और विपक्ष की नेता सोनिया गांधी पहले ही जा चुकी थीं। गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी समेत 100 सांसदों में से ज्यादातर संसद के अंदर थे।
आतंकवादियों की कार ने तत्कालीन उपराष्ट्रपति कृष्णन कांत के काफिले को टक्कर मार दी, जिससे एक अनियोजित टकराव शुरू हो गया। आतंकियों और सुरक्षाकर्मियों के बीच एक घंटे तक भीषण गोलीबारी हुई। इसके बाद पांचों आतंकवादियों ने एके-47 राइफलों से गोलीबारी की और बम फेंके। हालाँकि, अंततः सभी आतंकवादी मारे गए, लेकिन संसद सुरक्षा गार्ड और एक माली सहित दिल्ली पुलिस के पांच कर्मियों की भी जान चली गई।
भारी गोलीबारी के बावजूद सभी मंत्रियों और सांसदों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया और इस घटना का टेलीविजन पर सीधा प्रसारण किया गया। गोला-बारूद से लैस एक आतंकवादी ने संसद कक्ष के मुख्य द्वार पर खुद को विस्फोट से उड़ा लिया।
आतंकियों का मकसद इमारत में घुसकर सांसदों और मंत्रियों की भीड़ को अंधाधुंध निशाना बनाना था, जिसे सुरक्षा कर्मियों ने नाकाम कर दिया। हालांकि आतंकियों की घुसपैठ ने संसद परिसर में अपर्याप्त सुरक्षा को उजागर कर दिया, जिससे सरकार से सुरक्षा उपायों को बढ़ाने में महत्वपूर्ण निवेश करने का आग्रह किया गया। आगे की जांच में अफ़ज़ल गुरु, एसएआर गिलानी, शौकत हुसैन और नवजोत संधू की संलिप्तता भी उजागर हुई।

हमले के बाद क्या हुआ?

हमले के बाद दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 72 घंटे के अंदर मामले का खुलासा कर दिया। जांच से पता चला कि आत्मघाती दस्ते में शामिल पांचों आतंकवादी सभी पाकिस्तानी नागरिक थे, जो आतंकवादी समूहों लश्कर-ए-तैयबा (LeT)* और जैश-ए-मोहम्मद (JeM)* से जुड़े थे।
जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ़्रंट (JKLF) के पूर्व आतंकवादी मोहम्मद अफजल गुरु, उनके चचेरे भाई शौकत हुसैन गुरु, शौकत की पत्नी अफसान गुरु और दिल्ली विश्वविद्यालय में अरबी व्याख्याता एसएआर गिलानी को कानूनी परिणाम भुगतने पड़े और गिरफ्तार कर लिया गया। अफसान को बरी कर दिया गया, जबकि गिलानी को शुरू में मौत की सजा सुनाई गई थी, लेकिन बाद में 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया। बाद में अफजल गुरु को 2013 में मौत की सजा दी गई।
संसद पर हमले का असर राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली तक ही सीमित नहीं था। इस घटना ने भारत और पाकिस्तान को लगभग युद्ध के कगार पर धकेल दिया।

भारत की कूटनीतिक प्रतिक्रिया में भारतीय उच्चायुक्त को वापस बुलाना और पाकिस्तान से नागरिक उड़ानों पर प्रतिबंध शामिल था।
इस बीच पाकिस्तान से एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम सामने आया, जहां तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ ने संसद पर हुए हमले को एक आतंकवादी कृत्य बताते हुए इसकी निंदा की। बढ़ते अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद मुशर्रफ ने निर्णायक कदम उठाते हुए जैश-ए-मुहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा समेत पांच जिहादी संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया। उन्होंने मदरसों को विनियमित करने की आवश्यकता को भी स्वीकार किया।
*प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन
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