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भारत और बांग्लादेश तीन दशक पुरानी गंगा जल संधि को नवीनीकृत करने की बना रहे योजना

गंगा नदी के जल बंटवारे के लिए भारत और बांग्लादेश लगभग तीन दशक पुरानी संधि को नवीनीकृत करने के लिए बातचीत आरंभ करने की तैयारी कर रहे हैं, वहीं जल प्रवाह पर जलवायु संकट का प्रभाव और पश्चिम बंगाल सरकार की भूमिका इस समझौते में महत्वपूर्ण कारक बनकर उभर रहे हैं।
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भारत और बांग्लादेश द्वारा साझा की जाने वाली 54 नदियों में से एक गंगा नदी भी है। इस नदी के जल बंटवारे को लेकर लंबे समय से चले आ रहे मतभेदों को दिसंबर 1996 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा और उनकी बांग्लादेशी समकक्ष शेख हसीना द्वारा "गंगा जल संधि" पर हस्ताक्षर करने के साथ सुलझा लिया गया था।
इस संधि का नवीनीकरण 2026 में होना है और पिछले महीने हसीना की नई दिल्ली की आधिकारिक यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि दोनों पक्षों ने इसे नवीनीकृत करने के लिए तकनीकी वार्ता आरंभ करने का निर्णय किया है।

दोनों देशों द्वारा किए गए तैयारी कार्य से परिचित अधिकारियों ने नाम न बताने की शर्त पर स्थानीय मीडिया को बताया कि जलवायु संकट का गंगा के प्रवाह पर प्रभाव एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जिसे वार्ता में सम्मिलित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह एक ऐसा कारक है जिसका भारत से होकर गुजरने वाली कई सीमा पार नदियों के प्रवाह पर प्रभाव पड़ा है।

इसके अतिरिक्त उन्होंने कहा कि "गंगा पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर अध्ययन वार्ता का एक प्रमुख हिस्सा होना चाहिए, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि संधि प्रासंगिक और भविष्य-सुरक्षित बनी रहे, तथा इसमें सभी संभावित परिदृश्यों और आकस्मिकताओं को सम्मिलित किया जाए।"
एक दूसरे व्यक्ति ने कहा, "संधि को नवीनीकृत करने के प्रयासों में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री की भूमिका महत्वपूर्ण होगी, क्योंकि हमारे पास नवीनीकरण पर बातचीत के लिए केवल 18 महीने का समय है।"
बता दें कि बनर्जी ने हाल ही में प्रधानमंत्री को एक पत्र भेजा था जिसमें उन्होंने तर्क दिया था कि गंगा जल संधि को नवीनीकृत करने का कदम “एकतरफा” था और पश्चिम बंगाल सरकार से परामर्श नहीं किया गया था। हालांकि, लोगों ने बताया कि केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने जुलाई 2023 में एक आंतरिक समिति का गठन किया था जिसमें बिहार और पश्चिम बंगाल सरकारों के प्रतिनिधि सम्मिलित थे।
वर्तमान में संधि की शर्तों के अनुसार, जब फरक्का बैराज में पानी की उपलब्धता 70,000 क्यूसेक या उससे कम होती है, तो भारत और बांग्लादेश बराबर-बराबर पानी बांटते हैं। जब उपलब्धता 70,000 से 75,000 क्यूसेक होती है, तो बांग्लादेश को 35,000 क्यूसेक और भारत को "प्रवाह का शेष भाग" मिलता है। जब उपलब्धता 75,000 क्यूसेक या उससे अधिक होती है, तो भारत को 40,000 क्यूसेक और बांग्लादेश को प्रवाह का शेष भाग मिलता है।
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