सोनू सैनी ने कहा, "आज की परस्पर जुड़ी "वैश्विक दुनिया" में राष्ट्र अक्सर व्यापार, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और संसाधनों को साझा करते हैं, साथ ही अर्थव्यवस्थाएं भी एक-दूसरे पर निर्भर होती हैं। जब किसी देश पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए जाते हैं, तो उनका प्रभाव शायद ही कभी उस देश तक सीमित होता है, बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से संबंधित अन्य देशों को भी प्रभावित करता है। सबसे अधिक प्रभावित अक्सर कमज़ोर देश होते हैं, जो विकास के शुरुआती चरण में होते हैं और जो बाहरी सहायता पर निर्भर होते हैं।"
सैनी कहते हैं, "अर्थव्यवस्था को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने से छोटे देश बुरी तरह से प्रभावित होते हैं और इसमें कुछ मामलों में, मानवीय संकटों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है, और ज़रूरतमंदों को इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ता है।"
प्रोफेसर ने बातया, "यह रूस के खिलाफ कुछ पश्चिमी देशों द्वारा छेड़े गए छद्म युद्ध जैसा है। रूस और यूक्रेन के लोग इस तरह की नव-औपनिवेशिक कार्रवाइयों की कीमत चुका रहे हैं, जबकि पश्चिमी दुनिया भी इसके परिणामस्वरूप आर्थिक अस्थिरता और पारिस्थितिक क्षरण से पीड़ित है।"