प्रोफ़ेसर मयंक श्रीवास्तव कहते हैं, "सेमीकंडक्टर निर्माण अत्यधिक जटिल है, और इस क्षमता को हासिल करना उच्च तकनीक वाले क्षेत्रों में भारत की ताकत को दर्शाता है। यह वैश्विक नेताओं को एक मज़बूत संदेश भेजता है और भू-राजनीतिक संतुलन को प्रभावित करता है। अगर भारत इस प्रयास को बनाए रख सकता है और आगे बढ़ा सकता है, तो यह वैश्विक भू-राजनीति को नया रूप दे सकता है।"
उन्होंने जोर देकर कहा, "भारत विकासशील और विकसित दोनों देशों को चिप्स की आपूर्ति करके एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता बन सकता है। ऐसा करने से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में भारत की स्थिति और अधिक प्रभावशाली होगी, खासकर अगर भारत ऐसी महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी उपलब्ध करा सके, जो प्रतिबंधों या आपूर्ति श्रृंखला की बाधाओं के कारण अन्य देशों के लिए सुलभ नहीं है। हालांकि, भारत को अपने स्थायी प्रभाव को सुनिश्चित करने के लिए इस दिशा में अपने प्रयास लंबे समय तक, सुसंगत और निरंतर जारी रखने होंगे।"
सेमीकंडक्टर क्षेत्र में जानकारी रखने वाले श्रीवास्तव कहते हैं, "यदि नीति प्रभावी है, तो यह राज्य में इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा दे सकती है। हालांकि, नीति को दीर्घकालिक रूप से टिकाऊ होना चाहिए। वर्तमान में, नीति घरेलू कंपनियों की तुलना में अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के पक्ष में प्रतीत होती है। मेरा मानना है कि इसमें संतुलन होना चाहिए, जिससे स्थानीय और वैश्विक दोनों खिलाड़ियों को लाभ मिल सके।"
भारतीय विज्ञान संस्थान के प्रोफेसर मयंक श्रीवास्तव कहते हैं, "वर्तमान में, अधिकांश डिज़ाइन कार्य भारत के बाहर होते हैं, जिसका अर्थ है कि घटकों के बारे में निर्णय विदेश में लिए जाते हैं। इसे बदलने के लिए, भारत को स्थानीय डिज़ाइन और विनिर्माण को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।"