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भारत की सेमीकंडक्टर क्रांति: वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव का संकेत

हाल के वर्षों में भारत ने अंतर्राष्ट्रीय सेमीकंडक्टर बाज़ार में बड़े स्तर पर काम करना शुरू कर दिया है जिससे भविष्य में देश सेमीकंडक्टर निर्माण का केंद्र बन सके।
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भारत ने सेमीकंडक्टर निर्माण में बहुत तेजी से प्रगति की है, जिसकी पांच इकाइयां वर्तमान में बन रही हैं। पिछले साल भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सेमीकॉन इंडिया 2024 का उद्घाटन किया था जिसमें भारत की सेमीकंडक्टर रणनीति और नीति को प्रदर्शित किया गया, जिसका उद्देश्य भारत को सेमीकंडक्टर के लिए वैश्विक केंद्र बनाना था।
इसके अलावा, हाल ही में भारत के केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने घोषणा की कि भारत का पहला स्वदेशी रूप से विकसित सेमीकंडक्टर चिप 2025 तक उत्पादन के लिए तैयार हो जाएगा।
मध्य प्रदेश में दो इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण क्लस्टरों को मंजूरी दी गई है, एक राज्य की राजधानी भोपाल में और दूसरा जबलपुर में। मध्य प्रदेश में 85 कंपनियाँ इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में सक्रिय रूप से शामिल हैं, जो इस क्षेत्र के तेज़ विस्तार को दर्शा रही हैं।
भारत की पहली स्वदेशी सेमीकंडक्टर चिप के वैश्विक तकनीकी बाजार और विश्व पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में Sputnik India ने बैंगलोर स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान के इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम इंजीनियरिंग विभाग में प्रोफेसर और AGNIT सेमीकंडक्टर्स प्राइवेट लिमिटेड के सह-संस्थापक मयंक श्रीवास्तव से बात की।
उन्होंने बताया कि "यह सिर्फ़ भारत की पहली चिप के बारे में नहीं है। इसका असली महत्व भारत की घरेलू स्तर पर सेमीकंडक्टर चिप्स बनाने की क्षमता में निहित है।"

प्रोफ़ेसर मयंक श्रीवास्तव कहते हैं, "सेमीकंडक्टर निर्माण अत्यधिक जटिल है, और इस क्षमता को हासिल करना उच्च तकनीक वाले क्षेत्रों में भारत की ताकत को दर्शाता है। यह वैश्विक नेताओं को एक मज़बूत संदेश भेजता है और भू-राजनीतिक संतुलन को प्रभावित करता है। अगर भारत इस प्रयास को बनाए रख सकता है और आगे बढ़ा सकता है, तो यह वैश्विक भू-राजनीति को नया रूप दे सकता है।"

पिछले एक दशक में भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र की प्रगति का उदाहरण देते हुए प्रोफ़ेसर श्रीवास्तव ने बताया कि भारत का इस क्षेत्र में प्रवेश, अंतरिक्ष उद्योग में इसकी सफलता की तरह ही एक गेम-चेंजर हो सकता है। आज, भारत को वैश्विक अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी चर्चाओं में गंभीरता से लिया जाता है। सेमीकंडक्टर के साथ भी ऐसा ही बदलाव हो सकता है, जिससे भारत को वैश्विक मंचों पर एक मजबूत आवाज मिलेगी।

उन्होंने जोर देकर कहा, "भारत विकासशील और विकसित दोनों देशों को चिप्स की आपूर्ति करके एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता बन सकता है। ऐसा करने से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में भारत की स्थिति और अधिक प्रभावशाली होगी, खासकर अगर भारत ऐसी महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी उपलब्ध करा सके, जो प्रतिबंधों या आपूर्ति श्रृंखला की बाधाओं के कारण अन्य देशों के लिए सुलभ नहीं है। हालांकि, भारत को अपने स्थायी प्रभाव को सुनिश्चित करने के लिए इस दिशा में अपने प्रयास लंबे समय तक, सुसंगत और निरंतर जारी रखने होंगे।"

हाल ही में मध्य प्रदेश राज्य के नए आईटी परिसर के इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र में योगदान पर प्रोफेसर ने बताया कि मध्य प्रदेश सरकार ने हाल ही में वैश्विक निवेशक शिखर सम्मेलन में एक सेमीकंडक्टर नीति की घोषणा की, "ऐसी नीतियों को सब्सिडी और प्रोत्साहन देकर उद्योगों को आकर्षित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।"

सेमीकंडक्टर क्षेत्र में जानकारी रखने वाले श्रीवास्तव कहते हैं, "यदि नीति प्रभावी है, तो यह राज्य में इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा दे सकती है। हालांकि, नीति को दीर्घकालिक रूप से टिकाऊ होना चाहिए। वर्तमान में, नीति घरेलू कंपनियों की तुलना में अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के पक्ष में प्रतीत होती है। मेरा मानना ​​है कि इसमें संतुलन होना चाहिए, जिससे स्थानीय और वैश्विक दोनों खिलाड़ियों को लाभ मिल सके।"

भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात में मोबाइल फोन के वर्चस्व के साथ, अन्य क्षेत्रों में सेमीकंडक्टर की सफलता के नए अवसरों पर बात करते हुए प्रोफेसर मयंक श्रीवास्तव ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक्स मंत्रालय के समर्थन की बदौलत भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण उद्योग तेजी से बढ़ रहा है। हालांकि, "हमें इलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकंडक्टर क्षेत्रों को वास्तव में जोड़ने के लिए विनिर्माण के अगले स्तर पर जाने की जरूरत है।"

भारतीय विज्ञान संस्थान के प्रोफेसर मयंक श्रीवास्तव कहते हैं, "वर्तमान में, अधिकांश डिज़ाइन कार्य भारत के बाहर होते हैं, जिसका अर्थ है कि घटकों के बारे में निर्णय विदेश में लिए जाते हैं। इसे बदलने के लिए, भारत को स्थानीय डिज़ाइन और विनिर्माण को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।"

अंत में उन्होंने बताया कि यह बदलाव "पूरी तरह से स्वदेशी आपूर्ति श्रृंखला बनाएगा, जहाँ इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के लिए घटक भारत के भीतर डिज़ाइन, निर्मित और असेंबल किए जाएँगे। इससे भारत की आत्मनिर्भरता बढ़ेगी और इलेक्ट्रॉनिक्स पारिस्थितिकी तंत्र मजबूत होगा।"
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