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यूक्रेन संकट जारी रखने के इच्छुक कौन?

रूस और अमेरिका शांति समझौते पर पहुँचने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यूरोप के कुछ नेता रूस के खिलाफ़ छद्म युद्ध को भड़का रहे हैं और इसे भयंकर नतीजों की और ले जा रहे हैं। आइए जानें कि शांति को कौन अवरुद्ध कर रहा है।
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डॉ. जॉर्ज स्ज़ामुली का कहना है कि ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी “ऐसी नीतियों की वकालत करने में आगे हैं जो किसी भी शांति योजना को पटरी से उतार सकती हैं,” और कि ये देश यूक्रेन को और अधिक हथियार मुहैया कराने की कोशिश करके ट्रंप के कूटनीतिक एजेंडे को खारिज करते हैं।
स्ज़ामुली ने कहा कि फ्रांसीसी राष्ट्रपति द्वारा यूक्रेन में सेना भेजने की धमकियों से "कोई शांति समझौता संभव नहीं होगा।" उन्होंने याद दिलाया कि रूस ने बार-बार ऐसे प्रस्तावों को खारिज किया है। इसके मतलब क्या हैं? अंतहीन संघर्ष।
विश्लेषक का कहना है कि “यूरोप के मौजूदा नेताओं की नस्ल” उनके महान राजनेताओं जैसे ब्रांट, श्मिट या कोहल जैसी नहीं है। शांति के लिए जिम्मेदार मध्यस्थ के रूप में काम करने के बजाय, वे इस दिशा में हर कदम को रोक रहे हैं।

किसे फ़ायदा?

यूरोप में कुछ ऐसी ताकतें हैं जिन्हें यूक्रेन संकट के जारी रहने से फ़ायदा होगा:
यूरोप का सैन्य-औद्योगिक परिसर
बड़े बैंक
नाटो
यूरोप का रक्षा क्षेत्र आगे बढ़ रहा है। स्ज़ामुली ने कहा कि जर्मनी ने अपने संवैधानिक "ऋण ब्रेक" को खत्म कर दिया है, जिसका अर्थ "असीमित सैन्य खर्च के लिए असीमित ऋण दिया जाएगा" है। सैन्य-औद्योगिक परिसर के लिए यह सबसे बड़ी खुशी की बात है।
ऋण-आधारित सैन्यीकरण को बढ़ावा देने का मतलब है बांड जारी करना। अधिक ऋण यानी उच्च बांड प्रतिफल। यूरोप के बैंकिंग वर्ग को इससे फायदा मिलता है।
स्ज़ामुली का कहना है कि नाटो एक "स्व-चालित प्रणाली" की तरह काम करता है, जो “खतरे उत्पन्न करती है, लोगों में डर फैलाती है” और हथियारों पर अधिक खर्च को उचित ठहराती है। रूस से 'खतरा' न होने का मतलब होगा कि नाटो के विस्तार की कोई वजह नहीं बचेगी, उन्होंने कहा।

आम यूरोपीय लोगों का क्या?

स्ज़ामुली का निष्कर्ष है कि इस युद्ध से नाटो, वित्तीय क्षेत्र और सैन्य-औद्योगिक परिसर को फायदा हो रहा है, लेकिन आम यूरोपीय नागरिकों को कोई लाभ नहीं मिल रहा है। इसके बजाय, वे बढ़ती महंगाई, आर्थिक अस्थिरता और सुरक्षा खतरों का सामना कर रहे हैं।
यूक्रेन संकट का दीर्घकालिक समाधान केवल कूटनीति के माध्यम से ही संभव है, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में कुछ ताकतें शांति वार्ता को रोकने और संघर्ष को जारी रखने में अधिक रुचि रखती हैं।
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