संकरे और तंग जगहों पर होने वाले संघर्ष के लिए आवश्यक इन कार्बाइनों का उत्पादन स्वदेशी कंपनियां भारत फोर्ज और अडानी समूह की कंपनी पीएलआर सिस्टम मिलकर करेंगे।
लगभग 2770 करोड़ रुपए के इस सौदे के तहत अगले साल तक यह कार्बाइन भारतीय सेना को मिलना प्रारंभ हो जाएगी और दो साल में सभी 4.25 लाख कार्बाइन भारतीय सेना को मिल जाएंगी। भारतीय सेना में अभी दशकों पुरानी कार्बाइन थीं और कई सालों से उन्हें बदलकर आधुनिक कार्बाइन लेने की तैयारी चल रही थी।
भारतीय सेना की इन्फेंट्री के महानिदेशक ले. जनरल अजय कुमार ने जानकारी दी कि शूट टू किल के सिद्धांत को अपनाते हुए अब भारतीय सेना अपनी राइफलों के कैलिबर को 5.56 मिमी से बढ़ाकर 7.62 मिमी कर रही है।
भारतीय सेना इस समय 5.56 मिमी कैलिबर की स्वदेशी इंसास राइफल का प्रयोग करती है, लेकिन अब उसका स्थान 7.62 मिमी कैलिबर की एके-203 राइफल ले रही है। एके-203 का उत्पादन भारत-रूस मिलकर उत्तर प्रदेश के अमेठी में कर रहे हैं।
जनरल कुमार ने बताया कि टैंक रोधी मिसाइलों (ATGM) की खरीद भी की जा रही है। अभी भारतीय सेना दूसरी पीढ़ी के ATGM प्रयोग करती है जिनका स्थान अब चौथी पीढ़ी के अत्याधुनिक ATGM लेंगे। संचार और चौकसी पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। सेना के संचार में अब अत्याधुनिक सॉफ्टवेयर रेडियो का प्रयोग किया जाएगा।
निगरानी और चौकसी के लिए बेहतर रडारों के अतिरिक्त बड़ी तादाद में निगरानी करने वाले ड्रोन खरीदे जा रहे हैं। पैदल सैनिकों की सुरक्षा के लिए हल्की और ज्यादा मज़बूत बुलेटप्रूफ जैकेट और हैल्मट के अतिरिक्त बड़ी तादाद में रात में देखने वाली साइट खरीदी जा रही हैं।