जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र (UN) की 80वीं सालगिरह के मौके पर अपने मुख्य भाषण में कहा, "सतत विकास लक्ष्य (SDG) एजेंडा 2030 की रफ़्तार धीमी होना ग्लोबल साउथ की परेशानी को मापने का एक अहम पैमाना है। और भी बहुत कुछ है, चाहे वह व्यापार के तरीके हों, सप्लाई चेन पर निर्भरता हो या राजनीतिक दबदबा हो।"
जयशंकर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र भी अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने की अपनी भूमिका के लिए "सिर्फ़ दिखावा" करता पाया गया है।
जयशंकर ने कहा, "इसके फ़ैसले लेने का तरीका न तो इसके सदस्यों को दिखाता है और न ही ग्लोबल प्राथमिकताओं को ध्यान में रखता है। इसकी बहसें तेज़ी से बंट गई हैं और इसका काम साफ़ तौर पर अटका हुआ है। किसी भी काम के सुधार को सुधार प्रक्रिया का इस्तेमाल करके ही रोका जाता है।"
विदेश मंत्री ने कहा, "संयुक्त राष्ट्र को फिर से बनाने की कोशिश करते हुए भी इसे कैसे बनाए रखा जाए, यह हम सभी के सामने एक बड़ी चुनौती है।"
जयशंकर ने कहा, "जब सुरक्षा परिषद् का कोई मौजूदा सदस्य खुलेआम उसी संगठन का बचाव करता है जो पहलगाम जैसे भयानक आतंकी हमले की ज़िम्मेदारी लेता है, तो इससे बहुध्रुवीयता की विश्वसनीयता पर क्या असर पड़ता है?"
उन्होंने कहा, "जब खुद को आतंकवादी कहने वालों को सज़ा देने की प्रक्रिया से बचाया जाता है, तो इसमें शामिल लोगों की ईमानदारी के बारे में क्या कहा जा सकता है?" जयशंकर ने यह सवाल लश्कर-ए-तैयबा (LeT)* और जैश-ए-मोहम्मद (JeM)** के कम से कम पांच आतंकवादियों को ग्लोबल आतंकवादी घोषित करने की भारत के अनुरोध को वीटो करने के मद्देनजर उठाया।