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विदेश मंत्री जयशंकर ने 'राजनीतिक दबदबे' को एक बड़ी वैश्विक चिंता बताया

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External Affairs Minister S Jaishankar - Sputnik भारत, 1920, 24.10.2025
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भारत के वरिष्ठ राजनयिक ने संयुक्त राष्ट्र में सुधारों की अपनी मांग दोहराते हुए कहा है कि सही सुधारों में रुकावट और बढ़ती वित्तीय दिक्कतें वैश्विक प्रशासन संस्था को बेअसर बना रही हैं।
संयुक्त राष्ट्र (UN) सिधार प्रक्रिया में प्रोग्रेस की कमी की आलोचना करते हुए विदेश मंत्री (EAM) जयशंकर ने शुक्रवार को कहा कि ग्लोबल साउथ में विकास और सामाजिक-आर्थिक प्रगति पक्का करने के अपने मकसद में संयुक्त राष्ट्र पीछे रह गया है।

जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र (UN) की 80वीं सालगिरह के मौके पर अपने मुख्य भाषण में कहा, "सतत विकास लक्ष्य (SDG) एजेंडा 2030 की रफ़्तार धीमी होना ग्लोबल साउथ की परेशानी को मापने का एक अहम पैमाना है। और भी बहुत कुछ है, चाहे वह व्यापार के तरीके हों, सप्लाई चेन पर निर्भरता हो या राजनीतिक दबदबा हो।"

ट्रंप प्रशासन के तहत अमेरिकी टैरिफ नीति भारत और दूसरे विकासशील देशों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बन गई है, जो कुछ जगहों से ग्लोबल सप्लाई चेन को डी-रिस्क करने की कोशिश कर रहे हैं।

जयशंकर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र भी अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने की अपनी भूमिका के लिए "सिर्फ़ दिखावा" करता पाया गया है।

भारत के विदेश मंत्री ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र में सब ठीक नहीं है।

जयशंकर ने कहा, "इसके फ़ैसले लेने का तरीका न तो इसके सदस्यों को दिखाता है और न ही ग्लोबल प्राथमिकताओं को ध्यान में रखता है। इसकी बहसें तेज़ी से बंट गई हैं और इसका काम साफ़ तौर पर अटका हुआ है। किसी भी काम के सुधार को सुधार प्रक्रिया का इस्तेमाल करके ही रोका जाता है।"

इसके अलावा, जयशंकर ने कहा कि उभरती वित्तीय दिक्कतें संयुक्त राष्ट्र संस्थाओं के लिए एक और चिंता का विषय बन गई हैं। यह बात ट्रंप प्रशासन के इस साल विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), यूनेस्को और पेरिस जलवायु समझौते से हटने और संयुक्त राष्ट्र बजट से 500 मिलियन डॉलर की फंडिंग में कटौती करने के फैसलों के बीच आई है।

विदेश मंत्री ने कहा, "संयुक्त राष्ट्र को फिर से बनाने की कोशिश करते हुए भी इसे कैसे बनाए रखा जाए, यह हम सभी के सामने एक बड़ी चुनौती है।"

भारतीय विदेश मंत्री ने कहा कि आतंकवाद पर संयुक्त राष्ट्र का जवाब एक और बड़ी चुनौती है।

जयशंकर ने कहा, "जब सुरक्षा परिषद् का कोई मौजूदा सदस्य खुलेआम उसी संगठन का बचाव करता है जो पहलगाम जैसे भयानक आतंकी हमले की ज़िम्मेदारी लेता है, तो इससे बहुध्रुवीयता की विश्वसनीयता पर क्या असर पड़ता है?"

जयशंकर ने आतंकवाद के पीड़ितों और अपराधियों को एक जैसा मानने के ट्रेंड पर भी चिंता जताई।

उन्होंने कहा, "जब खुद को आतंकवादी कहने वालों को सज़ा देने की प्रक्रिया से बचाया जाता है, तो इसमें शामिल लोगों की ईमानदारी के बारे में क्या कहा जा सकता है?" जयशंकर ने यह सवाल लश्कर-ए-तैयबा (LeT)* और जैश-ए-मोहम्मद (JeM)** के कम से कम पांच आतंकवादियों को ग्लोबल आतंकवादी घोषित करने की भारत के अनुरोध को वीटो करने के मद्देनजर उठाया।

*संयुक्त राष्ट्र से प्रतिबंधित आतंकवादी समूह
**संयुक्त राष्ट्र से प्रतिबंधित आतंकवादी समूह
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