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दिवालिया श्रीलंका संकट के बाद पहला चुनाव कराने जा रहा है
दिवालिया श्रीलंका संकट के बाद पहला चुनाव कराने जा रहा है
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कोरोना महामारी के कारण एक साल की देरी के बाद श्रीलंका में स्थानीय सरकार की चुनाव प्रक्रिया फरवरी के अंत से पहले संपन्न हो जाएंगे।
2023-01-04T18:29+0530
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कोरोना महामारी के कारण एक साल की देरी के बाद श्रीलंका में स्थानीय सरकार की चुनाव प्रक्रिया फरवरी के अंत से पहले संपन्न हो जाएंगे।दरअसल अपदस्थ पूर्ववर्ती राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे की जगह लेने वाले रानिल विक्रमसिंघे को मतदान में शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा, क्योंकि वे संसद में अपनी पार्टी के एकमात्र प्रतिनिधि थे।छह बार प्रधानमंत्री रहे 73 वर्षीय विक्रमसिंघे ने राजपक्षे की एसएलपीपी पार्टी के समर्थन से राजपक्षे को बदलने के लिए संसदीय चुनाव में जीत तो हासिल कर लिया, लेकिन उनके पास कोई लोकप्रिय जनादेश नहीं है।मालूम हों कि साल 2018 में पिछले स्थानीय चुनावों में विक्रमसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी ने 340 परिषदों में से केवल 10 प्रतिशत जीत हासिल की, जबकि एसएलपीपी को 231 सीटें मिलीं थीं।विक्रमसिंघे ने यह कहते हुए चुनावों को रोकने का प्रयास किया कि दिवालिया देश 10 बिलियन रुपये (27.6 मिलियन डॉलर) खर्च नहीं कर सकता है। लेकिन चुनाव आयोग ने कहा कि 8,000 से अधिक पार्षद पदों के लिए नामांकन 18 से 21 जनवरी तक होगा, जिसके बाद 28 दिनों के भीतर मतदान होगा।हालाँकि फरवरी में निर्धारित स्थानीय चुनाव से वर्तमान राष्ट्रीय प्रशासन पर किसी तरह का प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि संवैधानिक तौर पर राष्ट्रपति चुनाव साल 2024 की अंतिम तिमाही तक नहीं हो सकता है।
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श्रीलंका चुनाव राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे यूनाइटेड नेशनल पार्टी एसएलपीपी पार्टी
श्रीलंका चुनाव राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे यूनाइटेड नेशनल पार्टी एसएलपीपी पार्टी
दिवालिया श्रीलंका संकट के बाद पहला चुनाव कराने जा रहा है
श्रीलंका वर्तमान समय में विदेशी मुद्रा भंडार की कमी के कारण सबसे खराब आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है।
कोरोना महामारी के कारण एक साल की देरी के बाद
श्रीलंका में
स्थानीय सरकार की चुनाव प्रक्रिया फरवरी के अंत से पहले संपन्न हो जाएंगे।
दरअसल अपदस्थ पूर्ववर्ती राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे की जगह लेने वाले रानिल विक्रमसिंघे को मतदान में शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा, क्योंकि वे संसद में अपनी पार्टी के एकमात्र प्रतिनिधि थे।
छह बार प्रधानमंत्री रहे 73 वर्षीय विक्रमसिंघे ने राजपक्षे की एसएलपीपी पार्टी के समर्थन से राजपक्षे को बदलने के लिए संसदीय चुनाव में जीत तो हासिल कर लिया, लेकिन उनके पास कोई लोकप्रिय जनादेश नहीं है।
मालूम हों कि साल 2018 में पिछले स्थानीय चुनावों में विक्रमसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी ने 340 परिषदों में से केवल 10 प्रतिशत जीत हासिल की, जबकि एसएलपीपी को 231 सीटें मिलीं थीं।
विक्रमसिंघे ने यह कहते हुए चुनावों को रोकने का प्रयास किया कि दिवालिया देश 10 बिलियन रुपये (27.6 मिलियन डॉलर)
खर्च नहीं कर सकता है। लेकिन चुनाव आयोग ने कहा कि 8,000 से अधिक पार्षद पदों के लिए नामांकन 18 से 21 जनवरी तक होगा, जिसके बाद 28 दिनों के भीतर मतदान होगा।
हालाँकि फरवरी में निर्धारित स्थानीय चुनाव से वर्तमान राष्ट्रीय प्रशासन पर किसी तरह का प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि संवैधानिक तौर पर राष्ट्रपति चुनाव साल 2024 की अंतिम तिमाही तक नहीं हो सकता है।