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क्या है और क्यों है होलिका दहन?

© Photo : Social Media Holika Dahan
Holika Dahan - Sputnik भारत, 1920, 07.03.2023
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भारतीय मान्यताओं के अनुसार होलिका दहन की अग्नि की लपटें बहुत शुभकारी होती हैं। होलिका दहन की अग्नि में हर चिंता खाक हो जाती है, दुखों का नाश हो जाता है और इच्छाओं को पूर्ण होने का वरदान मिलता है। बुराई पर अच्छाई की जीत के इस पर्व में जितना महत्व रंगों का है उतना ही होलिका दहन का भी है।
होलिका दहन होली के एक दिन पूर्व रात्रि में मनाया जाता है। यह त्योहार हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है। होलिका दहन के इस त्योहार को भारत के साथ नेपाल के भी कई हिस्सों में मनाया जाता है।
इस पर्व का उदेश्य बुराई पर अच्छाई की जीत के रुप में मनाया जाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार यह पर्व फाल्गुन माह की पूर्णिमा की तिथि को मनाया जाता है परंतु वर्ष 2023 में मार्च के महीने में मनाया जायेगा। इस दिन रात में लोग लकड़ियो तथा उपलो की होलिका बनाकर उसे जलाते हैं और ईश्वर से अपनी इच्छापूर्ति पूरी होने की प्राथना करते हैं।

होलिका दहन क्यों मनाया जाता है?

प्राचीन कथा के अनुसार, सतयुग में हिरणकश्यप नामक एक अभिमानी राजा हुआ करता था और अपनी शक्तियों के मद में चूर वह स्वंय को भगवान समझने लगा था। उसका आदेश था कि हर कोई भगवान की जगह उसकी पूजा करें। राज्य के सभी लोग उसका आदेश का पालन करने पर विवष हो गए क्यूंकि जो कोई उसके आदेश के खिलाफ जाता उसे वह मृत्यु दंड देता। राज्य के सभी लोग आदेश मान लिए परंतु स्वंय उसके पुत्र प्रहलाद ने उसकी पूजा करने से इंकार कर दिया।

इस बात से क्रोधित होकर हिरणकश्यप ने प्रहलाद को मृत्यु दंड देने का फैसला किया, हिरणकश्यप का हर वार असफल जाता था क्यूंकि भगवान विष्णु ने हर बार भक्त प्रहलाद की रक्षा की और इस तरह से अपनी सारी योजनाएं विफल होते देख, हिरणकश्यप ने अपनी बहन होलिका के साथ मिलकर प्रहलाद को अग्नि में जलाकर मारने की योजना बनाई, जिसमें होलिका प्रहलाद को लेकर चिता पर बैठी क्योंकि होलिका को अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त हुआ था जिससे उसे ऐसी चादर मिली हुई थी जो आग में नही जलती थी।

हिरणकश्यप को यकीन था की होलिका अग्नि में सुरक्षित बच जायेगी और प्रहलाद जलकर भस्म हो जायेगा। लेकिन जैसी ही होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि समाधि में बैठी वह चादर वायु के वेग से उड़कर प्रहलाद पर जा पड़ी और होलिका शरीर पर चादर न होने की वजह से वह वहीं जलकर भस्म हो गई। तभी से इस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के रुप में होलिका दहन का पर्व बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है।

होलिका दहन कैसे मनाया जाता है?

होलिका दहन की तैयारी कई दिन पहले से ही शुरु कर दी जाती है। इसमें गांव, कस्बों तथा मुहल्लों के लोगो द्वारा होलिका के लिए लकड़ी को इकठ्ठा करना शुरु कर दिया जाता है। इस इकठ्ठी की गयी लकड़ी से होलिका बनायी जाती है, होलिका को बनाने में गोबर के उपलों का भी प्रयोग किया जाता है।
तत्पश्चात होलिका दहन की रात शुभ मूहर्त देखकर इसे जलाया जाता है, होलिका की इस अग्नि को देखने के लिए पूरे क्षेत्र के लोग इकठ्ठे होते हैं और अपनी व्यर्थ तथा अपवित्र चीजें इसमें फेंक देते हैं। व्यर्थ चीजें जलाने का कारन है कि अग्नि हर बुरी चीज का नाश कर देती हैं और हमें प्रकाश प्रदान करने के साथ हमारी रक्षा भी करती है।
लोग कहते हैं ऐसा करने से शरीर की अपवित्रता और दुर्भाव अग्नि में नष्ट हो जाते हैं। कई लोग बुरे साये से बचने के लिए होलिका की अग्नि की राख को अपने माथे पर लगाते हैं जिससे उन्हें कोई बुरी शक्ति हानि न पंहुचा पाए और वे हमेशा मंगलमय रहें।

होलिका दहन का महत्व क्या है?

इस पर्व से हमें यह सीख मिलती है कि इंसान को कभी भी अपनी शक्ति तथा वैभव घमंड नहीं करना चाहिए, न ही कुमार्ग पर चलते अत्याचार करना चाहिए और न ही ख़ुद को भगवान का दर्जा देना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने वालों का पतन निश्चित होता है। होलिका दहन पर्व के पौराणिक किस्से हमें हमारे जीवन में अग्नि और प्रकाश के महत्व को समझाते हैं और हमें इस बात का ज्ञान कराते हैं कि ईश्वर सच्चाई के मार्ग पर चलने वालों की रक्षा अवश्य करते हैं।
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