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भारत के लिए 'पश्चिमी समूह में सम्मिलित होने के जाल में न फंसना' सही है: पूर्व पीएम के सलाहकार
भारत के लिए 'पश्चिमी समूह में सम्मिलित होने के जाल में न फंसना' सही है: पूर्व पीएम के सलाहकार
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हिरोशिमा में G7 नेताओं के शिखर सम्मेलन में अतिथि देश के रूप में प्रधान मंत्री मोदी की भागीदारी नई दिल्ली की बढ़ती भू-राजनीतिक प्रमुखता और दुनिया में आर्थिक शक्ति का संकेत है।
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जापानी शहर हिरोशिमा में इस वर्ष के G7 नेताओं के शिखर सम्मेलन में अतिथि देश के रूप में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की भागीदारी निश्चित रूप से नई दिल्ली की "बढ़ती भू-राजनीतिक प्रमुखता" और दुनिया में "आर्थिक शक्ति" का संकेत है, रणनीतिक मामलों के भारतीय विशेषज्ञ ने Sputnik को बताया।कुलकर्णी न्यू साउथ एशिया फोरम यानी एक भारतीय थिंक टैंक के प्रमुख भी हैं, जो नई दिल्ली और उसके पड़ोसी देशों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों का समर्थन करता है।"दुनिया तेजी से बदल रही है। G7 को अपनी भू-राजनीतिक उपस्थिति बढ़ाने के लिए भारत की आवश्यकता है। विशेष रूप से पश्चिम चीन का सामना करने के लिए ,वह चाहता है कि भारत उसके समूह का हिस्सा बने,” उन्होंने समझाया।उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि नई दिल्ली को "स्वतंत्र विदेश नीति" का पालन करना जारी रखना चाहिए जो दशकों से भारतीय राष्ट्रीय हितों की अच्छी सेवा कर रही है।कुलकर्णी ने टिप्पणी की कि इस समय नई दिल्ली "बहुत अनुकूल" स्थिति में है।भारत के अलावा, इस वर्ष के नेताओं की बैठक में आमंत्रित अन्य देशों की सूची में ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कोमोरोस, कुक आइलैंड्स, इंडोनेशिया (आसियान का अध्यक्ष), दक्षिण कोरिया और वियतनाम सम्मिलित हैं।G7 के अनुसार, "आउटरीच टू द ग्लोबल साउथ" इस वर्ष की बैठक के एजेंडे का एक विषय है। G7 के बयान के अनुसार, यूक्रेन में संकट, इंडो-पैसिफिक स्थिति, खाद्य और ऊर्जा मामलों सहित कई अन्य मुद्दों पर चर्चा होने वाली है।ब्रिक्स, अन्य गैर-पश्चिमी समूहों का बढ़ता प्रभावकुलकर्णी ने ब्रिक्स, SCO, खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) और अरब लीग जैसे समूहों की बढ़ती भू-राजनीतिक प्रमुखता से G7 के घटते वैश्विक प्रभाव की तुलना की।ब्रिक्स के राष्ट्रों ने इस वर्ष अपने संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद के मामले में G7 देशों को पीछे छोड़ दिया। ब्रिटिश कंसल्टेंसी के अनुसार, पांच ब्रिक्स राष्ट्र अब वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 31.5 प्रतिशत योगदान करते हैं, जबकि G7 देशों का योगदान 30.7 प्रतिशत है।ईरान और सऊदी अरब के बीच चीन की मध्यस्थता की मदद से शांति वार्ता का जिक्र करते हुए कुलकर्णी ने कहा कि बीजिंग वह करने में सक्षम हुआ जिस में अमेरिका दशकों तक असफल रहा।कुलकर्णी ने यह भी बताया कि अरब लीग में पूर्ण सदस्य के रूप में "सीरिया को पुनः सम्मिलित करना" क्षेत्रीय मामलों में अमेरिका के प्रभाव में कटौती का संकेत है।
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पश्चिमी समूह में शामिल होने के जाल में न फंसना, पूर्व भारतीय प्रधान मंत्री के सलाहकार, हिरोशिमा में g7 नेताओं का शिखर सम्मेलन, नई दिल्ली की बढ़ती भू-राजनीतिक प्रमुखता, विश्व मंच पर भारत की अनुकूल स्थिति, ब्रिक्स की बढ़ती भू-राजनीतिक प्रमुखता
पश्चिमी समूह में शामिल होने के जाल में न फंसना, पूर्व भारतीय प्रधान मंत्री के सलाहकार, हिरोशिमा में g7 नेताओं का शिखर सम्मेलन, नई दिल्ली की बढ़ती भू-राजनीतिक प्रमुखता, विश्व मंच पर भारत की अनुकूल स्थिति, ब्रिक्स की बढ़ती भू-राजनीतिक प्रमुखता
भारत के लिए 'पश्चिमी समूह में सम्मिलित होने के जाल में न फंसना' सही है: पूर्व पीएम के सलाहकार
हिरोशिमा में इस वर्ष के G7 शिखर सम्मेलन में भारत को अतिथि देश के रूप में आमंत्रित किया गया। पिछले साल जर्मनी में G7 नेताओं की बैठक में भी नई दिल्ली को अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था।
जापानी शहर हिरोशिमा में इस वर्ष के G7 नेताओं के शिखर सम्मेलन में अतिथि देश के रूप में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की भागीदारी निश्चित रूप से नई दिल्ली की "बढ़ती भू-राजनीतिक प्रमुखता" और दुनिया में "आर्थिक शक्ति" का संकेत है, रणनीतिक मामलों के भारतीय विशेषज्ञ ने Sputnik को बताया।
पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के पूर्व सलाहकार सुधीन्द्र कुलकर्णी ने कहा, "पिछले दो दशकों के दौरान G7 का वैश्विक प्रभाव घटना रहा, चाहे वह वित्तीय चाहे सामरिक संदर्भ में हो।"
कुलकर्णी न्यू साउथ एशिया फोरम यानी एक भारतीय थिंक टैंक के प्रमुख भी हैं, जो नई दिल्ली और उसके पड़ोसी देशों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों का समर्थन करता है।
"दुनिया तेजी से बदल रही है।
G7 को अपनी भू-राजनीतिक उपस्थिति बढ़ाने के लिए भारत की आवश्यकता है। विशेष रूप से पश्चिम चीन का सामना करने के लिए ,वह चाहता है कि भारत उसके समूह का हिस्सा बने,” उन्होंने समझाया।
हालांकि, कुलकर्णी ने कहा कि नई दिल्ली के लिए 'पश्चिमी समूह में सम्मिलित होने के जाल में न फंसना' सही है।
उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि नई दिल्ली को "स्वतंत्र विदेश नीति" का पालन करना जारी रखना चाहिए जो दशकों से भारतीय राष्ट्रीय हितों की अच्छी सेवा कर रही है।
उन्होंने कहा, "G20 के अध्यक्ष और एक प्रमुख उभरती आर्थिक शक्ति होने के नाते भारत को वैश्विक दक्षिण की चिंताओं को भी उजागर करना चाहिए।"
कुलकर्णी ने टिप्पणी की कि इस समय
नई दिल्ली "बहुत अनुकूल" स्थिति में है।
उन्होंने कहा, "न केवल G7 उसका सम्मान करता है, बल्कि यह ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) के साथ-साथ शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का सदस्य है।"
भारत के अलावा, इस वर्ष के नेताओं की बैठक में आमंत्रित अन्य देशों की सूची में ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कोमोरोस, कुक आइलैंड्स, इंडोनेशिया (आसियान का अध्यक्ष), दक्षिण कोरिया और वियतनाम सम्मिलित हैं।
G7 के अनुसार, "आउटरीच टू द ग्लोबल साउथ" इस वर्ष की बैठक के एजेंडे का एक विषय है। G7 के बयान के अनुसार,
यूक्रेन में संकट, इंडो-पैसिफिक स्थिति, खाद्य और ऊर्जा मामलों सहित कई अन्य मुद्दों पर चर्चा होने वाली है।
ब्रिक्स, अन्य गैर-पश्चिमी समूहों का बढ़ता प्रभाव
कुलकर्णी ने ब्रिक्स, SCO, खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) और अरब लीग जैसे समूहों की बढ़ती भू-राजनीतिक प्रमुखता से G7 के घटते वैश्विक प्रभाव की तुलना की।
"ये समूह अधिक प्रभावशाली हो रहे हैं," उन्होंने कहा।
ब्रिक्स के राष्ट्रों ने इस वर्ष अपने संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद के मामले में G7 देशों को पीछे छोड़ दिया। ब्रिटिश कंसल्टेंसी के अनुसार, पांच ब्रिक्स राष्ट्र अब वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 31.5 प्रतिशत योगदान करते हैं, जबकि G7 देशों का योगदान 30.7 प्रतिशत है।
ईरान और सऊदी अरब के बीच चीन की मध्यस्थता की मदद से शांति वार्ता का जिक्र करते हुए कुलकर्णी ने कहा कि बीजिंग वह करने में सक्षम हुआ जिस में अमेरिका दशकों तक असफल रहा।
कुलकर्णी ने यह भी बताया कि अरब लीग में पूर्ण सदस्य के रूप में "
सीरिया को पुनः सम्मिलित करना" क्षेत्रीय मामलों में अमेरिका के प्रभाव में कटौती का संकेत है।
“पश्चिम सीरिया की अरब लीग में सदस्यता के कारण नाखुश है,” कुलकर्णी ने कहा। इसके साथ उन्होंने बताया कि सऊदी अरब और अन्य क्षेत्रीय शक्तियों ने उसकी राय पर कोई ध्यान नहीं दिया है।