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प्रोफेसर साजी वर्गीज की नारियल के सूखे पत्तों से बनी स्ट्रॉ की विदेशों में धूम
प्रोफेसर साजी वर्गीज की नारियल के सूखे पत्तों से बनी स्ट्रॉ की विदेशों में धूम
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कर्नाटक राज्य की राजधानी बेंगलुरु में स्थित क्राइस्ट यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी के एसोसिएट प्रोफेसर साजी वर्गीज उन चंद लोगों में हैं जिन्होंने पर्यावरण के अनुकूल समाज को ऐसा विकल्प दिया जिससे देश और दुनिया में क्रांति आ गई है।
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भारत में कर्नाटक राज्य की राजधानी बेंगलुरु में स्थित क्राइस्ट यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी के एसोसिएट प्रोफेसर साजी वर्गीज उन चंद लोगों में हैं जिन्होंने पर्यावरण के अनुकूल समाज को ऐसे विकल्प दिए जिससे देश और दुनिया में क्रांति आ गई है।अक्सर आप लोगों ने किसी भी रेस्तरां, ढाबा या पांच सितारा होटल में स्ट्रॉ का इस्तेमाल कभी न कभी तो जरूर किया होगा, और अगर आपने ध्यान दिया होगा तो यह सभी स्ट्रॉ प्लास्टिक की थी। ऐसी ही प्लास्टिक की स्ट्रॉ को हटाने के लिए एसोसिएट प्रोफेसर साजी वर्गीज ने नारियल के सूखे पत्तों से स्ट्रॉ बनाया जो हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में एक बड़ा बदलाव लाया, न केवल देश में बल्कि दुनिया भर से उन्हें इन स्ट्रॉ के ऑर्डर मिल रहे हैं। आइये आगे उन्हीं से जानें कि कैसे साजी वर्गीज ने यह कारनामा किया!Sputnik ने बेंगलुरु के क्राइस्ट यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी के एसोसिएट प्रोफेसर साजी वर्गीज से बात की तब उन्होनें बताया कि यूनिवर्सिटी कैंपस में घूमते हुए एक दिन उन्होंने जमीन पर गिरे सूखे नारियल के पत्ते को देखा तो सूखे पत्ते को देख कर साजी ने सोचा कि इस पत्ते से वह पर्यावरण को प्रभावित करने वाले प्लास्टिक की स्ट्रॉ को बदल सकते हैं, और यहीं से शुरुआत हुई सनबर्ड स्ट्रॉ की जिसके बाद फिर शुरू हुआ प्रयोगों का सिलसिला जिसके बाद प्रोफेसर की कड़ी मेहनत के बाद वे आखिर में सूखे नारियल के पत्तों से ड्रिंकिंग स्ट्रॉ बनाने में कामयाब हुए।स्ट्रॉ को कैसे बनाया जाता हैदक्षिण भारत में नारियल के पेड़ सबसे अधिक मात्रा में मिलते हैं, जिसकी वजह से उनके पत्ते प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, आमतौर पर या तो इन्हें फेंक दिया जाता है या जल दिया जाता है। इन पत्तों का सही इस्तेमाल प्रोफेसर साजी वर्गीस ने किया। उन्होंने नारियल के पत्तों से स्ट्रॉ विकसित किया जो प्लास्टिक स्ट्रॉ का एक पर्यावरण-अनुकूल विकल्प है। उन्होंने Sputnik की टीम को बताया कि उन्होंने अपनी टीम की मदद से बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए इन-हाउस मशीनरी विकसित की और आगे उन्होंने नारियल के पत्तों के तिनके बनाए जो 3 मिमी से 13 मिमी तक थे।कितनी मात्रा में स्ट्रॉ बनते हैंप्रोफेसर साजी ने स्पेस इंजीनियरिंग में पोस्ट ग्रेजुएट चिराग और इकोनॉमिक्स के छात्र संदीप की मदद से स्ट्रॉ बनाने का काम शुरू किया और जब उनसे पूछा गया कि वह कितनी तेजी से स्ट्रॉ बनाते हैं तो उन्होंने बताया कि स्ट्रॉ बनाने की स्पीड मशीन पर निर्भर है, शुरुआत में स्ट्रॉ बनाने की स्पीड थोड़ी धीरे थी लेकिन अब मशीनों के अपडेट हो जाने से स्ट्रॉ बनाने की स्पीड काफी तेज हो चुकी है। स्ट्रॉ से गाँव में महिला सशक्तिकरण में मददनारियल के पत्तों को जलाने और प्लास्टिक स्ट्रॉ के उपयोग को कम करने में इन स्ट्रॉ ने मुख्य भूमिका निभाई है। इन स्ट्रॉ के जरिए ग्रामीण समुदायों की महिलाओं को रोजगार मिला जिससे वह सशक्त बनी हैं। अभी तक उनकी कंपनी में 86 महिलाएं पूर्णकालिक रूप से काम कर रही हैं। साजी ने बताया कि उनकी बहुत ही सरल तकनीक है और हमारी पूरी प्रक्रिया रसायन मुक्त है। इसलिए हम प्रौद्योगिकी को ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत आसानी से लगा सकते हैं।बाजार में इन स्ट्रॉ पर प्रतिक्रियाएसोसिएट प्रोफेसर ने Sputnik को बताया कि बर्गर चैन्स, पांच सितारा होटल और न केवल देश बल्कि विदेशों में भी उनके इस उत्पाद की मांग है जो दिनों दिन बढ़ती जा रही है और इस मांग को पूरा करने के लिए हम जल्द से जल्द उत्पादन क्षमता बढ़ाने की और ध्यान दे रहे हैं।भविष्य के लक्ष्यवर्गीज ने आखिर में बताया कि भविष्य में आगे वह कई ऐसे नए उत्पाद लेकर आएंगे जो पर्यावरण के अनुकूल होंगे इसके साथ साथ वह एल अलग तरह की पत्तियों पर भी काम कर रहे हैं जिससे वह स्ट्रॉ और अन्य नए उत्पाद भी बना सकें।उनके इस इनोवेशन के लिए उन्हें कई प्रशंसाओं से नवाजा गया है, जिनमें एंटरप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (EDII) से श्रेष्ठ उद्यमी गुरु पुरस्कार 2020 और ASSOCHAM नई दिल्ली द्वारा स्टार्टअप लॉन्च पैड में पहला स्थान शामिल है।
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क्राइस्ट यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी के एसोसिएट प्रोफेसर साजी वर्गीज, पर्यावरण के अनुकूल स्ट्रॉ, नारियल के पत्तों से स्ट्रॉ, नारियल के सूखे पत्तों से स्ट्रॉ, एसोसिएट प्रोफेसर साजी वर्गीज ने बनाई पत्तों से स्ट्रॉ, विदेशों तक जा रही पत्तों की स्ट्रॉ, स्ट्रॉ से पर्यावरण का बचाव, पांच सितारा होटल में नारियल के पत्तों की स्ट्रॉ, स्ट्रॉ के विदेशों से आ रहे ऑर्डर, स्ट्रॉ बनाने के लिए उत्पादन में अधिकता, अंग्रेजी के एसोसिएट प्रोफेसर साजी वर्गीज, नारियल के पत्तों से स्ट्रॉ की कंपनी सनबर्ड स्ट्रॉ, सनबर्ड स्ट्रॉ साजी की कंपनी, इन हाउस मशीन से बनी स्ट्रॉ, सनबर्ड स्ट्रॉ में स्पेस इंजीनियरिंग में पोस्ट ग्रेजुएट चिराग और इकोनॉमिक्स के छात्र संदीप, साजी वर्गीज की टीम चिराग और संदीप, पर्यावरण संरक्षण
क्राइस्ट यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी के एसोसिएट प्रोफेसर साजी वर्गीज, पर्यावरण के अनुकूल स्ट्रॉ, नारियल के पत्तों से स्ट्रॉ, नारियल के सूखे पत्तों से स्ट्रॉ, एसोसिएट प्रोफेसर साजी वर्गीज ने बनाई पत्तों से स्ट्रॉ, विदेशों तक जा रही पत्तों की स्ट्रॉ, स्ट्रॉ से पर्यावरण का बचाव, पांच सितारा होटल में नारियल के पत्तों की स्ट्रॉ, स्ट्रॉ के विदेशों से आ रहे ऑर्डर, स्ट्रॉ बनाने के लिए उत्पादन में अधिकता, अंग्रेजी के एसोसिएट प्रोफेसर साजी वर्गीज, नारियल के पत्तों से स्ट्रॉ की कंपनी सनबर्ड स्ट्रॉ, सनबर्ड स्ट्रॉ साजी की कंपनी, इन हाउस मशीन से बनी स्ट्रॉ, सनबर्ड स्ट्रॉ में स्पेस इंजीनियरिंग में पोस्ट ग्रेजुएट चिराग और इकोनॉमिक्स के छात्र संदीप, साजी वर्गीज की टीम चिराग और संदीप, पर्यावरण संरक्षण
प्रोफेसर साजी वर्गीज की नारियल के सूखे पत्तों से बनी स्ट्रॉ की विदेशों में धूम
प्लास्टिक एक ऐसा पदार्थ है जो पूरी पृथ्वी के लिए चुनौती बन गया है, दुनिया भर के वैज्ञानिक इस के विकल्प की खोज में लगे हुए हैं। भारत में भी अलग अलग क्षेत्र के लोग लगातार ऐसे विकल्पों पर काम कर रहे हैं जो बायोडिग्रेडबल हों और भविष्य में प्लास्टिक के विकल्प के रूप में स्थापित हो सके।
भारत में कर्नाटक राज्य की राजधानी बेंगलुरु में स्थित क्राइस्ट यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी के एसोसिएट प्रोफेसर साजी वर्गीज उन चंद लोगों में हैं जिन्होंने पर्यावरण के अनुकूल समाज को ऐसे विकल्प दिए जिससे देश और दुनिया में क्रांति आ गई है।
अक्सर आप लोगों ने किसी भी रेस्तरां, ढाबा या
पांच सितारा होटल में स्ट्रॉ का इस्तेमाल कभी न कभी तो जरूर किया होगा, और अगर आपने ध्यान दिया होगा तो यह सभी स्ट्रॉ प्लास्टिक की थी। ऐसी ही प्लास्टिक की स्ट्रॉ को हटाने के लिए एसोसिएट प्रोफेसर साजी वर्गीज ने नारियल के सूखे पत्तों से स्ट्रॉ बनाया जो हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में एक बड़ा बदलाव लाया, न केवल देश में बल्कि दुनिया भर से उन्हें इन स्ट्रॉ के ऑर्डर मिल रहे हैं।
आइये आगे उन्हीं से जानें कि कैसे साजी वर्गीज ने यह कारनामा किया!
Sputnik ने बेंगलुरु के क्राइस्ट यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी के एसोसिएट प्रोफेसर साजी वर्गीज से बात की तब उन्होनें बताया कि यूनिवर्सिटी कैंपस में घूमते हुए एक दिन उन्होंने जमीन पर गिरे सूखे नारियल के पत्ते को देखा तो सूखे पत्ते को देख कर साजी ने सोचा कि इस पत्ते से वह पर्यावरण को प्रभावित करने वाले प्लास्टिक की स्ट्रॉ को बदल सकते हैं, और यहीं से शुरुआत हुई सनबर्ड स्ट्रॉ की जिसके बाद फिर शुरू हुआ प्रयोगों का सिलसिला जिसके बाद प्रोफेसर की कड़ी मेहनत के बाद वे आखिर में सूखे नारियल के पत्तों से ड्रिंकिंग स्ट्रॉ बनाने में कामयाब हुए।
"मुझे जमीनी इनोवेशन में दिलचस्पी है। विशेष रूप से भारत जैसे देश में, मैंने महसूस किया कि इनोवेशन के माध्यम से, एक तरफ हम अपने समुदायों के लिए अवसर पैदा कर सकते हैं और दूसरी तरफ, शायद वैश्विक इनोवेशन के जरिए हम पर्यावरण की दृष्टि से वैश्विक चुनौतियों का भी समाधान कर सकते हैं और कुछ ऐसा ही हम करते हैं। इस तरह नारियल के पेड़ों से निकला दुनिया का पहला स्ट्रॉ जिसे हम देश-विदेश में बेचते हैं," साजी वर्गीज ने Sputnik को बताया।
स्ट्रॉ को कैसे बनाया जाता है
दक्षिण भारत में नारियल के पेड़ सबसे अधिक मात्रा में मिलते हैं, जिसकी वजह से उनके पत्ते प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, आमतौर पर या तो इन्हें फेंक दिया जाता है या जल दिया जाता है। इन पत्तों का सही इस्तेमाल प्रोफेसर साजी वर्गीस ने किया। उन्होंने नारियल के पत्तों से स्ट्रॉ विकसित किया जो
प्लास्टिक स्ट्रॉ का एक पर्यावरण-अनुकूल विकल्प है। उन्होंने Sputnik की टीम को बताया कि उन्होंने अपनी टीम की मदद से बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए इन-हाउस मशीनरी विकसित की और आगे उन्होंने नारियल के पत्तों के तिनके बनाए जो 3 मिमी से 13 मिमी तक थे।
"मशीनों का विकास किया गया है, बेशक, यह एक कन्वेयर पर आधारित मशीन है। और यह प्रक्रिया अधिक जटिल नहीं है लेकिन यह एक रोलिंग प्रक्रिया है। इस पर पत्ते लुढ़क जाते हैं न कि कुचले जाते हैं। उदाहरण के लिए, हमारे पास पत्ती प्रसंस्करण है जहां पत्ती की सफाई होती है और पत्तियों को बिट कटिंग मशीन का उपयोग करके संकीर्ण पट्टियों को खींचा जाता है। महिलाएं इसे बनाने के लिए एक दिन में ही प्रशिक्षित हो जाती हैं, तीन महीने के समय में वे गति और विशेषज्ञता हासिल कर लेती हैं। महिलाएं बहुत आसानी से इस तकनीक का उपयोग कर सकती हैं और स्ट्रॉ का उत्पादन कर सकती हैं," एसोसिएट प्रोफेसर साजी वर्गीज ने बताया।
कितनी मात्रा में स्ट्रॉ बनते हैं
प्रोफेसर साजी ने स्पेस
इंजीनियरिंग में पोस्ट ग्रेजुएट चिराग और इकोनॉमिक्स के छात्र संदीप की मदद से स्ट्रॉ बनाने का काम शुरू किया और जब उनसे पूछा गया कि वह कितनी तेजी से स्ट्रॉ बनाते हैं तो उन्होंने बताया कि स्ट्रॉ बनाने की स्पीड मशीन पर निर्भर है, शुरुआत में स्ट्रॉ बनाने की स्पीड थोड़ी धीरे थी लेकिन अब मशीनों के अपडेट हो जाने से स्ट्रॉ बनाने की स्पीड काफी तेज हो चुकी है।
"एक बात जो हमें जानने की जरूरत है वह यह है कि यह सक्रिय अपशिष्ट, गिरे हुए नारियल के पेड़ों से बना है, जिसे रसोई के लैंडफिल में जला दिया जाता था, जिससे बहुत अधिक कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। हमारे पास पहली पीढ़ी की मशीनें थीं, जो उस समय सरल यांत्रिक उपकरण थीं, और एक चक्र का समय 45 सेकंड प्रति स्ट्रॉ था लेकिन जब हमें विश्व स्तर पर इसकी भारी मांग ने हमारी टीम के सदस्य चिराग को प्रेरित किया, और उन्होंने यह कन्वेयर सिस्टम विकसित किया। नए सिस्टम के बाद अब यह चक्र का समय केवल एक सेकंड प्रति स्ट्रॉ है, तो अब हम हर मिनट 60 स्ट्रॉ बना सकते हैं," एसोसिएट प्रोफेसर ने कहा।
स्ट्रॉ से गाँव में महिला सशक्तिकरण में मदद
नारियल के पत्तों को जलाने और प्लास्टिक स्ट्रॉ के उपयोग को कम करने में इन स्ट्रॉ ने मुख्य भूमिका निभाई है। इन स्ट्रॉ के जरिए ग्रामीण समुदायों की
महिलाओं को रोजगार मिला जिससे वह सशक्त बनी हैं। अभी तक उनकी कंपनी में 86 महिलाएं पूर्णकालिक रूप से काम कर रही हैं। साजी ने बताया कि उनकी बहुत ही सरल तकनीक है और हमारी पूरी प्रक्रिया रसायन मुक्त है। इसलिए हम प्रौद्योगिकी को ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत आसानी से लगा सकते हैं।
"महिलाओं को उनके घरों के बहुत करीब रोजगार मिला है और यह निश्चित रूप से ग्रामीण रोजगार और महिलाओं के लिए एक बहुत बड़ा बढ़ावा है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को आय प्रदान कर रहे हैं। ऐसी कई महिलाएं हैं, जिन्हें यह पूरी कार्य प्रक्रिया और वातावरण बहुत बहुत अनुकूल लगा। वास्तव में, हमारे हर एक उत्पादन केंद्र में 15, 20 या 30 महिलाएं काम कर रही हैं, वहीं कई अन्य महिलाएं हैं जो उत्पादन केंद्रों द्वारा नियोजित होने की प्रतीक्षा कर रही हैं। हम साल भर महिलाओं को लगातार आय प्रदान कर सकते हैं और यही एक कारण है कि महिलाएं हमारे साथ काम करना जारी रखना चाहती हैं और अधिक महिलाएं हमसे जुड़ना चाहती हैं," साजी वर्गीज ने बताया।
बाजार में इन स्ट्रॉ पर प्रतिक्रिया
एसोसिएट प्रोफेसर ने Sputnik को बताया कि बर्गर चैन्स, पांच सितारा होटल और न केवल देश बल्कि विदेशों में भी उनके इस उत्पाद की मांग है जो दिनों दिन बढ़ती जा रही है और इस मांग को पूरा करने के लिए हम जल्द से जल्द उत्पादन क्षमता बढ़ाने की और ध्यान दे रहे हैं।
"आपको यह बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि 25 से अधिक पांच सितारा होटल और बर्गर श्रृंखला हमारे पूर्णकालिक ग्राहक बन गए हैं, और फिर कई पेय श्रृंखलाएँ भी हमारे ग्राहक बन गई हैं। वे हमारे बार-बार आने वाले ग्राहक हैं। विश्व स्तर पर वास्तव में, 10 देशों में हमने नमूने भेजे हैं इनके अलावा हम नियमित रूप से स्पेन, यूके और दुबई में भेज रहे हैं, लेकिन वास्तव में विशेष रूप से बेनेलक्स देश इन्हें कंटेनरों में चाहते हैं। हमारे उत्पाद को दोनों घरेलू बाजार के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर भी बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। 100% हमारे ग्राहक संतुष्टि है," वर्गीज ने बताया।
वर्गीज ने आखिर में बताया कि भविष्य में आगे वह कई ऐसे नए उत्पाद लेकर आएंगे जो
पर्यावरण के अनुकूल होंगे इसके साथ साथ वह एल अलग तरह की पत्तियों पर भी काम कर रहे हैं जिससे वह स्ट्रॉ और अन्य नए उत्पाद भी बना सकें।
"हमारे पास कुछ और उत्पाद हैं। उदाहरण के लिए, हम वास्तव में एक डिशवॉशिंग स्क्रबर लाने जा रहे हैं, जिसको बनाने के लिए नारियल के पेड़ की जाली की आवश्यकता होती है। हम बायोडिग्रेडेबल पोस्टर और मैट भी बना रहे हैं, जिन्हें हम आगे पेश करेंगे। मैं हमारे नया इनोवेशन पेश करना चाहता हूं जिसमें हम स्क्रूपाइन की पत्तियों से स्ट्रॉ बनाने जा रहे हैं, जिससे लोग पारंपरिक रूप से इससे चटाई और टोकरियाँ बनाते हैं, लेकिन चटाई और टोकरियाँ लगातार नहीं बिकती हैं, और इसलिए यह एक मरती हुई कला बनती जा रही हैं," एसोसिएट प्रोफेसर वर्गीज ने बताया।
उनके इस इनोवेशन के लिए उन्हें कई प्रशंसाओं से नवाजा गया है, जिनमें एंटरप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (EDII) से श्रेष्ठ उद्यमी गुरु पुरस्कार 2020 और ASSOCHAM नई दिल्ली द्वारा स्टार्टअप लॉन्च पैड में पहला स्थान शामिल है।