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ग्लोबल साउथ को स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में अपने लिए जगह बनानी होगी: WRI विशेषज्ञ

© AP Photo / Rafiq MaqboolA windmill farm works in Anantapur district, Andhra Pradesh, India, Wednesday, Sept 14, 2022.
A windmill farm works in Anantapur district, Andhra Pradesh, India, Wednesday, Sept 14, 2022. - Sputnik भारत, 1920, 09.07.2023
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हाल ही में जी-20 ऊर्जा परिवर्तन कार्य समूह समिति की बैठक में हरित ऊर्जा तक सार्वभौमिक पहुंच की अवधारणा में सुधार लाने और इसे अपनाने पर सहमति व्यक्त की गई। इसका मतलब यह सुनिश्चित करना था कि सभी देशों को नवीकरणीय और टिकाऊ ऊर्जा तक समान और सस्ती पहुंच प्राप्त हो।
Sputnik ने भारत में विश्व संसाधन संस्थान के ऊर्जा कार्यक्रम की ऊर्जा नीति के प्रमुख तीर्थंकर मंडल से सार्वभौमिक हरित ऊर्जा तक पहुंच पर बात की।
पिछले वर्षों में विकाशसील देशों यानी अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, छोटे द्वीप विकासशील राज्यों (SIDS) और दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र के देशों ने स्वच्छ ऊर्जा में परिवर्तन के लिए वैश्विक उत्तर से धन की तलाश की है।
‘हरित ऊर्जा’ आम तौर पर सौर, पवन, जल विद्युत, भू-तापीय और बायोमास जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से उत्पन्न बिजली से संबंधित होता है।
पारंपरिक जीवाश्म ईंधन की तुलना में इन ऊर्जा स्रोतों का पर्यावरण पर प्रभाव न्यूनतम है, क्योंकि ये कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पैदा करते हैं और माना जाता है कि ये जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करेंगे।

साक्षात्कार के अंश:

Sputnik: यूनिवर्सल फॉर ग्रीन एक्सेस पावर 2023 में भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
तीर्थंकर मंडल: चार-पांच वर्षों से नवीकरणीय ऊर्जा की मांग लगातार बढ़ रही है। अब नवीकरणीय ऊर्जा मुख्य तौर पर सौर, पवन और थोड़ी सी जलविद्युत से संबंधित है।
भारत में नवीकरणीय ऊर्जा की लागत गिर रही है।
हालाँकि पारंपरिक और नवीकरणीय ऊर्जा के बीच लागत समानता अभी तक हासिल नहीं हो पाई। फिर भी भारत में कहीं भी थर्मल और जीवाश्म ईंधन की लैंडिंग लागत कम से कम 6-7 रुपये प्रति यूनिट है, और नवीकरणीय 24/7 पैमाने पर 8-9 रुपये है।
साथ ही, वर्तमान में जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली पर भारी सब्सिडी है जो नवीकरणीय ऊर्जा से संबंधित सब्सिडी से कहीं ज्यादा है।
अगर नीति की बात की जाए, हाल के वर्षों में भारत ने कई ऐसे कदम उठाए हैं जो नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने के प्रति उसके उत्साह को दर्शाते हैं। भारत के लक्ष्यों में 2070 तक कार्बन तटस्थता और 2030 तक नवीकरणीय 450GW प्राप्त करना है।
सच पूछिए 2030 लक्ष्य मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि हमें अभी भी 2070 रोडमैप के बारे में जानकारी प्राप्त करना है, लेकिन अगले कुछ वर्षों में यह बिल्कुल स्पष्ट हो जाएगा कि सरकार कार्बन तटस्थता प्राप्त करने के लिए कितनी समर्पित है। सरकारी आदेश से पता चलता है कि भारत का लक्ष्य इस साल से लेकर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से प्रति वर्ष 50GW हासिल करना है।
बता दूँ कि भारत 2023 में जी-20 की मेजबानी कर रहा है।
भारत अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) का भी नेतृत्व करता है, जो छोटे द्वीपों, लैटिन अमेरिकी और अफ्रीकी देशों को समर्थन देता है। इसलिए यदि आप इन सभी चीजों को एक साथ रखें, तो मैं कहूंगा कि 2023 भारत के लिए एक महत्वपूर्ण वर्ष है।
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Sputnik: पश्चिम हरित ऊर्जा के संबंध में पाखंडी रहा है। सदियों से आज के धनी राष्ट्र मुख्य तौर पर कोयले जैसे गैर-हरित ईंधन का उपयोग करके विकसित हुए हैं। लेकिन वे अब विकासशील देशों पर जल्द से जल्द हरित प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए दबाव डाल रहे हैं। क्या महत्वपूर्ण आर्थिक नुकसान के बिना भारत के पास हरित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने का कोई रास्ता है?
तीर्थंकर मंडल: मैं इसे दूसरी तरह देखता हूं। मान लीजिए कि हमारे पास एक केक है और जो व्यक्ति पहला टुकड़ा लेगा उसे बड़ा और बेहतर टुकड़ा मिलेगा। इस मामले में भी ऐसा ही है: कोई भी वास्तव में वैश्विक दक्षिण के लिए जगह नहीं बनाएगा - हमें इस स्थिति में व्यावहारिक होना होगा।
[वैश्विक दक्षिण देश] केवल प्रौद्योगिकियों और वित्तीय सहायता को साझा करने की मांग कर फिर उन प्रौद्योगिकियों से यह समझ सकते हैं कि अपने लिए रोडमैप कैसे बनाया जाए।
अब वैश्विक दक्षिण को विकेंद्रीकृत और नवीकरणीय ऊर्जा-आधारित बिजली का अपना वैकल्पिक मॉडल तैयार करना होगा। इसके अलावा, नवीकरणीय ऊर्जा से हमारा तात्पर्य यह है कि इसकी इनपुट लागत शून्य है, जबकि विकसित देशों द्वारा निर्मित प्रौद्योगिकी में सीमांत लागत शून्य नहीं है।
इसलिए हमें शून्य इनपुट लागत के साथ एक विकासात्मक मार्ग बनाना होगा। यदि वैश्विक दक्षिण इसे हासिल कर सकता है, तो विकसित देश हमारा अनुसरण कर सकते हैं। क्यों? ऐसा इसलिए है क्योंकि हम विकास के लिए एक मॉडल बना रहे हैं जिसमें लगभग शून्य इनपुट लागत के कारण ऊर्जा उत्पादन के लिए प्रकृति पर पदचिह्न न्यूनतम के करीब है।
विकसित देश भी अब आगे के विकास से संबंधित चुनौतियों को देख रहे हैं क्योंकि वे कुछ स्तर पर स्थिर हो रहे हैं - उनकी जीडीपी उस गति से नहीं बढ़ रही है जिस गति से एशियाई देशों की जीडीपी बढ़ रही है।
तो, मुझे एक बड़ा अवसर यहीं नजर आता है। लेकिन परिवर्तनों के लिए हमें सबसे पहले उपयुक्त नीतियाँ बनाने की आवश्यकता है। वर्तमान में सभी नवीकरणीय परियोजनाओं के उत्पादन की गणना पारंपरिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की तरह की जाती है, और इन परियोजनाओं में निवेश को ज्यादातर "जोखिम भरा" कहा जाता है।
Sputnik: दक्षिण एशिया स्वच्छ ऊर्जा कि ओर संक्रमण कैसे करेगा?
तीर्थंकर मंडल: ऊर्जा परिवर्तन एक रैखिक प्रक्रिया नहीं होने वाला है। दक्षिण एशिया और अफ्रीका के लिए यह अगले एक या दो दशकों तक जीवाश्म ईंधन से संचालित होगा, और अगले दो-तीन दशकों तक नवीकरणीय ऊर्जा से संचालित होगा।
यह कोयले का इस्तेमाल शीघ्र ही खत्म करना नहीं होगा - मेरा मानना है कि हमें कोयले को चरणबद्ध तरीके से ख़त्म करने के बजाय नवीकरणीय ऊर्जा में चरणबद्ध तरीके से काम करने के बारे में बात करनी चाहिए।
और बाज़ार दक्षिण एशिया के लिए एक विकेन्द्रीकृत समाधान बनने जा रहा है।
Sputnik: अब स्वच्छ ऊर्जा की बातें सरकार या उद्योग की ओर से आती हैं। हालाँकि जो लोग सबसे अधिक असुरक्षित हैं उनकी उपेक्षा की जाती है। खासकर नीति निर्धारण में सरकार का दृष्टिकोण क्या होना चाहिए जिससे आम जनता को सबसे अधिक लाभ हो?
तीर्थंकर मंडल: जब ऊर्जा की बात आती है तो समाज में लोगों तक कैसे पहुंचा जाए, इसकी योजना बनाने में सरकार की भूमिका होनी चाहिए।
जो लोग जलवायु भेद्यता से असुरक्षित हैं, उन्हें सामाजिक कवरेज मिलना चाहिए, जिसमें केवल ऊर्जा समाधान परिप्रेक्ष्य ही नहीं बल्कि सामाजिक विकास परिप्रेक्ष्य भी होना चाहिए।
और कवरेज न केवल सामाजिक स्थिति में बल्कि लिंग परिप्रेक्ष्य में भी समावेशी होनी चाहिए - यह केवल यौन अभिविन्यास तक ही सीमित नहीं है बल्कि उन लोगों के लिए भी है जो तटीय क्षेत्रों या चरम भौगोलिक स्थानों में रहते हैं।
इसके अलावा, इन लोगों के पास निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं है और उनको हर प्राकृतिक आपदा का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। इसलिए मुझे लगता है कि हमारे जलवायु-प्रेरित समर्थन तंत्र का भविष्य इसी तरह विकसित होना चाहिए।
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