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हिन्दी का वि-उपनिवेशीकरण: भारतीय समाज को अंग्रेजी सांस्कृतिक प्रभुत्व से मुक्त करना

© Sputnik / Sandeep DattaHindi journalism students at Delhi located Bharatiya Vidya Bhavan
Hindi journalism students at Delhi located Bharatiya Vidya Bhavan - Sputnik भारत, 1920, 14.09.2023
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भारत में 615 मिलियन से अधिक लोग एक-दूसरे से वार्तालाप करने के लिए हिंदी का उपयोग करते हैं। फिर भी देश में ऐसे स्थान है, जहां हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा को मानना अस्वीकार्य है। कुछ बुद्धिजीवी इसे राजनीतिक विरोध मानते हैं।
इसके बावजूद कि बहुभाषी और बहु-धार्मिक विशेषताएं दुनिया में भारत की पहचान हैं, 1.4 अरब से अधिक लोगों वाले देश के पास अभी भी अपनी राष्ट्रीय भाषा नहीं है।
हिन्दी का पूरे देश में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। दुनिया भर में बोली जाने वाली सभी भाषाओं में हिंदी तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। परंतु इसे अभी तक आधिकारिक स्तर पर भारत की राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है।

दिलचस्प बात यह है कि अधिकांश भारतीय माता-पिता अभी भी अंग्रेजी के प्रति अत्यंत आकर्षित हैं। वे अपने बच्चों को इसके साथ बड़ा होते देखना चाहते हैं। सामान्य मानसिकता यह है कि यह जीवन के किसी भी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त प्रदान करता है और समाज में अभिजात्य होने का एहसास दिलाता है।

Sputnik India ने 14 सितंबर को हिंदी दिवस से पहले पेशेवर अध्ययन के लिए हिंदी को अपने माध्यम के रूप में चुनने वाले कुछ युवाओं के साथ बातचीत की। उन्होंने भाषा के बारे में दिलचस्प दृष्टिकोण साझा किए और भविष्य में इसकी भूमिका का अनुमान लगाया।

वर्तमान में अंग्रेजी की अपेक्षा हिंदी

दिल्ली के भारतीय विद्या भवन के 21 वर्षीय पत्रकारिता के छात्र शुभम का मानना है कि एक भारतीय होने के नाते हिंदी में सीखना अधिक आरामदायक और आनंददायक है।
उन्होंने कहा कि हमारी पारंपरिक भाषा का उपयोग करके कोई भी व्यक्ति किसी भी चीज़ का सहजता से वर्णन कर सकता है। "इसके उपयोग से चीज़ों को समझाने और समझने में आसानी हो सकती है।"

शुभम ने कहा, "कुछ ही लोगों को लगता है कि अगर आप हिंदी में बातचीत करते हैं तो यह हीनता को दर्शाता है। उन्हें लगता है कि अंग्रेजी उनकी छवि में कुलीनता जोड़ती है। हाल ही में हमारे पीएम मोदी ने G-20 सम्मेलन में विश्व नेताओं के सामने हिंदी में अपना भाषण दिया। यह भारतीय लोगों को एक संदेश था”।

उन्होंने आगे कहा कि हिंदी यह समझने में वरदान के रूप में आती है कि नई नीतियां हमारी किस प्रकार सेवा करेंगी या हमें कैसे प्रभावित करेंगी। "संभवतः, इसीलिए सरकार यह सुनिश्चित करती है कि उसकी नीतियों को देश में लाखों लोगों द्वारा समझी जाने वाली भाषा में संप्रेषित किया जाए।"

अपनी हिंदी पर गर्व करें, इसके उपयोगकर्ताओं का सम्मान करें

दिल्ली में बिहार की पत्रकारिता की छात्रा शुभ्रा को आश्चर्य है कि लोग अपनी ही भाषा पर हंसी उड़ाते हैं। “विदेश में आप कभी भी किसी को अपनी मूल भाषा का मज़ाक उड़ाते हुए नहीं देख पाएंगे। फिर स्थानीय स्तर पर भी अपनी ही हिंदी की आलोचना क्यों? दुख की बात है, बहुत से लोग ऐसा करते हैं।"

उन्होंने अपनी बात में जोड़ते हुए कहा कि ऐसी घटनाएं भी होती हैं कि अंग्रेजी में बातचीत के दौरान यदि कोई हिंदी का उपयोग करता है, तो उसे अनुपयुक्त या औसत स्तर का माना जाता है।
उन्होंने कहा, "लेकिन भारत की अपनी भाषा का उपयोग करने वालों के प्रति घृणा क्यों? सरकार उचित रूप से हिन्दी के सम्मान को बढ़ावा दे रही है।"

जनता जिस भाषा में बात करती है उसमें महारत प्राप्त करें

दिल्ली में भारतीय विद्या भवन के फिल्म और टेलीविजन विभाग और अध्ययन के प्रमुख दिलीप बडकर ने कहा कि उनके छात्रों का उद्देश्य मीडिया उद्योग में काम करना है। वे किसी समाचार या मनोरंजन चैनल के लिए काम कर सकते हैं और इसीलिए उन्हें पहले दिन से तीन-भाषा नीति का पालन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

बडकर ने कहा, "हिंदी हमारे लिए राष्ट्रीय भाषा है। इसलिए इसका ज्ञान उनके लिए आवश्यक है। यदि किसी को हिन्दी अच्छी तरह नहीं आती, तो हम उनसे एक वर्ष के पाठ्यक्रम के दौरान इसे सीखने के लिए कहते हैं। हम उन्हें हिन्दी सीखने के लिए प्रेरित करते हैं।"

उन्होंने अपनी बात में जोड़ते हुए कह, "दूसरा, अंग्रेजी है। हम छात्रों को बताते हैं कि किस तरह का करियर विदेश में काम करने ले जा सकता है। इसके अतिरिक्त, यदि वे किसी टीवी चैनल में काम करते हैं और उन्हें किसी राजदूत का साक्षात्कार लेने का काम सौंपा जाएगा, तो इसके लिए अंग्रेजी आवश्यक है।"
तीसरा, उन्होंने कहा, वे मातृभाषा पर बल देते हैं - वह भाषा जिसके साथ कोई पला बढ़ा हुआ है।
बडकर ने कहा, "भारत में बहुत सारी भाषाएं उपयोग की जाती हैं। हम छात्रों को उन्हें भी सीखने के लिए प्रोत्साहित करते हैं (…) बार-बार ऐसी घटनाएं होती हैं जब उत्तर में किसी भी टीवी चैनल को किसी क्षेत्रीय भाषा से परिचित व्यक्ति की आवश्यकता है।"

हिंदी को भारत की राष्ट्रीय भाषा के रूप में देखने का आशावाद

मास मीडिया के छात्र आशीष कुमार मंडल के अनुसार, यह अब कोई रहस्य नहीं है कि हिंदी को वैश्विक स्तर पर पहचान मिल रही है। यह नई वास्तविकता महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत एक विकासशील देश से विकसित देश में परिवर्तित हो रहा है।
उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि हाल ही में G-20 शिखर सम्मेलन के दौरान भारत की संस्कृति और विरासत पर बहुत ध्यान दिया गया था।

आशीष ने कहा, "अभी भी हिंदी पर बहुत कार्य करना है। अगर हिन्दी को भारत में बढ़ावा नहीं मिलेगा, तो इसका व्यापक उत्थान कठिन होगा। चाहे वह भारत का उत्तर-पूर्व या दक्षिणी हिस्सा हो, थोड़ा सा प्रचार या प्रोत्साहन आवश्यक है। इसके उपयोग के बारे में स्थानीय भ्रांतियों को दूर करने की आवश्यकता है"।

साथ ही वह आशावादी हैं कि हिंदी को आधिकारिक भाषा से बढ़कर राष्ट्रीय भाषा के रूप में माना जाएगा।
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