तालिबान को मान्यता न मिलने के क्या दुष्परिणाम होंगें?
© AP Photo / Siddiqullah AlizaiMullah Abdul Ghani Baradar, the Taliban-appointed deputy prime minister for economic affairs, center, inspects the honor guards during a military parade to mark the third anniversary of the withdrawal of U.S.-led troops from Afghanistan, in Bagram Air Base in the Parwan Province of Afghanistan, Wednesday, Aug. 14, 2024.
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तालिबान द्वारा पश्चिमी समर्थित अफगान सरकार को उलटने और नाटो बलों को अफगानिस्तान से वापस जाने के लिए विवश करने के तीन वर्ष से अधिक समय बाद भी इसकी सरकार को अभी तक किसी भी देश से मान्यता प्राप्त नहीं हुई है।
राजनयिक मान्यता की कमी से इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता पर प्रभाव पड़ता है, साथ ही अफ़ग़ानिस्तान क्षेत्र को अंतर्राष्ट्रीय शक्ति संघर्षों के लिए युद्ध के मैदान के रूप में इस्तेमाल करने की संभावना भी बढ़ जाती है।
जो देश अफ़गानिस्तान की अर्थव्यवस्था को बढ़ा सकते हैं और जीवन स्तर को बेहतर बना सकते हैं, उन से जोड़ने के लिए बनाई गई सड़क और रेल परियोजनाएं वर्तमान में रुकी हुई हैं। इसमें एकमात्र अपवाद चीन के साथ परिवहन संपर्क है।
सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर जनरल और बिन कासिम शहर के पूर्व कार्यकारी निदेशक ग्वादर सईद डार ने Sputnik को बताया कि यह स्थिति अफगानिस्तान में दैनिक जीवन और दीर्घकालिक योजना और विकास दोनों को गंभीर रूप से प्रभावित करती है।
सईद डार ने कहा, "सीमाओं की गतिशीलता और विभिन्न देशों के निहित स्वार्थ अफ़गानिस्तान पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं। विशेष रूप से ISIS* [इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड द लेवेंट], TTP** [तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान] और चीन एवं कुछ अन्य देशों का विरोध करने वाले अन्य समूहों के लिए शरण प्रदान करने के कारण अफ़गान अंतरिम शासन और इन देशों के मध्य लगातार तनाव उत्पन्न कर रहे हैं।"
उन्होंने आगे कहा कि अगर वर्तमान स्थिति का समाधान नहीं किया गया, तो इस क्षेत्र पर इसके गंभीर परिणाम होंगे जो प्रभावित देशों के साथ अफगानिस्तान के संबंधों के लिए अत्यधिक हानिकारक हो सकते हैं।
पाकिस्तान एवं खाड़ी अध्ययन केंद्र के वरिष्ठ अनुसंधान एसोसिएट डार और बिलाल हैदर सिमैर ने अफगानिस्तान की वर्तमान स्थिति के लिए वैश्विक समाधान की आवश्यकता पर बल दिया।
उन्होंने कहा कि यह मुद्दा गंभीर बना हुआ है, क्योंकि तालिबान को विदेशी मान्यता नहीं मिलने और सक्रिय आतंकवादी समूहों के कारण अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता की संभावनाएं जटिल हो रही हैं। पश्चिम तालिबान सरकार को मान्यता देने और इस क्षेत्र में अपनी छद्म कार्रवाइयों को रोकने के लिए तैयार नहीं है।
सिमैर के अनुसार, यदि अफगान तालिबान सरकार के साथ संबंधों को उनकी पूर्व स्थिति में बहाल नहीं किया गया, तो व्यापार में बाधा उत्पन्न होगी, आतंकवादियों और उनकी आपूर्तियों की सीमा पार से घुसपैठ बढ़ेगी और पाकिस्तान विरोधी तत्वों को पुनः संगठित होने और पाकिस्तान पर आक्रमण करने का अवसर मिलेगा।
उनका मानना यह है कि अमेरिका तीसरे पक्षों के माध्यम से अफगानिस्तान में वित्त पोषण और निवेश करके चीन के शांतिपूर्ण आर्थिक विकास को बाधित करने में भूमिका निभा सकता है।
सिमैर ने कहा, "अगर चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा मार्ग आतंकवाद, अस्थिरता और अराजकता से भरा है और आतंकवादी पाकिस्तान के स्वाट सेना तक पहुँच सकते हैं, तो वे सहजता से आगे बढ़ सकते हैं और इस क्षेत्र से परे महत्वपूर्ण आयात क्षेत्रों पर आघात कर सकते हैं,यदि ऐसा हुआ तो चीन को विकल्प खोजने के लिए विवश होना पड़ेगा।"
उन्होंने आगे कहा कि यूरेशिया के देश विशेष रूप से चीन और रूस अंततः स्वयं को रणनीतिक स्थान सुरक्षित करने और क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव को कम करने के लिए अफगान तालिबान सरकार के साथ अपने संबंधों को बेहतर बनाने का प्रयास करेंगे।
अमेरिका के अफ़गानिस्तान से जाने के बाद देश में शक्ति शून्यता है, जिसे भरने की आवश्यकता है। चीन और रूस ने पहले ही मध्य पूर्व में अमेरिका का विरोध करने वाले देशों का साथ देकर इसे भरना आरंभ कर दिया है। चीन ने हमास की मेज़बानी की है, जबकि रूस ने फिलिस्तीनियों का मुखर समर्थन किया है।
डार ने साथ ही बताया कि संयुक्त उद्यम और आर्थिक एकीकरण विशेष रूप से मानव संसाधनों में अफगान समाज के समग्र विकास और एकीकरण में योगदान करते हैं। वर्तमान में देश में मानव संसाधनों की कमी है जो उग्रवाद और आतंकवाद के रूप में अफगानिस्तान पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।
*अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन
**प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन