व्यापार और अर्थव्यवस्था

अडानी की विस्तार योजनाएं भारत की वैश्विक छवि को कर रही मजबूत: स्त्रोत

© AP Photo / Ajit SolankiA motorist rides past a hoarding of Adani University near the corporate headquarters of Adani Group in Ahmedabad, India, Friday, Jan. 27, 2023.
A motorist rides past a hoarding of Adani University near the corporate headquarters of Adani Group in Ahmedabad, India, Friday, Jan. 27, 2023. - Sputnik भारत, 1920, 22.09.2024
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Sputnik India के साथ बातचीत मे अडानी समूह की विस्तार योजनाओं से वाकिफ़ लोगों ने बताया कि बांग्लादेश, श्रीलंका, तंजानिया और केन्या जैसे देशों में नई परियोजनाएं शुरू करने के पीछे का मुख्य कारण उनके प्रमोटरों की 'उच्च जोखिम उठाने की क्षमता' है।
अडानी समूह बंदरगाहों से लेकर खनन तक का कारोबार करने वाला अरबपति समूह है, जिसका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ गुजरात के दिनों से ही पुराना नाता रहा है। इस क्षेत्र में काम करने वाले सूत्रों ने Sputnik India को बताया कि भारतीय समूह का अन्य देशों में बंदरगाहों, हवाई अड्डों और बुनियादी ढांचे के निर्माण में विस्तार करने के कई कारण हैं।

उन्होंने कहा, "अगर भारतीय प्रधानमंत्री व्यापारिक हितों की पैरवी कर रहे हैं, तो इसमें क्या गलत है? सभी भारतीय कंपनियां इन उपक्रमों में भाग ले सकती हैं। अडानी समूह में दूसरों की तुलना में अधिक जोखिम उठाने की क्षमता है। यह क्षमता इसे अपने कई साथियों से अलग करती है, जिनके पास वैश्विक परियोजनाएं शुरू करने के साधन हो सकते हैं।"

सूत्रों के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति अमेरिकी कंपनियों की उसी तरह वकालत करते हैं, जिस तरह से चीनी राष्ट्रपति चीनी कंपनियों की वैश्विक उपस्थिति बढ़ाने की वकालत करते हैं। 1960 से 1990 के बीच 'एशियाई टाइगर्स' द्वारा अनुभव किए गए तीव्र आधुनिकीकरण के मामले में कुछ कंपनियों को संबंधित सरकारों द्वारा सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया गया था।
सूत्रों ने आगे कहा कि अडानी समूह की योजनाएं भारत के राष्ट्रीय हितों से 'अटूट रूप से जुड़ी हुई' हैं और इसकी वैश्विक छवि को मजबूत कर रही हैं क्योंकि भारत 2030 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की आकांक्षा रखता है।

उन्होंने आगे कहा, "अडानी समूह की नीति वही रहेगी, चाहे सत्ता में कोई भी सरकार हो। कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के तहत भी अडानी भारत के राष्ट्रीय हितों के अनुरूप अपनी वैश्विक विकास रणनीति को जारी रखेगा।"

बता दें कि चाहे दक्षिण एशिया हो या अफ्रीका या इज़राइल अडानी समूह हमेशा से भारतीय विदेश नीति के उद्देश्यों का समर्थन करता रहा है।

सूत्रों ने कहा, "अडानी की श्रीलंका के वेस्ट इंटरनेशनल टर्मिनल (CWIT) और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में भागीदारी को कोलंबो को भुगतान संतुलन (BOP) संकट से उबारने में नई दिल्ली के प्रयासों के विस्तार के रूप में देखा जाना चाहिए। यह संकट कोविड महामारी के दौरान की स्थिति है और तब गहराया जब श्रीलंका अपने ऋणों का भुगतान करने में असमर्थ रहा।"

बांग्लादेश में यूनुस प्रशासन ने कथित तौर पर अडानी पावर झारखंड लिमिटेड (APJL) और ढाका के बीच 2017 में हस्ताक्षरित बिजली खरीद समझौते (PPA) की समीक्षा करने की मांग की है। समझौते की शर्तों के तहत बांग्लादेश के राष्ट्रीय बिजली ग्रिड से जुड़ा APJL का गोड्डा कोयला आधारित संयंत्र अपनी 100 प्रतिशत बिजली बांग्लादेश को निर्यात करेगा।
सूत्रों ने उन रिपोर्टों को खारिज कर दिया कि APJL की बिजली निर्यात लागत, जो 14.02 बांग्लादेशी टका प्रति यूनिट थी, अन्य की तुलना में अधिक थी।

सूत्रों ने बताया, "जहां तक ​​हम समझते हैं बिजली खरीद समझौते (PPA) के तहत एक निश्चित कैलोरी मान वाले कोयले से बिजली का उत्पादन किया जाना आवश्यक है। इस प्रकार का कोयला भारत में उपलब्ध नहीं है और इसे ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से आयात करना पड़ता है।"

बता दें कि बांग्लादेश के बिजली बाजार में प्रवेश करने की अडानी की पहल भारत सरकार की उस प्रतिबद्धता से भी प्रेरित थी, जिसके तहत उसने ढाका में बिजली की गंभीर कमी को दूर करने में मदद की थी, जिससे न केवल घरेलू बल्कि प्रमुख उद्योग भी प्रभावित हो रहे थे।
सूत्रों ने तंजानिया और केन्या जैसे अफ्रीकी देशों में समूह की योजनाओं के बारे में बात करते हुए कहा कि अडानी को भारत की आर्थिक और कूटनीतिक पहल से प्रेरणा मिली है, जिसके तहत वह अपनी विदेश नीति में अफ्रीकी महाद्वीप को प्राथमिकता देना चाहता है। इसका प्रमाण पिछले साल तब मिला जब अफ्रीकी संघ (AU) नई दिल्ली शिखर सम्मेलन में जी-20 का औपचारिक सदस्य बन गया।

सूत्रों ने कहा, "दार एस सलाम पोर्ट पर कंटेनर टर्मिनल 2 को संचालित करने और प्रबंधित करने के लिए अडानी इंटरनेशनल पोर्ट्स होल्डिंग्स प्राइवेट लिमिटेड (AIPH) का 30 साल का समझौता न केवल भारत के रणनीतिक हितों की पूर्ति करता है, बल्कि महाशक्तियों के बीच प्रतिद्वंद्विता के बीच तंजानिया को और अधिक विकल्प भी प्रदान करता है।"

उन्होंने कहा कि समूह ने हाइफा बंदरगाह के प्रबंधन में अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है, जब इसे "विश्व की सबसे उन्नत क्रेन और यातायात प्रबंधन प्रणाली" से सुसज्जित किया गया, जिससे 0.7 दिनों का टर्नअराउंड समय सुनिश्चित हुआ।
सूत्रों के अनुसार, किसी भी अन्य भारतीय बंदरगाह में औसत टर्नअराउंड समय 2.1 दिन है। प्रस्तावित नई दिल्ली समर्थित कनेक्टिविटी पहल के कारण हाइफा का संयुक्त अधिग्रहण 'भारतीय हितों की जीत' थी।
अडानी की गतिविधियों के बारे में 'नकारात्मक प्रचार' का मूल कारण ‘अमेरिकी डीप स्टेट’ की आशंकाएं थीं।

सूत्रों ने बताया, "जबकि अमेरिकी बैंक और निवेशक सार्वजनिक रूप से अडानी का समर्थन करते हैं, लेकिन इसका डीप स्टेट हमेशा अडानी या किसी भी अन्य भारतीय कंपनी को बहुत मजबूत नहीं बनाना चाहेगा। अमेरिका हमेशा चाहता है कि भारतीय कंपनियां अमेरिकी व्यापारिक हितों के अधीन रहे। अडानी और भारतीय कंपनियां इस अमेरिकी पाखंड के शिकार हैं।"

अडानी भारत को उसके भू-रणनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने में मदद कर सकते हैं: पूर्व राजदूत

वैश्विक स्तर पर भारतीय कंपनियों के विस्तार का समर्थन करते हुए पूर्व भारतीय राजदूत अनिल त्रिगुणायत ने कहा कि भारतीय निजी क्षेत्र की बढ़ती उपस्थिति नई दिल्ली के ‘भू-रणनीतिक उद्देश्यों’ में मदद करती है।

पूर्व भारतीय राजदूत ने कहा, "अपनी व्यापक शक्ति विकसित करने के लिए आर्थिक कूटनीति आज की दुनिया में समान रूप से या शायद अधिक महत्वपूर्ण है। इस खोज में अधिक मजबूत आर्थिक ताकत वाली बड़ी भारतीय कंपनियां अपने आप में वैश्विक खिलाड़ी बनते हुए विदेश नीति के हितों की सेवा करने में मदद कर सकती हैं।"

त्रिगुणायत ने इस बात पर जोर दिया कि निजी क्षेत्र को समर्थन देना सभी प्रमुख शक्तियों के लिए एक "मानक दृष्टिकोण" रहा है और नई दिल्ली समान रणनीति अपनाने में "अद्वितीय" नहीं है।

पूर्व राजदूत ने कहा, "मेरे विचार से हमें अपने व्यवसायों को सुसंगत और पारदर्शी तरीके से सुरक्षित अवसर प्रदान करने चाहिए जो हम कर रहे हैं।"

दूसरी ओर, एक बांग्लादेशी विशेषज्ञ ने अपने देश के लिए भारतीय बिजली निर्यात के महत्व पर जोर डाला।
ब्लिट्ज प्रकाशन के लेखक और संपादक सलाह उद्दीन शोएब चौधरी ने Sputnik को बताया कि 2009 से अवामी लीग सरकार ने मुख्य रूप से बहुत बड़ी संख्या में क्विक रेंटल पावर स्टेशन (QRPS) स्थापित करके बिजली की मांग को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित किया। साथ ही, उन्होंने रूपपुर में कोयला-आधारित बिजली संयंत्र और परमाणु ऊर्जा संयंत्र शुरू किया।

उन्होंने अपनी बात में जोड़ते हुए कहा, "जब तक रूपपुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र (RNPP) चालू नहीं हो जाता, तब तक देश का बिजली संकट जारी रहेगा। ऐसी परिस्थितियों में अडानी से बिजली आयात करना आवश्यक है क्योंकि इस आपूर्ति के निलंबन से देश भर में तीव्र बिजली संकट पैदा हो जाएगा, जो रेडीमेड गारमेंट कारखानों (RMG) सहित औद्योगिक प्रतिष्ठानों को बाधित करेगा।"

चौधरी ने आगे कहा, "मेरे विचार से अभी अडानी से बिजली खरीदने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, जब तक कि बांग्लादेश को रामपाल में कोयला आधारित बिजली संयंत्र के साथ-साथ रूपपुर में परमाणु ऊर्जा संयंत्र से आवश्यक आपूर्ति नहीं मिल जाती।"
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