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भारत ने स्ट्रेटोस्फेरिक एयरशिप प्लेटफॉर्म की पहली उड़ान का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है
भारत ने स्ट्रेटोस्फेरिक एयरशिप प्लेटफॉर्म की पहली उड़ान का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है
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भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने पहली बार समतापमंडलीय हवाई पोत प्लेटफार्म का सफल परीक्षण किया। 04.05.2025, Sputnik भारत
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3 मई को मध्यप्रदेश के श्योपुर ट्रायल क्षेत्र से प्रक्षेपित किया गया यह एयरशिप 17 किमी यानि लगभग 56000 फीट की ऊंचाई तक गया। इसका प्रयोग चौकसी और जानकारी एकत्र करने के लिए किया जाता है, बहुत अधिक ऊंचाई पर होने के कारण यह लगभग अदृश्य रहता है।एयरशिप का प्रयोग युद्ध में पिछली सदी में ही प्रारंभ हो गया था। पहले और दूसरे विश्वयुद्धों में इस तरह के गुब्बारों और एयरशिप का प्रयोग चौकसी के अलावा आक्रमण, आवागमन के लिए भी किया गया है। एयरशिप हवा से हल्की गैसों का प्रयोग करके अपनी उड़ान भरते हैं और आवश्यकता के अनुसार इनकी गति, दिशा को नियंत्रित किया जा सकता है। इनमें ईंधन की खपत बहुत ही न्यूनतम स्तर की होती है इसलिए ये अधिक समयावधि तक हवा में रह सकते हैं। दुनिया के कई देश मौसम की जानकारी या सैनिक आवश्यकताओं के लिए एयरशिप का प्रयोग करते हैं।
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भारत, भारत सरकार, रक्षा मंत्रालय (mod), भारतीय सेना, drdo, पाकिस्तान, चीन, अमेरिका
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भारत ने स्ट्रेटोस्फेरिक एयरशिप प्लेटफॉर्म की पहली उड़ान का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है
भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने पहली बार समतापमंडलीय हवाई पोत प्लेटफार्म का सफल परीक्षण किया।
3 मई को मध्यप्रदेश के श्योपुर ट्रायल क्षेत्र से प्रक्षेपित किया गया यह एयरशिप 17 किमी यानि लगभग 56000 फीट की ऊंचाई तक गया। इसका प्रयोग चौकसी और जानकारी एकत्र करने के लिए किया जाता है, बहुत अधिक ऊंचाई पर होने के कारण यह लगभग अदृश्य रहता है।
DRDO के आगरा स्थित हवाई डिलीवरी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान द्वारा विकसित यह एयरशिप 62 मिनट तक हवा में रहा। भारतीय रक्षा मंत्रालय ने एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया है कि यह एयरशिप अपने साथ कई उपकरण लेकर गया था लेकिन इन उपकरणों के भार जैसी दूसरी जानकारियां साझा नहीं की गई हैं। प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि इसमें लगे सेंसर्स ने डाटा भेजे हैं जिनका प्रयोग भविष्य में एयरशिप को आधुनिक बनाने में किया जाएगा।
एयरशिप का प्रयोग युद्ध में पिछली सदी में ही प्रारंभ हो गया था। पहले और दूसरे विश्वयुद्धों में इस तरह के गुब्बारों और एयरशिप का प्रयोग चौकसी के अलावा आक्रमण, आवागमन के लिए भी किया गया है।
एयरशिप हवा से हल्की गैसों का प्रयोग करके अपनी उड़ान भरते हैं और आवश्यकता के अनुसार इनकी गति, दिशा को नियंत्रित किया जा सकता है। इनमें ईंधन की खपत बहुत ही न्यूनतम स्तर की होती है इसलिए ये अधिक समयावधि तक हवा में रह सकते हैं।
ड्रोन की तुलना में ये ज्यादा देर तक और ज्यादा दूर तक चौकसी या जानकारी एकत्र करने का कार्य कर सकते हैं। वहीं किसी सेटेलाइट की तुलना में एयरशिप बहुत कम लागत के होते हैं जबकि लगभग उतनी ही सटीक जानकारी एकत्र कर सकते हैं। इन्हें रडार द्वारा खोज पाना या इनपर दृष्टि रख पाना अत्यंत कठिन होता है।
दुनिया के कई देश मौसम की जानकारी या सैनिक आवश्यकताओं के लिए एयरशिप का प्रयोग करते हैं।