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लूट, जिसे संग्रह कहा गया: कैसे भारतीय मूर्तियां और मंदिर की धरोहरें पश्चिमी संग्रहालयों में पहुंचीं
लूट, जिसे संग्रह कहा गया: कैसे भारतीय मूर्तियां और मंदिर की धरोहरें पश्चिमी संग्रहालयों में पहुंचीं
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कोहिनूर हीरा से लेकर प्राचीन पांडुलिपियों और मंदिर की मूर्तियों तक ब्रिटेन के संग्रहालय औपनिवेशिक लूट से भरे पड़े हैं। इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट ने Sputnik को बताया कि यह कैसे हुआ।
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1990 में ब्रिटिश पत्रकार पीटर वॉटसन ने एक स्टिंग ऑपरेशन किया। इसका केंद्र था मशहूर नीलामी घर सोथेबीज़। सामने आया कि उनके बिक्री प्रबंधक और अधिकारी बाकायदा भारत की यात्रा करते थे, अपने यात्रा भत्ते में उन खर्चों को शामिल करते थे जो भारत में तस्करों से मिलने और मूर्तियों को चुनने के लिए किए गए थे।विजय कुमार के अनुसार इन मूर्तियों को मंदिरों से जबरन और हिंसा के साथ निकाला गया। हज़ारों सालों तक ये मूर्तियां बिना किसी एयर कंडीशन या संरक्षण के अपने स्थान पर सुरक्षित थीं। एक पुजारी की देखभाल ही पर्याप्त थी। पश्चिमी संग्रहकर्ता के लिए ये मूर्तियां सिर्फ एक "फैटिश" बन गईं जैसे कोई टिकट या सिक्कों का संग्रह करता है। उदाहरण के लिए, "लोक हारी योगिनी" की मूर्तियां एक ब्रिटिश फार्महाउस के बगीचे में काई से ढँकी पड़ी मिलीं। संग्रहकर्ता की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी को तक नहीं पता था कि ये क्या हैं। ये 25 साल से खुले में पड़ी थीं। क्या इन्हें इसके लिए बनाया गया था?एक और मामला है थिरुमंगई अलवार की कांस्य प्रतिमा का, जो कुंभकोणम के सौंदरराज पेरुमाळ मंदिर से चुराई गई थी। इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट के सह-संस्थापक के अनुसार अश्मोलियन संग्रहालय से इसे वापस लाने की प्रक्रिया सात साल चली। विजय कुमार ने बताया कि पहले तो अंग्रेजों को यकीन ही नहीं हुआ कि वहाँ कोई मंदिर है। उन्होंने अपनी ओर से एक विशेषज्ञ भेजा। फिर कहा गया कि संग्रहालय नीति के तहत उस वस्तु को वापस किया जा सकता है। लेकिन मामला ब्रिटिश अधिकार समिति के पास चला गया, जहाँ पिछले चार सालों से यह अटका हुआ है।
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लूट, जिसे संग्रह कहा गया: कैसे भारतीय मूर्तियां और मंदिर की धरोहरें पश्चिमी संग्रहालयों में पहुंचीं
18:04 03.08.2025 (अपडेटेड: 10:40 04.08.2025) कोहिनूर हीरे से लेकर प्राचीन पांडुलिपियों और मंदिर की मूर्तियों तक ब्रिटेन के संग्रहालय औपनिवेशिक लूट से भरे पड़े हैं। इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट के सह-संस्थापक एस विजय कुमार ने Sputnik भारत को बताया कि यह कैसे हुआ।
1990 में ब्रिटिश पत्रकार पीटर वॉटसन ने एक स्टिंग ऑपरेशन किया। इसका केंद्र था मशहूर नीलामी घर सोथेबीज़। सामने आया कि उनके बिक्री प्रबंधक और अधिकारी बाकायदा भारत की यात्रा करते थे, अपने यात्रा भत्ते में उन खर्चों को शामिल करते थे जो भारत में तस्करों से मिलने और मूर्तियों को चुनने के लिए किए गए थे।
इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट के सह-संस्थापक एस विजय कुमार ने Sputnik भारत को बताया, "यह कोई छिटपुट चोरी नहीं थी। यह एक संगठित लूट थी। भारत के मंदिरों में जाकर मूर्तियों की पहचान की जाती थी, जो पश्चिमी बाजारों में बिक सकती थीं, और फिर उन्हें चुरा लिया जाता था।"
विजय कुमार के अनुसार इन मूर्तियों को मंदिरों से जबरन और हिंसा के साथ निकाला गया। हज़ारों सालों तक ये मूर्तियां बिना किसी एयर कंडीशन या संरक्षण के अपने स्थान पर सुरक्षित थीं। एक पुजारी की देखभाल ही पर्याप्त थी।
उन्होंने कहा, "फिर डॉलर के लालच ने इस अपराध को जन्म दिया और सीमा पार तस्करी ने इसे और भी बड़ा अपराध बना दिया। अब इन वस्तुओं को रखने का कोई औचित्य नहीं है। इन्हें वापस कर दीजिए। इतिहास को फिर से भूगोल से जोड़ना होगा।"
पश्चिमी संग्रहकर्ता के लिए ये मूर्तियां सिर्फ एक "फैटिश" बन गईं जैसे कोई टिकट या सिक्कों का संग्रह करता है। उदाहरण के लिए, "लोक हारी योगिनी" की मूर्तियां एक ब्रिटिश फार्महाउस के बगीचे में काई से ढँकी पड़ी मिलीं। संग्रहकर्ता की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी को तक नहीं पता था कि ये क्या हैं। ये 25 साल से खुले में पड़ी थीं। क्या इन्हें इसके लिए बनाया गया था?
एक और मामला है थिरुमंगई अलवार की कांस्य प्रतिमा का, जो कुंभकोणम के सौंदरराज पेरुमाळ मंदिर से चुराई गई थी। इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट के सह-संस्थापक के अनुसार अश्मोलियन संग्रहालय से इसे वापस लाने की प्रक्रिया सात साल चली।
विजय कुमार ने बताया कि पहले तो अंग्रेजों को यकीन ही नहीं हुआ कि वहाँ कोई मंदिर है। उन्होंने अपनी ओर से एक विशेषज्ञ भेजा। फिर कहा गया कि संग्रहालय नीति के तहत उस वस्तु को वापस किया जा सकता है। लेकिन मामला ब्रिटिश अधिकार समिति के पास चला गया, जहाँ पिछले चार सालों से यह अटका हुआ है।
इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट के सह-संस्थापक ने कहा, "ये लोग मानते हैं कि अगर प्रक्रिया को इतना खींचा जाए, तो भारत अंततः भूल जाएगा। यह एक थकाने वाला खेल है। लेकिन हमें इसे याद रखना है। क्योंकि यह सिर्फ मूर्तियों की बात नहीं है, यह हमारी अस्मिता की बात है।"