Long Reads
Sputnik संवाददाता प्रमुख घटनाओं का विस्तृत विश्लेषण करते हैं जो गहरे अध्यायन और विश्लेषकों की राय पर आधारित है।

क्या भारत की भूकंप कूटनीति नई दिल्ली-अंकारा संबंधों को पुनर्जीवित करेगी?

भारत ऐसे देशों में से था जिन्होंने सब से पहले भयानक भूकंप से पीड़ित तुर्की को मानवीय सहायता देने की घोषणा की थी। इस भूकंप के कारण 16,000 से अधिक लोगों की मौत हुई और 64,000 से अधिक लोग घायल हुए।
Sputnik
तुर्की में शक्तिशाली भूकंप और उसके झटकों के कारण हजारों इमारतें नष्ट हो गई हैं, और राहत और बचाव कार्य के लिए बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है। इस स्थिति में भारत में तुर्की के राजदूत फ़िरात सुनेल ने नई दिल्ली की मदद की प्रशंसा की।

'सच्चा मित्र वही जो समय पर काम आए'

इस हफ्ते दिल्ली के पास गाजियाबाद शहर में हिंडन एयर बेस पर मीडिया से बात करते हुए राजदूत सुनेल ने कहा कि तुर्की में भयानक भूकंपों के परिणामों को हटाने में मदद करने के लिए भारत द्वारा शुरू किया गया 'ऑपरेशन दोस्त' भारत और तुर्की के बीच हमारी दोस्ती को दर्शाता है और दोस्त हमेशा एक दूसरे को मदद देते हैं, और यह दोस्ती का अभियान है।
दोस्त शब्द का मतलद दोनों हिंदी और तुर्की में 'दोस्त' होता है।
तुर्की में कठिन समय में कृतज्ञता की भावना उभर आयी, जहां बहुत लोग मलबों के नीचे रह रहे हैं और जीवन के किसी भी निशान की तलाश करने के प्रयास किए जा रहे हैं।

वसुधैव कुटुम्बकम का दर्शन जारी रहना

Sputnik ने कुछ भारतीय विशेषज्ञों से यह पता लगाने की कोशिश की कि क्या इस तरह की दोस्ती भारत-तुर्की के संबंधों को बढ़ा सकती है अगर भारत के पड़ोसी पाकिस्तान से तुर्की के संबंध भी अच्छे हैं।
भारत के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में सेंटर फॉर वेस्ट एशियन स्टडीज के प्रोफेसर डॉ. अश्विनी कुमार महापात्र भी, मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस के एसोसिएट फेलो डॉ. मो. मुदस्सिर क्वामर भी संदेहवाद के साथ कहते हैं कि कश्मीर मुद्दे पर मतभेदों की स्थिति में नई दिल्ली और अंकारा के बीच संबंध "बिल्कुल अच्छे" बन सकते हैं। लेकिन कूटनीति के लिए हमेशा रास्ता होता है, उन्होंने नोट किया।
गुरुवार को Sputnik से बात करते समय क्वामर ने कहा कि तुर्की के लिए भारत की मदद को अंकारा से गहरे संबंध रखने के प्रयास के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। उसको "वसुधैव कुटुम्बकम के भारतीय दर्शन के प्रतिबिंब" के रूप में देखा जाना चाहिए, जिन्होंने कहा "विश्व एक परिवार है"
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया था कि जब उन्होंने तुर्की में भूकंप के बारे में सुना था तो वे भावुक हो गए और उन्हें 2001 में भुज में हुए भूकंप की याद आई थी।

"भारत का जल्द सुझाव और समर्थन का वितरण वसुधैव कुटुम्बकम के भारतीय दर्शन का प्रतिबिंब हैं जिसके अनुसार दुनिया एक परिवार है, और भारत के पीएम का यह विचार भी है। और हम इस विचार को तुर्की में वास्तविक कार्रवाई के दौरान देख रहे हैं," क्वामर ने Sputnik के साथ विशेष बातचीत में कहा।

हालाँकि उन्होंने आशा व्यक्त की कि तुर्की के राष्ट्रपति भारत की सद्भावना को स्वीकार करेंगे और नई दिल्ली के बारे में अपने और तुर्की के दृष्टिकोण को बदलेंगे। तुर्की के राष्ट्रपति ने 2019 में संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान का पक्ष लिया था, जब भारत ने जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति को रद्द किया था।
उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर और भारत के अन्य आंतरिक मामलों को उठाने की तुर्की की प्रवृत्ति के अलावा और वैश्विक मुस्लिम आबादी का प्रतिनिधित्व करने के विचारों के अलावा दोनों देशों के बीच अधिक समस्याएं नहीं हैं।

क्वामर ने कहा, "ऐसा कोई कारण नहीं है जिसके अनुसार कूटनीतिक और राजनीतिक जुड़ाव इन मुद्दों को नहीं हटा सकता है। उम्मीद है कि भारत और पीएम मोदी के सद्भावना के इशारे की मदद से अंकारा और राष्ट्रपति एर्दोगन भी यह समझेंगे।

उन्होंने जोर देकर कहा, "मुझे यह जोड़ना है कि भारत से संबंधों को मजबूत करने की स्थिति में तुर्की के लिए आर्थिक संभावनाएं भी महत्वपूर्ण तत्त्व हैं जो तुर्की के व्यवहार को उदार करने में मदद कर सकती हैं।"

दोस्त या अर्कदास?

दूसरी ओर, प्रोफेसर महापात्र ने इस बात से इनकार किया कि प्रधान मंत्री मोदी की नेक पहल की मदद से दिल्ली और अंकारा के बीच मतभेदों को दूर किया जा सकता है क्योंकि यह (तुर्की) भारत को "दोस्त" मानता है, जबकि पाकिस्तान उनके लिए "भाई" है।
उन्होंने आगे कहा कि हाल के वर्षों में उनके संबंधों में अस्थिरता की स्थिति में यह बहुत "संभव नहीं" है कि भूकंप के समय दिल्ली के बड़े पैमाने पर सहायता कार्यक्रम के बावजूद भारत और तुर्की "सच्चे दोस्त" हो सकते हैं।
"दोस्त के लिए तुर्की का और शब्द 'अर्कदास' है। वे भारत को 'अर्कदास' मानते हैं जबकि पाकिस्तान को 'करदेस' मानते हैं, जिसका अर्थ भाई है। दूसरे शब्दों में, तुर्की पाकिस्तान को 'भाई' समझता है जबकि वह भारत को हमेशा 'दोस्त' कहता है," डॉ महापात्र ने Sputnik को बताया।
उन्होंने कहा, "भारत को 'दोस्त' कहने का उद्देश्य दिल्ली से आर्थिक और व्यापारिक संबंधों को बनाए रखना है, जबकि पाकिस्तान से संबंधों के स्तर को बनाए रखना काफी हद तक धार्मिक, सांस्कृतिक इरादा है।"
महापात्र ने इस पर जोर दिया कि राष्ट्रपति एर्दोगन ने खुद को मुसलमानों के 'मसीहा' के रूप में पेश किया था, और भारत जैसे हिंदू-बहुसंख्यक देश के समर्थन की वजह से इस्लामी दुनिया में उनके दर्जे को कुछ नुकसान पहुंचाया जा सकता है।
जेएनयू के प्रोफेसर ने बताया, "2002 में एर्दोगन के सत्ता में आने के बाद सब कुछ बहुत बदल गया है क्योंकि तुर्की के नेता ने खुद को नए 'खालिद' के रूप में पेश किया था, जिसका अर्थ उन भू-राजनीतिक क्षेत्र की बहाली है जिस में तुर्की इस समय से पहले नेता था।"

महापात्र ने समझाया कि तुर्की अनातोलिया में स्थित है, जो उस्मानी साम्राज्य का केंद्र था। एर्दोगन का लक्ष्य उस स्थान को पुनर्जीवित करना है और वहाँ तुर्की अपनी प्रधानता और दबंग भूमिका स्थापित करने में सक्षम होगा। इसके लिए तुर्की ने अपनी दोनों हार्ड और सॉफ्ट पावर का प्रयोग किया है," उन्होंने कहा।

महापात्र ने बताया कि पाकिस्तान से तुर्की के अत्यंत घनिष्ठ संबंध अंकारा और नई दिल्ली के बीच संबंधों को ज्यादा मजबूत बनने से रोकते हैं।
"पाकिस्तानी लोग खुद को उप-महाद्वीप के मुसलमानों का वास्तविक उत्तराधिकारी मानते हैं, इसीलिए पाकिस्तानी इस देश के आजाद बनने के समय से ही कूटनीतिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक समर्थन के लिए तुर्की की ओर देख रहे हैं।"
महापात्र ने कहा, "इस स्थिति में मुझे नहीं लगता कि तुर्की भारत पर अपने रवैये को 'दोस्त' से 'भाई' में बदलने वाला है, जब तक वे पाकिस्तान को भाई देश मानते हैं।"
विचार-विमर्श करें