10 फरवरी 2007 को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में भाषण दिया था, जिस में उन्होंने आधुनिक विश्व राजनीति की एकध्रुवीयता और समस्याओं पर और आधुनिक दुनिया में रूस के स्थान और भूमिका पर ध्यान केंद्रित किया था।
हालांकि पश्चिमी देशों ने उनके भाषण में उठे गए कई सवालों और मुद्दों को नज़ारअंदाज करने का निर्णय किया, वह अब भी महत्त्वपूरण है और दुनिया में समसामयिक शक्ति संतुलन से संबंधित है।
एकध्रुवीय दुनिया की समस्या
राष्ट्रपति पुतिन ने एकध्रुवीय दुनिया को हटाने की जरूरत पर जोर देते हुए अपने म्यूनिख भाषण में कहा: "में सोचता हूँ कि आधुनिक दुनिया के लिए एकध्रुवीय मॉडल न केवल अस्वीकार्य है, असंभव भी है। यह मॉडल काम नहीं करती, क्योंकि इसमें आधुनिक सभ्यता का नैतिक आधार नहीं है और नहीं हो सकता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि वैश्विक विकास के नए केंद्रों की आर्थिक क्षमता जरूर राजनीतिक प्रभाव में बदलकर बहुध्रुवीयता को मजबूत करेगी।"
विकासशील देशों की गतिविधियों पर दबाव
पुतिन ने विकासशील देशों के मामलों में पश्चिमी देशों के हस्तक्षेप को लेकर चेतावनी जताया। उन्होंने कहा, "एक राज्य यानी अमेरिका के कानून की लगभग पूरी व्यवस्था अर्थव्यवस्था, राजनीति और मानवीय क्षेत्र सहित सभी क्षेत्रों में अपनी राष्ट्रीय सीमाओं से बाहर निकली है और अन्य राज्यों पर इसका दबाव डाला जाता है। किसको यह पसंद होगा?"
इसके साथ पुतिन ने बताया कि आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप समस्याओं का समाधान नहीं करता, बल्कि उन्हें बढ़ाता है। "यकीनन देशों के मामलों में इस तरह का हस्तक्षेप उन्हें आश्रित करता है और इसके नतीजे में वे राजनीतिक और आर्थिक रूप से अस्थिर बन सकते हैं," पुतिन ने कहा।
नाटो की नीति
अपने भाषण में पुतिन ने ऐसी राय व्यक्त की कि नाटो की विस्तार की प्रक्रिया इस गठबंधन के आधुनिकीकरण से या यूरोप में सुरक्षा सुनिश्चित करने से किसी तरह संबंधित नहीं है। पुतिन के अनुसार, रूसी सीमाओं के पास नाटो के सैन्य बुनियादी ढांचे की तैनाती वैश्विक खतरों को हटाने से जुड़ी नहीं है।
"यह बहुत उत्तेजक कारक है जो आपसी विश्वास के स्तर को कम करता है। और हमें वह खुलकर पूछने का उचित अधिकार है कि यह विस्तार किसके खिलाफ है?"
रूस की विदेशनीति
रूसी विदेशनीति के बारे में बात करते हुए व्लादिमीर पुतिन ने कहा, "रूस एक ऐसा देश है जिसका इतिहास एक हजार सालों से भी ज्यादा है। और रूस के पास हमेशा स्वतंत्र विदेश नीति चलाने का विशेषाधिकार था। हम अब भी इस परंपरा का अनुसरण करते हैं।"
रूसी ऊर्जा नीति
2007 में भी अपने म्यूनिख भाषण में व्लादिमीर पुतिन ने रूसी ऊर्जा नीति के संबंध में कहा कि "जरूरी है कि ऊर्जा की कीमतों को बाजार द्वारा निर्धारित किया जाए और कि वे राजनीतिक अटकलों, आर्थिक दबाव या ब्लैकमेल से संबंधित न हों।"
उन्होंने कहा कि रूस ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग के लिए खुला है, और विदेशी कंपनियां देश की सबसे बड़ी ऊर्जा परियोजनाओं में हिस्सा लेती हैं।