साल 2018 में भ्रष्टाचार से लड़ने और देश की अर्थव्यवस्था को ठीक करने का वादा कर उन्होंने चुनाव में जीत दर्ज की। लेकिन वे वादे पूरे नहीं हुए और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मुस्लिम देश वित्तीय संकट की चपेट में आ गया।
लोकलुभावन खान ने साल 2018 में एक "नए पाकिस्तान" की रूपरेखा का वादा कर वर्षों के बाद सत्ता में आए थे।
पूर्व क्रिकेट कप्तान ने, जो अब खुद को एक गरीबी सुधारक के रूप में पेश कर रहे हैं, "इस्लामी कल्याणकारी राज्य" बनाने के अपने सपने के बारे में बात की, जहां धन साझा किया जाता है। उन्होंने महत्वाकांक्षी वादे किए जिनमें देश की कर प्रणाली और नौकरशाही में सुधार शामिल थे।
इसके बजाय, महंगाई बढ़ गई, पाकिस्तानी रुपया गिर गया और देश में मुद्रास्फीति बढ़ गई, जिससे खान पर अर्थव्यवस्था को गलत तरीके से संभालने का आरोप लगे।
उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की मदद लेने का संकल्प लिया, लेकिन भुगतान संतुलन संकट को दूर करने के लिए 6 बिलियन डॉलर बचाव राहत पर बातचीत समाप्त हुई। हालाँकि, 1.1 बिलियन डॉलर का पहला भुगतान जारी नहीं किया गया है, जिसे पाकिस्तानी सरकार ने "दर्दनाक सुधार" कहा है।
क्रिकेट में इमरान खान की पहचान हमेशा से ही एक अच्छे कप्तान के रूप में रही। उनका हर मुश्किल परिस्थिति को आसान बनाने की कला थी। उनकी कप्तानी में पाकिस्तान ने क्रिकेट विश्व कप चैंपियन बनने का सपना पूरा किया। हालांकि, राजनीति में आने के बाद वे विवादों में संलिप्त रहे और अब राजनीतिक खेल ने ही उन्हें सौ से अधिक मुकदमों में आरोपी बना दिया है।
विश्व कप विजयी कप्तान
इमरान खान का जन्म 1952 में एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। उन्होंने 13 साल की उम्र में अपने कॉलेज के लिए क्रिकेट खेलना शुरू किया, और बाद में वोर्सेस्टरशायर के लिए खेलने लगे।
उन्होंने 1971 में 18 साल की उम्र में पाकिस्तान के लिए अंतराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया और 1982 में राष्ट्रीय टीम के कप्तान बन गए।
खान को आमतौर पर अब तक के सबसे महान तेज गेंदबाजों में से एक माना जाता है। अपने शानदार क्रिकेट करियर में उन्होंने 88 टेस्ट मैच खेले और 3,807 रन बनाए।
उन्होंने 1992 में पाकिस्तान के सर्वकालिक सबसे सफल खिलाड़ियों में से एक के रूप में विश्व कप जीतने के बाद क्रिकेट से संन्यास ले लिया।
राजनीतिक पारी की शुरुआत
क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद, खान पाकिस्तान की राजनीतिक मैदान की ओर रुख कर गए। साल 1996 में उन्होंने राजनीतिक पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) की स्थापना की, जो पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) और पाकिस्तान मुस्लिम लीग (PML) के विरोध में एक मध्यमार्गी पार्टी थी।
2007 में पाकिस्तान में आपातकालीन शासन के दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ द्वारा राजनीतिक विरोधियों पर कार्रवाई के रूप में खान जेल जाने के एक हफ्ते बाद विरोध में भूख हड़ताल पर चले गए।
इसके बाद PTI दो दशकों में तेजी से बढ़ी, और अब पाकिस्तान में प्रमुख राजनीतिक ताकतों में से एक है। 2013 के चुनावों में इसने पंजाब और सिंध प्रांतों में आधिकारिक विपक्षी पार्टी बनने के लिए PPP को पीछे छोड़ दिया।
प्रधानमंत्री के रूप में शपथ
उन्होंने साल 1996 में पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) नाम से पार्टी के गठन का ऐलान किया, लेकिन 2013 के आम चुनाव तक पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर एक गंभीर खिलाड़ी के रूप में नहीं उभरा। हालाँकि पांच साल बाद 2018 में राजनीतिक परिणाम ने उन्हें सत्ता के लिए प्रेरित किया।
PTI ने अपने प्रतिद्वंद्वियों नवाज और शाहबाज़ शरीफ के गढ़, पंजाब प्रांत में भारी बढ़त हासिल की, जो 272 सीधे-निर्वाचित नेशनल असेंबली सीटों में से आधे से अधिक है।
खान को देश में एक "परिवर्तन" उम्मीदवार के रूप में देखा गया था, जिन्होंने स्वच्छ राजनीतिक व्यवस्था को खड़ा करने का वादा कर पुराने राजनीतिक व्यवस्था से निराश मतदाताओं को अपने साथ जोड़ लिया।
2018 के चुनाव में खान की पार्टी सत्तारूढ़ PML के खिलाफ लड़ी, जिसके पूर्व नेता नवाज शरीफ को 2017 में भ्रष्टाचार के आरोपों में प्रधान मंत्री के पद से हटा दिया गया था और बाद में जेल में डाल दिया गया था।
इस बीच साल 2018 में खान पांच निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़े और उनकी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। 18 अगस्त को इमरान खान 22वें प्रधानमंत्री बन गए।
कार्यकाल पूर्ण नहीं कर सके
मार्च 2022 के अंत तक दल-बदल की एक श्रृंखला ने उन्हें उनके संसदीय बहुमत से वंचित कर दिया और विपक्ष ने उनको अविश्वास प्रस्ताव पेश किया।
खान ने संसद को भंग करके और मध्यावधि चुनाव बुलाकर इस कदम को रोकने की कोशिश की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे संविधान का उल्लंघन करार दिया। 10 अप्रैल 2022 को अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान हुआ और इमरान खान हार गए, उनके विरोधियों ने 342 सदस्यीय सदन में 174 वोट हासिल किए जिसके बाद उन्हें मजबूरन इस्तीफा देना पड़ा।
उन्होंने दावा किया कि उनके राजनीतिक विरोधी अफगानिस्तान, रूस और चीन पर उनकी केंद्रित नीतियों के कारण शासन परिवर्तन लाने के लिए अमेरिका के साथ मिलीभगत कर रहे थे मगर उन्होंने इसका कोई सबूत नहीं दिया।
हालांकि 70 वर्षीय खान ने राजनीति छोड़ने की इच्छा का कोई संकेत नहीं दिखाया है और उन्होंने सत्ता से बाहर अपना समय समर्थकों की बड़ी रैलियों को संबोधित करने में बिताया है जो उनके पद से हटाए जाने से नाराज हैं। उन्हें जनता का भी काफी समर्थन प्राप्त है। जिस रात उन्हें सत्ता से बेदखल किया गया उस रात हजारों की संख्या में लोग पूरे पाकिस्तान के शहरों में सड़कों पर उतर आए।
नवंबर 2022 में पूर्वी शहर वज़ीराबाद में एक विरोध रैली के दौरान हुए हमले में उन्हें गोली मारकर घायल कर दिया गया था। सहयोगियों ने कहा कि यह उनपर जानलेवा हमले का प्रयास था, लेकिन पुलिस ने तुरंत पुष्टि नहीं की कि उन्हें निशाना बनाया गया था। दरअसल पूर्व प्रधानमंत्री मध्यावधि चुनाव की मांग को लेकर इस्लामाबाद मार्च का नेतृत्व कर रहे थे।
पिछले महीने उन्हें एक और झटका लगा जब चुनाव आयोग ने उन्हें राजनीतिक रूप से प्रेरित एक मामले में सार्वजनिक पद धारण करने से अयोग्य घोषित कर दिया। उन पर विदेशी गणमान्य व्यक्तियों के उपहारों के विवरण और उनकी कथित बिक्री से आय की गलत घोषणा करने का आरोप लगाया गया था।
इस बीच 9 मई को खान को भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार किया गया था, जिसने देश में बढ़ती खाद्य कीमतों के बीच व्यापक विरोध को चिंगारी दी, और नतीजतन पाकिस्तान में राजनीतिक संकट को और गहरा कर दिया। हालांकि देश की सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ़्तारी को अवैध बताकर रिहाई का आदेश दिया।
खान की गिरफ्तारी ने पूर्व पीएम, सरकार और सेना के बीच किसी भी तरह के विश्वास को कम कर दिया है। दरअसल इमरान खान ने पूरे पांच साल के कार्यकाल की उम्मीद की थी, जो पाकिस्तान में किसी अन्य प्रधान मंत्री ने कभी नहीं किया था क्योंकि देश का इतिहास तख्तापलटों और सैन्य शासन से भरा है।
गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लंबे समय से पाकिस्तान के सबसे प्रसिद्ध चेहरों में से एक, खान ने लोकप्रिय समर्थन को चुनावी लाभ में बदलने के लिए वर्षों तक संघर्ष किया है।
लेकिन उन्हें व्यापक रूप से सेना के पसंदीदा उम्मीदवार के रूप में भी देखा गया, जिस पर अपने प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ राय बदलने में दखल देने का आरोप लगाया गया था।
हालांकि कई राजनीतिक जानकार अब कहते हैं कि उनकी सबसे बड़ी समस्या यह है कि उन्होंने 1947 में आजादी के बाद से पाकिस्तान पर हावी रहे जनरलों का समर्थन पूरी तरह खो दिया है। दरअसल पाकिस्तान की कुछ मूल समस्याओं से निपटने की मांग करने वाले असैन्य नेताओं ने अतीत में खुद को प्रतिष्ठान के साथ टकराव के रास्ते पर पाया है।
हालांकि इससे इस साल के आखिर में होने वाले चुनावों में खान को मदद मिल सकती है, लेकिन सभी की निगाहें उन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर टिकी हैं।
इस बीच पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने सोमवार को दावा किया कि देश के शक्तिशाली सैन्य प्रतिष्ठान ने देशद्रोह के आरोप में उन्हें अगले 10 साल तक जेल में रखने की योजना बनाई है।
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के प्रमुख ने सोमवार को सिलसिलेवार ट्वीट में कहा, "तो अब लंदन की पूरी योजना सामने आ गई है। जब मैं जेल में था तब हिंसा के बहाने उन्होंने जज, जूरी और जल्लाद की भूमिका निभाई। अब योजना बुशरा बेगम (खान की पत्नी) को जेल में डाल कर मुझे अपमानित करने की है, और अगले दस साल तक मुझे जेल के अंदर रखने के लिए कुछ राजद्रोह कानून का इस्तेमाल कर रही है।"
यह ट्वीट खान के लाहौर स्थित आवास पर PTI नेताओं की बैठक के बाद आया है।