भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) चंद्रयान-3 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च व्हीकल मार्क-III (LMV-3) द्वारा लॉन्च किया जाएगा और मिली जानकारी के मुताबिक यह 13 जुलाई को दोपहर 2.30 बजे निर्धारित है।
क्या है चंद्रयान-3 ?
इसरो के अधिकारियों के मुताबिक, चंद्रयान-3 चंद्रयान-2 का ही अगला मिशन है, जो चंद्रमा की सतह पर उतरेगा और परीक्षण करेगा। यह चंद्रयान-2 के ही जैसा दिखने में होगा। चंद्रयान-3 का फोकस चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंड करने पर है। मिशन की सफलता के लिए उन कारणों पर फोकस किया गया है जिनकी वजह से चंद्रयान-2 चन्द्रमा की सतह पर उतरने में सफल नहीं हो सका था।
चंद्रयान-1 और चंद्रयान-2 का क्या हुआ ?
चंद्रयान-1 यानी चंद्रमा के लिए भारत का पहला मिशन 22 अक्टूबर 2008 को लॉन्च किया गया था। उपग्रह ने चंद्रमा के चारों ओर करीब 3400 से ज्यादा परिक्रमाएँ कीं और 29 अगस्त 2009 को अंतरिक्ष यान के साथ संचार खो जाने पर मिशन खत्म हो गया।
इस मिशन का प्राथमिक उद्देश्य पृथ्वी के निकट और दूर दोनों तरफ का त्रि-आयामी एटलस तैयार करना था।चंद्रयान-1 का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम चंद्र सतह पर हाइड्रॉक्सिल (OH) और पानी (H2O) अणुओं की उपस्थिति की खोज है।
इस मिशन का प्राथमिक उद्देश्य पृथ्वी के निकट और दूर दोनों तरफ का त्रि-आयामी एटलस तैयार करना था।चंद्रयान-1 का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम चंद्र सतह पर हाइड्रॉक्सिल (OH) और पानी (H2O) अणुओं की उपस्थिति की खोज है।
चंद्रयान-1 के लॉन्च के ग्यारह साल बाद 3,840 किलोग्राम वजनी चंद्रयान-2 को 22 जुलाई, 2019 को जीएसएलवी एमके-3 एम1 रॉकेट से प्रक्षेपित किया गया था। अंतरिक्ष यान 20 अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में पहुंच गया था। इसके बाद इसरो को दो सितंबर को ऑर्बिटर से लैंडर को अलग करने में सफलता मिली थी, लेकिन चंद्रयान-2 के चंद्रमा की सतह पर उतरने से कुछ समय पहले लैंडर विक्रम से संपर्क टूट गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस ऐतिहासिक पल का गवाह बनने के लिए इसरो मुख्यालय बेंगलुरू पहुंचे थे किंतु आख़िरी क्षण में चंद्रयान-2 का करीब डेढ़ महीनों का सफ़र अधूरा रह गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस ऐतिहासिक पल का गवाह बनने के लिए इसरो मुख्यालय बेंगलुरू पहुंचे थे किंतु आख़िरी क्षण में चंद्रयान-2 का करीब डेढ़ महीनों का सफ़र अधूरा रह गया।
लैंडर, प्रोपल्शन और रोवर शामिल
हालाँकि, चंद्रयान-2 के विपरीत, यह ऑर्बिटर अनुसंधान पेलोड से सुसज्जित नहीं होगा। चंद्रयान-3 अंतरग्रहीय मिशनों के लिए नई तकनीक विकसित करने का मिशन है। इसमें एक लैंडर मॉड्यूल, एक प्रोपल्शन मॉड्यूल और एक रोवर शामिल है।
चंद्रयान-3 के लैंडर में चार पेलोड हैं, जबकि छह चक्के वाले रोवर में दो पेलोड हैं। इसके अलावा प्रोपल्शन मॉड्यूल में भी एक स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री पेलोड है जो चंद्रमा के कक्ष से पृथ्वी के वर्णक्रमीय और ध्रुवमिति माप का अध्ययन करेगा।
लैंडर मॉड्यूल धीरे से एक विशिष्ट चंद्र स्थल पर उतरेगा और रोवर को छोड़ देगा। रोवर चंद्रमा की सतह पर घूमते हुए उसके रसायनों का विश्लेषण करेगा। लैंडर और रोवर दोनों ही प्रयोगों के लिए वैज्ञानिक उपकरण ले जाते हैं।
प्रोपल्शन मॉड्यूल का मुख्य काम लैंडर और रोवर को सतह से 100 किमी ऊपर चंद्र कक्षा में पहुंचाना है। एक बार कक्षा में पहुंचने के बाद, लैंडर प्रोपल्शन मॉड्यूल से अलग हो जाता है। प्रोपल्शन मॉड्यूल में स्वयं एक वैज्ञानिक उपकरण है जिसका उपयोग पृथक्करण के बाद किया जाएगा।
लैंडर और रोवर के रहेंगे पुराने नाम
इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने घोषणा की कि चंद्रयान -3 अंतरिक्ष यान अपने पूर्ववर्तियों के नाम बरकरार रखेगा। अंतरिक्ष यान को भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के संस्थापक विक्रम साराभाई के नाम पर 'विक्रम' कहा जाएगा और रोवर का नाम 'प्रज्ञान' रखा जाएगा, जिसका संस्कृत में अर्थ बुद्धि है। यह निर्णय चंद्रयान-2 की विरासत का सम्मान करता है और मिशनों के बीच एक प्रतीकात्मक संबंध बनाए रखता है।
सभी टेस्टिंग में सफल रहा है यान
चंद्रयान-3 ने लॉन्चिंग से पूर्व टेस्टिंग प्रक्रिया में सफल रहा है। लॉन्चिंग व्हीकल के ऊपरी चरण को रफ़्तार देने के लिए इसमें लगाया गया क्रायोजेनिक CE-20 इंजन की टेस्टिंग भी पूर्ण रूप से सफल रही है। लैंडर भी अपने परीक्षण में उत्तीर्ण रहा है।
चंद्रयान-3 क्यों जरूरी है?
भारत का चंद्रयान-2 मिशन इतिहास रचने से कुछ कदम दूर रह गया था। हालांकि चंद्रयान-2 मिशन अपने उद्देश्य में भले ही पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया किंतु दुनियाभर में इसकी खूब तारीफ हुई थी।
इसलिए चंद्रयान-3 की सफलता दूसरे ग्रहों के लिए इसरो के मिशन का आधार बनेगी। इसरो के मुताबिक इस मिशन के बाद मानवरहित मिशन की शुरुआत होगी। एजेंसी का उद्देश्य गगनयान के मानवरहित मिशन को लॉन्च करने की है। गगनयान मिशन के तहत तीन भारतीयों को अंतरिक्ष में भेजने की योजना है। इस मिशन के लिए चयनित चार पायलटों को रूस में प्रशिक्षित किया गया है।
Chandrayaan-3 Lander
© Photo : ISRO
रूस-भारत अंतरिक्ष सहयोग
रूस भारत के अंतरिक्ष से जुड़े कार्यक्रम में पहले से ही सहयोग करता रहा है। भारत ने वर्ष 1975 में पहला सैटेलाइट आर्यभट्ट लॉन्च किया था, जिसको रूस की मदद से तैयार किया गया था।
भारत और रूस ने साल 2021 में, मानव के साथ अंतरिक्ष उड़ान समेत अंतरिक्ष के क्षेत्र में आपसी सहयोग और प्रगाढ़ करने का संकल्प लिया और प्रक्षेपण यान के निर्माण एवं संचालन में सहयोग के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किये थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच हुई शिखर वार्ता के दौरान इस समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे। इन समझौते के बाद दोनों देशों ने रूसी अंतरिक्ष एजेंसी ‘रॉसकॉसमॉस’ और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के बीच सहयोग बढ़ने का स्वागत किया था।
चंद्रयान-3 का उद्देश्य
चंद्रयान-3 मिशन का प्राथमिक उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग का प्रदर्शन करना और रोवर की गतिशीलता का प्रदर्शन करना है। इसके अतिरिक्त, इन-सीटू वैज्ञानिक प्रयोगों का संचालन करना और इंटरप्लानटरी मिशन के लिए जरूरी नई तकनीकों का विकास और प्रदर्शन करना भी चंद्रयान-3 के प्रमुख उद्देश्य हैं।
चंद्रयान-3 में खर्च
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक चंद्रयान-3 लगभग 615 करोड़ रुपये में तैयार हुआ है। हालांकि इसका कुल खर्च एक हजार करोड़ के आसपास है। मिली जानकारी के मुताबिक चंद्रयान-3 के लैंडर, रोवर और प्रोपल्शन मॉड्यूल पर तकरीबन 250 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं, वहीं इसकी लांचिंग पर करीब 365 करोड़ रुपये खर्च होंगे। जिस रॉकेट से चंद्रयान3 लांच किया जाएगा उसकी लागत भी करीब 350 करोड़ के आसपास है।
अंतरिक्ष की वाणिज्यक दौड़
वर्तमान समय में दुनिया की कई कंपनियाँ अंतरिक्ष की वाणिज्यक दौड़ में शामिल हैं। इन कंपनियों ने विश्व को अंतरिक्ष के आर्थिक उपयोग के लिये सोचने को प्रोत्साहित किया है। वर्तमान में वैश्विक अंतरिक्ष उद्योग का आकार करीब 350 बिलियन डॉलर है और यह साल 2025 तक बढ़कर 550 बिलियन डॉलर होने की संभावना है।
इस तरह अंतरिक्ष एक अहम बाज़ार के रूप में विकसित हो रहा है। इसरो ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2025 तक भारत की अंतरिक्षीय अर्थव्यवस्था 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच सकती है। उपग्रह निर्माण को लेकर भारत अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में दूसरा सबसे तेजी से बढ़नेवाला देश है।
इस तरह अंतरिक्ष एक अहम बाज़ार के रूप में विकसित हो रहा है। इसरो ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2025 तक भारत की अंतरिक्षीय अर्थव्यवस्था 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच सकती है। उपग्रह निर्माण को लेकर भारत अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में दूसरा सबसे तेजी से बढ़नेवाला देश है।
विगत कई वर्षों में इसरो ने विभिन्न कंपनियों से साझेदारी की है विशेषकर सार्वजनिक क्षेत्र से। हालांकि कुछ कंपनियाँ निजी क्षेत्र से भी जुड़ी हुईं हैं किंतु निजी क्षेत्र की कंपनियाँ सिर्फ कलपुर्जे एवं द्वितीयक और तृतीयक स्तर की सेवाएँ ही उपलब्ध कराती हैं।
इसी को ध्यान रखकर भारत ने इसी साल अप्रैल महीने में नई स्पेस पॉलिसी को मंजूरी दे दी। भारत की नई अंतरिक्ष नीति में भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र को खोल दिया गया है। इसमें निजी क्षेत्र को इंडियन स्पेस प्रोग्राम में विकास करने और सक्रिय भूमिका निभाने का मौका देने की बात की गई है।
इसी को ध्यान रखकर भारत ने इसी साल अप्रैल महीने में नई स्पेस पॉलिसी को मंजूरी दे दी। भारत की नई अंतरिक्ष नीति में भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र को खोल दिया गया है। इसमें निजी क्षेत्र को इंडियन स्पेस प्रोग्राम में विकास करने और सक्रिय भूमिका निभाने का मौका देने की बात की गई है।