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समान नागरिक संहिता पर 'गलत सूचना' राजनीतिक रूप से पक्षपातपूर्ण है: मुस्लिम संगठन के अध्यक्ष

कई वर्षों से समान नागरिक संहिता बनाना सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के कार्यसूची में रहा है। प्रस्तावित कानून का लक्ष्य धर्म, जाति और पंथ के बावजूद देश के सभी नागरिकों के लिए कानूनों का सामान्य स्तर स्थापित करना है।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 27 जून को पार्टी पदाधिकारियों को संबोधित करने के बाद भारत में UCC पर बहस शुरू हुई। लेकिन उसी दिन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने एक रात की बैठक की और इस तथ्य के बावजूद इसका विरोध करने का निर्णय किया।
गलत सूचना साफ़ करने का काम पार्टी की दिल्ली शाखा की अल्पसंख्यक शाखा और राष्ट्रवादी मुस्लिम पसमांदा महाज़ के अध्यक्ष आतिफ़ रशीद को सौंपा गया था। Sputnik के साथ एक साक्षात्कार में रशीद ने UCC के आसपास फैलाई जा रही "गलत सूचना" और उसे दूर करने के बारे में बात की।
Sputnik: प्रस्तावित UCC के कार्यान्वयन पर बहुत हंगामा हुआ है, जो ज़्यादातर मुस्लिम संगठनों और समुदाय से आ रहा है। UCC के कौनसे प्रावधानों का विरोध किया जा रहा है?
रशीद: मैं खुद सोचता हूँ कि ऑल इंडिया पर्सनल लॉ काउंसिल, जमीयत उलेमा आदि जैसे मुस्लिम संगठन रणनीति के दृष्टिकोण से पक्षपाती हैं। उनका कहना है कि मुस्लिम पूजा पद्धति हिंदू, ईसाई या सिख से अलग है। और अगर UCC लागू होता है तो यह उनके धर्म में हस्तक्षेप होगा।
उन्हें समझना चाहिए कि प्रस्तावित समान नागरिक संहिता समान धार्मिक संहिता नहीं है। सभी धर्मों की पूजा पद्धति नहीं बदलेगी। जो लोग मंदिर जाना चाहते हैं वे जाते रहेंगे और जिन्हें मस्जिद जाना है वे जाते रहेंगे।
जैसा कि मोदी ने कहा, किसी देश को अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग नियमों से नहीं चलाया जा सकता।
मैं उन्हें समझाता हूँ कि UCC बहुविवाह पर रोक, तीन तलाक, हलाला, मुस्लिम महिलाओं को बच्चे गोद लेने का अधिकार और महिलाओं को संपत्ति में समान अधिकार जैसे मुद्दों पर केंद्रित है।
उदाहरण के लिए अगर हम तीन तलाक (त्वरित तलाक) की बात कर रहे हैं तो यह पहले से ही प्रतिबंधित है। इसलिए विरोध करने का कोई मतलब नहीं है।
साथ ही मुझे नहीं लगता कि मुस्लिम महिलाओं के बच्चों को गोद लेने और उन्हें विरासत में मिली संपत्ति में समान अधिकार देने के अधिकार का विरोध करने का कोई अच्छा कारण है। महिला सशक्तिकरण की दिशा में यह एक बड़ा कदम हो सकता है।
राजनीति
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Sputnik: विपक्षी दलों का दावा है कि भाजपा UCC की वकालत उस वजह से करता है कि अगले साल चुनाव होने वाले हैं। उस पर आपकी क्या राय है?
रशीद: हर राजनीतिक दल उन मुद्दों के लिए चुनाव में हिस्सा लेता है जो जनता के हितों पर खरे उतारते हैं। इसलिए अगर विपक्षी दल कहते हैं कि भाजपा 2024 के संसदीय चुनावों के कारण UCC की वकालत करती है, तो यह पार्टी के लिए ही अच्छा है।
विपक्ष को भी इसका समर्थन करना और आगामी चुनाव में इसका लाभ उठाना चाहिए।
Sputnik: क्या समय ध्यान में रखते हुए UCC अधिक सांप्रदायिक हिंसा भड़का सकती है, मुख्यतः कुछ विशेष भारतीय राज्यों में मुसलमानों और हिंदुओं के बीच?
रशीद: सबसे पहले मैं यह कहूँ कि यह पूरी तरह से गलत बयान है कि हाल ही में आबादी के बीच हिंसा बढ़ी है। हिंदू और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक तनाव कोई नई बात नहीं है, लेकिन सन 2014 से लेकर आज तक मुझे दोनों समुदायों के बीच कोई बड़ी झड़प याद नहीं है।
दोनों समुदायों के बीच तनाव कुछ लोगों के कारण है जो नहीं चाहते कि देश का विकास हो। आज देखें तो सरकारी योजनाओं का बड़ा लाभ मुसलमानों को ही मिलता है। लगभग सभी क्षेत्रों में उनका अच्छा प्रतिनिधित्व है, उनके रोजगार के अवसर भी बढ़े हैं और वे देश में अधिक सुरक्षित महसूस करते हैं।
जब नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) पारित किया गया था तो इसी तरह के प्रयास किए गए थे। पूरे देश में मुस्लिम समुदाय के बीच गलत सूचि आम थीं। उन्हें बताया गया कि इस अधिनियम से वे अपनी नागरिकता खो देंगे, जो निश्चित रूप से झूठ निकला। चूँकि विपक्षी पार्टियों का एक ही एजेंडा बीजेपी की ओर से मुसलमानों को आतंकित करना है।
Sputnik: आपने UCC के बारे में मुसलमानों, विशेषकर पसमांद समुदाय को सम्बोधित किया। इस मामले पर उनकी क्या राय है?
रशीद: आप देखिए मुसलमानों के बीच UCC की बुनियादी समझ यह है कि उसी क्षण यह लागू हो, वे अपने अनुष्ठानों के अनुसार अपनी पूजा नहीं कर पाएँगे क्योंकि तथाकथित मुस्लिम संगठनों द्वारा यह गलत धारणा फैलाई गई है।
इसलिए हम उनसे बात करते हैं ताकि उन्हें UCC के बारे में बताया जा सके कि यह किसी भी तरह से उनके धर्म में हस्तक्षेप नहीं करेगा। अगर कोई दिन में पाँच बार नमाज पढ़ना चाहता है तो वह ज़रूर यह कर सकता है, अगर कोई तकिया (मुस्लिम टोपी) पहनना चाहता है तो वह धर्म के अनुसार बताई गई हर बात का पालन कर सकता है।
Sputnik: सरकार गलत सूचना को कैसे दूर कर सकती है और भारत में अन्य अल्पसंख्यकों और जनजातियों को UCC के लाभों के बारे में कैसे समझा सकती है?
रशीद: मैं पूरी तरह से समझता हूँ कि अन्य अल्पसंख्यक समुदायों और जनजातियों में भी कई गलतफहमियाँ हैं, क्योंकि हाल ही में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा था कि UCC ईसाइयों के विरुद्ध भी है। मैं उनसे केवल यह पूछना चाहता हूँ कि क्या उन्हें पता है कि UCC को गोवा राज्य में पहले ही लागू किया जा चुका है, जहाँ ईसाई आबादी बहुत अधिक है। क्या उनके किसी अधिकार का उल्लंघन हुआ है?
लेकिन मुझे अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के बीच गलत सूचना को दबाने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए किसी भी कदम की जानकारी नहीं है।
इस साक्षात्कार में व्यक्त किए गए विचार और राय निजी स्तर पर वक्ता के हैं और यह ज़रूरी नहीं है कि वे Sputnik की राय को प्रतिबिंबित करते हैं।
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क्या है समान नागरिक संहिता (UCC) और क्यों है यह जरूरी?
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