भारतीय प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल के लिए
सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कोई कसर नहीं छोड़ रही वहीं विपक्ष सहयोगियों को लुभाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। भाजपा के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का दावा है कि उसने पहले ही 38 दलों का समर्थन हासिल कर लिया है, जबकि कांग्रेस के पास 26 सहयोगी हैं।
वस्तुतः अप्रैल में शुरू हुई उच्च-स्तरीय बातचीत और पटना एवं बेंगलुरु में दो प्रमुख बैठकों के बाद, दो राष्ट्रीय और 24 क्षेत्रीय दलों सहित देश के 26 विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA ) के खिलाफ 2024 के आम चुनाव लड़ने के लिए एक समूह बनाने में कामयाब रहे हैं। भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन (INDIA) नाम के इस विपक्षी गठबंधन में सात राज्यों में मुख्यमंत्री और लोकसभा में कुल 142 सदस्य हैं।
वहीं दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) 2014 में सत्ता में आने के बाद से देश में लगभग हर राजनीतिक चर्चा पर हावी रही है। पार्टी ने
विपक्षी दलों को सार्वजनिक बहसों में हतोत्साहित कर दिया है।
विशेष रूप से, जबकि पार्टियां भाजपा विरोधी मोर्चे के रूप में एक साथ आई हैं, गठबंधन के कई घटक कई क्षेत्रों में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ सीधे मुकाबले में हैं। दूसरी राष्ट्रीय पार्टी, आम आदमी पार्टी (AAP) का कांग्रेस के साथ असंगत संबंध रहा है। पश्चिम बंगाल, पंजाब और केरल में विपक्षी गठबंधन के घटक दल एक-दूसरे से लड़ते रहते हैं। जहां तक छोटे क्षेत्रीय दलों का सवाल है, जो एक साथ आए हैं, तो केरल कांग्रेस के दोनों गुटों को कट्टर प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा जाता है। इस बीच, गठबंधन को अभी भी प्रमुख राज्यों में सीट-बंटवारे के समझौते पर विचार करना है।
Sputnik से बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अर्जुन देशप्रेमी ने कहा कि जब कभी चुनाव होता है तो चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक दल कोशिश करते हैं और इसलिए गठबंधन बनाते हैं। जैसे महाभारत के समय भी पांडव और कौरव ने अपनी-अपनी सेनाओं में शामिल होने के लिए अलग-अलग राज्यों के राजाओं को आमंत्रित किया।
वस्तुतः उत्तर प्रदेश में दो दशकों से अधिक समय तक एक-दूसरे से लड़ने के बाद, कट्टर प्रतिद्वंद्वी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) 2014 के संसदीय चुनावों में शुरू हुई अपनी चुनावी गिरावट को रोकने के लिए एक साथ आए थे।
जब से अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी का नेतृत्व संभाला है, इसने गठबंधन में तीन चुनाव लड़े हैं। इसने
कांग्रेस के साथ गठबंधन में 2017 यूपी विधानसभा चुनाव लड़ा; 2019 के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के साथ गठबंधन और 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में आरएलडी, अपना दल (के) और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (जो रविवार को एनडीए में शामिल हो गए) के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा। तीनों ही चुनाव में गठबंधन प्रयोगों में सपा बीजेपी को हराने में नाकाम रहीं।
फिर भी,
विपक्षी गठबंधन का भाग्य काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि 2024 के चुनावों में कांग्रेस भाजपा के मुकाबले कैसा प्रदर्शन करती है। 2014 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच 189 सीटों पर सीधी टक्कर थी और भारतीय जनता पार्टी ने इनमें से 166 सीटों पर जीत हासिल की थी। 2019 में, वे 192 सीटों पर सीधे मुकाबले में थे, जिनमें से बीजेपी ने 176 सीटें जीतीं। इससे पता चलता है कि कांग्रेस के खिलाफ बीजेपी का स्ट्राइक रेट 85% से ऊपर है।
2024 में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में
बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुकाबला दिलचस्प होगा।
वास्तव में विपक्षी गठबंधन के साझेदारों के बीच सीट साझा करना शायद सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है, जहां सभी संबंधित पक्षों को व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना होगा और अधिक अच्छे के लिए जगह छोड़नी होगी। हालांकि ऐसे में पार्टी के भीतर ही बगावत के सुर बुलंद होंगे। कोई भी भागीदार चाहे वह कांग्रेस में हो या किसी भी क्षेत्रीय दल में जो अधिक सीट चाहेगा, पूरे गठबंधन पर प्रभाव डालेगा।
वहीं नौ साल तक सत्ता में रहने के बाद, बीजेपी सत्ता विरोधी लहर को नजरअंदाज नहीं कर सकती। तेलगुदेशम पार्टी, जनता दल यूनाइटेड, शिव सेना और शिरोमणि अकाली दल जैसे सहयोगियों के बाहर चले जाने के बाद दूसरी तरफ देखने के बाद, बीजेपी अब विपक्षी गठबंधन के मद्देनजर एनडीए को मजबूत करने की जरूरत महसूस कर रही है।
लेकिन एनडीए को जादुई संख्या हासिल करने के लिए बहुत हद तक
नरेंद्र मोदी के करिश्मे पर निर्भर है। बीजेपी चुनाव में मोदी की लोकप्रियता को भुनाने के लिए पूरी कोशिश करेगी, विशेषज्ञ ने बताया।
इस सबके बीच आने वाले महीनों में अपेक्षित उतार-चढ़ाव के बावजूद विपक्षी या एनडीए गठबंधन किस रूप में कायम रहेगा या नहीं रहेगा और इससे किसको कितना नुकसान होगा, यह देखने लायक होगा।