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क्या 2024 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार विपक्षी दल का चेहरा होंगे?
क्या 2024 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार विपक्षी दल का चेहरा होंगे?
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2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा के खिलाफ योजना बनाने के लिए 10 मई को कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद विपक्षी दलों की बैठक पटना में हो सकती है।
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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 29 अप्रैल को संकेत दिया कि 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा के खिलाफ योजना बनाने के लिए 10 मई को कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद विपक्षी दलों की बैठक पटना में हो सकती है।बता दें कि साल 2018 में तेलुगु देशम पार्टी (TDP) के प्रमुख और आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू भाजपा नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) से पृथक हुए थे और गैर भाजपा दलों के चहेता बन गए थे। साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पूर्व शायद ही कोई ऐसा राज्य था, जहां जाकर उन्होंने भाजपा विरोधी नेताओं से मुलाकात न की हो। परंतु वह अपने उद्देश्य में पूर्ण रूप से असफल रहे। इसी भूमिका में इन दिनों भी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नजर आ रहे हैं। चंद्रबाबू नायडू की तरह नीतीश कुमार भी वर्षों तक NDA का हिस्सा रहे हैं और NDA के साथ मिलकर सत्ता का लाभ भी ले चुके हैं।ऐसे में सवाल यह है कि क्या 2024 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी का मुकाबला करने के लिए नीतीश कुमार विपक्षी दल का चेहरा होंगे? इन सवालों का जवाब जानने के लिए Sputnik ने वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक अरविंद मोहन से बात की।इस सवाल का जवाब उन्होंने दिया नहीं। ये नीतीश कुमार को भी भ्रम नहीं होगा और बाकि लोगों को भी नहीं होना चाहिए क्योंकि चुनावी मुकाबला तो बहुत सीधी तो होनी ही नहीं है, यह बहुत जटिल प्रकार की होगी। विपक्षी दलों के चेहरा तय करने में बड़ी पार्टियों यानी कांग्रेस का फैसला अहम भूमिका निभाएगा।साथ ही उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव या और कोई नाम जो चल रहा है ये सब तभी विचारणीय होंगे जब विपक्ष में सहमति नहीं बनेगी या सदन की स्थिति कुछ इस तरह की होगी कि कांग्रेस के लिए कुछ करना संभव नहीं होगा।दरअसल नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ बिहार में नई सरकार बनाने के बाद, भाजपा को चुनौती देने के लिए समान विचारधारा वाले दलों के गठबंधन को एक साथ जोड़ने के कई प्रयास किए हैं।इसी क्रमबद्धता में 24 अप्रैल को कोलकता में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात की। इस दौरान तीनों नेताओं ने 2024 लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी एकजुटता पर बात की। ममता बनर्जी से मिलने के बाद, नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने उसी दिन लखनऊ में समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव से मुलाकात की और विपक्षी दलों के गठबंधन के गठन पर चर्चा की थी।Sputnik ने जब अरविन्द मोहन से पूछा कि नीतीश कुमार के पीएम उम्मीदवारी की दावेदारी में कितना दम हैं तो उन्होंने टिप्पणी की कि ये बात नीतीश कुमार भी ज्यादा अच्छी तरह समझते हैं। नीतीश अपने लिए रोल बड़ा तो जरूर चाहते हैं क्योंकि वे (नीतीश कुमार) मानते हैं कि बिहार में उनका काम अब ख़त्म हो गया। उनको लगता है बिहार में इससे ज्यादा अब कुछ नहीं किया जा सकता है। उनका राजनीतिक व्यवहार यही बता रहा है और केंद्र में जो भूमिका उनको पहले मिली थी वह छोटी थी इसकी तुलना में और वे बड़ा रोल चाहते हैं।साथ ही उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार जो भूमिका अभी निभा रहे हैं, वह भी जरूरी है। वे सब जगह जाकर विपक्ष को एकजुट करने के लिए अलग-अलग नेताओं से मिल रहे हैं और इससे उनका प्रतिष्ठा बढ़ रही है। वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जब भाजपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी, तब विपक्ष पूरी तरह बिखर गया था। वर्ष 2019 में चंद्रबाबू नायडू ने विपक्षी एकता को एकत्रित करने की भरपूर कोशिश की और कुछ राज्यों में गठबंधन हुए भी, उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी साथ आए, पर वे भी सफल नहीं हो पाए। ऐसे में Sputnik ने सवाल पूछा कि क्या लोकसभा चुनाव के बाद भी विपक्ष एकजुट रह पाएगा। इस पर उन्होंने कहा कि विपक्ष को एकजुट रहने में कोई समस्या नहीं है।क्या नीतीश कुमार की राजनीतिक अतिमहत्वाकांक्षा के शिकार हैं? इस सवाल के जवाब में अरविन्द मोहन ने Sputnik को बताया कि नहीं, नीतीश कुमार का लम्बा राजनीतिक सफर है सरकार चलाने का, आंदोलन का। हालांकि साथ ही उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार की दिक्कत जरूर है कि उनकी संगठन बनाने की क्षमता नहीं है। राजनीति में हर व्यक्ति का अपना गुण दोष है।विचारणीय है कि नीतीश कुमार को लेकर कुछ समय पूर्व भी स्थानीय मीडिया में ऐसी खबरें आई थीं कि वह संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) के संयोजक बन सकते हैं और बिहार की सत्ता तेजस्वी यादव को सौंपकर राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हो सकते हैं। हालांकि, इस खबर पर अभी तक आधिकारिक मुहर नहीं लगी है, किन्तु पिछले दिनों को नीतीश कुमार ने अपने विपक्ष जोड़ो अभियान की शुरुआत दिल्ली में कांग्रेस की शीर्ष नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी, राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात से की। इसी कड़ी में दिल्ली में वह मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल से भी मिले।ऐसे में Sputnik ने सवाल पूछा कि कांग्रेस नीतीश को अपना नेता मानेंगे? इस पर अरविन्द मोहन ने बताया कि कांग्रेस नीतीश को स्वीकार कर सकती है। हालाँकि साथ ही उन्होंने कहा कि "कांग्रेस अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने में भी एक्सपर्ट् है इसलिए कांग्रेस कुछ भी कर सकती है।"
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विपक्षी दल का चेहरा, भाजपा को चुनौती, विपक्षी दलों की बैठक, नीतीश कुमार विपक्ष का चेहरा, विधान सभा चुनाव 2024, बिहार मुखमंत्री नीतीश कुमार, विपक्षी दलों की एकजुटता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विपक्षी दल का चेहरा, भाजपा को चुनौती, विपक्षी दलों की बैठक, नीतीश कुमार विपक्ष का चेहरा, विधान सभा चुनाव 2024, बिहार मुखमंत्री नीतीश कुमार, विपक्षी दलों की एकजुटता
क्या 2024 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार विपक्षी दल का चेहरा होंगे?
बिहार के सत्तारूढ़ जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के नेता नीतीश कुमार की विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिशें कितनी सफल हो पाएंगी, इस पर अभी तो लोगों के मन में संदेह ही है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 29 अप्रैल को संकेत दिया कि
2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा के खिलाफ योजना बनाने के लिए
10 मई को कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद विपक्षी दलों की बैठक पटना में हो सकती है।
"2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को चुनौती देने के लिए हम निश्चित रूप से बैठक करेंगे और विपक्षी एकता से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करेंगे," नीतीश ने कहा।
बता दें कि साल 2018 में तेलुगु देशम पार्टी (TDP) के प्रमुख और आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू भाजपा नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) से पृथक हुए थे और गैर भाजपा दलों के चहेता बन गए थे। साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पूर्व शायद ही कोई ऐसा राज्य था, जहां जाकर उन्होंने भाजपा विरोधी नेताओं से मुलाकात न की हो। परंतु वह अपने उद्देश्य में पूर्ण रूप से असफल रहे।
इसी भूमिका में इन दिनों भी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नजर आ रहे हैं। चंद्रबाबू नायडू की तरह नीतीश कुमार भी वर्षों तक NDA का हिस्सा रहे हैं और NDA के साथ मिलकर सत्ता का लाभ भी ले चुके हैं।
ऐसे में सवाल यह है कि क्या 2024 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी का मुकाबला करने के लिए नीतीश कुमार विपक्षी दल का चेहरा होंगे? इन सवालों का जवाब जानने के लिए Sputnik ने वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक अरविंद मोहन से बात की।
इस सवाल का जवाब उन्होंने दिया नहीं। ये
नीतीश कुमार को भी भ्रम नहीं होगा और बाकि लोगों को भी नहीं होना चाहिए क्योंकि चुनावी मुकाबला तो बहुत सीधी तो होनी ही नहीं है, यह बहुत जटिल प्रकार की होगी। विपक्षी दलों के चेहरा तय करने में बड़ी पार्टियों यानी कांग्रेस का फैसला अहम भूमिका निभाएगा।
"अब सीटें कितनी आती है, क्या आती हैं? सब कुछ इस पर निर्भर करेगा लेकिन ज्यादा संभावना यही है कि विपक्ष की ओर से कांग्रेस का चेहरा जो भी बनेगा या कांग्रेस से जो नाम तय होगा वह विपक्ष का सबसे मजबूत चेहरा होगा," अरविन्द मोहन ने Sputnik को बताया।
साथ ही उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार,
ममता बनर्जी, अखिलेश यादव या और कोई नाम जो चल रहा है ये सब तभी विचारणीय होंगे जब विपक्ष में सहमति नहीं बनेगी या सदन की स्थिति कुछ इस तरह की होगी कि कांग्रेस के लिए कुछ करना संभव नहीं होगा।
दरअसल नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ बिहार में नई सरकार बनाने के बाद, भाजपा को चुनौती देने के लिए समान विचारधारा वाले दलों के गठबंधन को एक साथ जोड़ने के कई प्रयास किए हैं।
इसी क्रमबद्धता में 24 अप्रैल को कोलकता में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात की। इस दौरान तीनों नेताओं ने 2024 लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी एकजुटता पर बात की। ममता बनर्जी से मिलने के बाद, नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने उसी दिन लखनऊ में समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव से मुलाकात की और विपक्षी दलों के गठबंधन के गठन पर चर्चा की थी।
Sputnik ने जब अरविन्द मोहन से पूछा कि नीतीश कुमार के पीएम उम्मीदवारी की दावेदारी में कितना दम हैं तो उन्होंने टिप्पणी की कि ये बात नीतीश कुमार भी ज्यादा अच्छी तरह समझते हैं। नीतीश अपने लिए रोल बड़ा तो जरूर चाहते हैं क्योंकि वे (नीतीश कुमार) मानते हैं कि बिहार में उनका काम अब ख़त्म हो गया। उनको लगता है बिहार में इससे ज्यादा अब कुछ नहीं किया जा सकता है। उनका राजनीतिक व्यवहार यही बता रहा है और केंद्र में जो भूमिका उनको पहले मिली थी वह छोटी थी इसकी तुलना में और वे बड़ा रोल चाहते हैं।
"लेकिन बड़ा रोल उनके चाहने भर से होगा नहीं। मैं ही नहीं यह कह रहा हूँ, नीतीश खुद को भी यह मालूम है कि सिर्फ उनके चाहने से कुच्छ नहीं होगा," अरविन्द मोहन ने बताया।
साथ ही उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार जो भूमिका अभी निभा रहे हैं, वह भी जरूरी है। वे सब जगह जाकर विपक्ष को एकजुट करने के लिए अलग-अलग नेताओं से मिल रहे हैं और इससे उनका प्रतिष्ठा बढ़ रही है।
"लेकिन अभी ऐसा कोई राजनीतिक परिदृश्य नहीं है कि नीतीश विपक्ष का चेहरा बन जाएंगे," अरविन्द मोहन ने Sputnik को बताया।
वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जब भाजपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी, तब विपक्ष पूरी तरह बिखर गया था। वर्ष 2019 में चंद्रबाबू नायडू ने
विपक्षी एकता को एकत्रित करने की भरपूर कोशिश की और कुछ राज्यों में गठबंधन हुए भी, उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी साथ आए, पर वे भी सफल नहीं हो पाए।
ऐसे में Sputnik ने सवाल पूछा कि क्या लोकसभा चुनाव के बाद भी विपक्ष एकजुट रह पाएगा। इस पर उन्होंने कहा कि विपक्ष को एकजुट रहने में कोई समस्या नहीं है।
क्या नीतीश कुमार की राजनीतिक अतिमहत्वाकांक्षा के शिकार हैं? इस सवाल के जवाब में अरविन्द मोहन ने Sputnik को बताया कि नहीं, नीतीश कुमार का लम्बा राजनीतिक सफर है सरकार चलाने का, आंदोलन का। हालांकि साथ ही उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार की दिक्कत जरूर है कि उनकी संगठन बनाने की क्षमता नहीं है। राजनीति में हर व्यक्ति का अपना गुण दोष है।
विचारणीय है कि नीतीश कुमार को लेकर कुछ समय पूर्व भी स्थानीय मीडिया में ऐसी खबरें आई थीं कि वह संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) के संयोजक बन सकते हैं और बिहार की सत्ता तेजस्वी यादव को सौंपकर राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हो सकते हैं। हालांकि, इस खबर पर अभी तक आधिकारिक मुहर नहीं लगी है, किन्तु पिछले दिनों को नीतीश कुमार ने अपने विपक्ष जोड़ो अभियान की शुरुआत दिल्ली में कांग्रेस की शीर्ष नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी, राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात से की। इसी कड़ी में दिल्ली में वह मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल से भी मिले।
ऐसे में Sputnik ने सवाल पूछा कि कांग्रेस नीतीश को अपना नेता मानेंगे? इस पर अरविन्द मोहन ने बताया कि कांग्रेस नीतीश को स्वीकार कर सकती है।
"बीच में यह संभावना थी की नीतीश की पार्टी का विलय हो जाए कांग्रेस में। और इसकी गुंजाइश अभी भी है क्योंकि नीतीश कुमार को अब साफ़ पता चल गया है कि संगठन बनाना उनके वश में नहीं है। इसलिए उनको लगता है कि बेहतर होगा अगर पार्टी काँग्रेस से जुड़ेगी," उन्होंने कहा।
हालाँकि साथ ही उन्होंने कहा कि "कांग्रेस अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने में भी एक्सपर्ट् है इसलिए कांग्रेस कुछ भी कर सकती है।"