यह सब न्यू मैक्सिको में अलामोगोर्डो परीक्षण स्थल पर विस्फोट से शुरू हुआ, जहाँ संयुक्त राज्य अमेरिका ने 16 जुलाई, 1945 को परमाणु बम परीक्षण किया था। मैनहट्टन परियोजना के हिस्से के रूप में परीक्षण को "ट्रिनिटी" कहा गया और यह परमाणु परीक्षण के इतिहास में सर्वप्रथम बन गया था। 6 अगस्त, 1945 को अमेरिकियों ने हिरोशिमा पर "लिटिल बॉय" नामक यूरेनियम बम गिराया था। तीन दिन बाद, 9 अगस्त को नागासाकी पर एक और "फैट मैन" नामक बम गिराया गया था।
इन दो बमों के विस्फोट से परिणामस्वरूप लगभग 220 हजार जापानी नागरिक मारे गए थे और 2 लाख से अधिक लोग विकिरण की घातक खुराक के कारण मारे गए थे।
1946 से 1949 तक संयुक्त राज्य अमेरिका ने छह और परमाणु परीक्षण किये।
29 अगस्त, 1949 को सोवियत संघ ने सेमिपालाटिंस्क परीक्षण स्थल पर अपने पहले परमाणु बम "जो-1" का परीक्षण किया, जिससे परमाणु हथियारों के रहस्य पर अमेरिकी एकाधिकार समाप्त हो गया।
अमेरिकी-सोवियत परमाणु हथियारों की होड़ के मात्रात्मक और गुणात्मक संकेतक ऐसे स्तर पर पहुँच गए हैं कि तनाव बढ़ने की स्थिति में दोनों देशों का पारस्परिक विनाश संभव हो गया। इसके अलावा परमाणु परीक्षणों के दौरान रेडियोधर्मी उत्सर्जन के परिणामों के बारे में वैज्ञानिकों के निष्कर्ष निराशाजनक साबित हुए: ग्रह की पूरी आबादी विकिरण संदूषण के खतरे में पड़ गई।
दोनों महाशक्तियों में से प्रत्येक ने शत्रु पर श्रेष्ठता प्राप्त करने का प्रयास किया। 1960 के दशक की शुरुआत तक हथियारों की दौड़ में दो प्रतिद्वंद्वियों के बीच एक निश्चित परमाणु समानता प्राप्त कर ली गई थी।
अक्टूबर 1962 में 13 दिनों तक क्यूबा में चलती हुई घटनाओं के कारण दुनिया परमाणु युद्ध के कगार पर थी। सोवियत संघ ने तुर्की में अमेरिकी मध्यम दूरी की मिसाइलों की तैनाती के प्रतिउत्तर स्वरूप में क्यूबा में अपनी परमाणु मिसाइलें तैनात कीं। अमेरिका और सोवियत संघ के बीच तनावपूर्ण टकराव का यह दौर क्यूबाई मिसाइल संकट के नाम से इतिहास में दर्ज हुआ।
सोवियत संघ परमाणु हथियारों की दौड़ को धीमा करने और सभी परमाणु परीक्षणों को समाप्त करने का प्रयास कर रहा था, सो इसकी पहल पर सोवियत संघ, अमेरिका और ब्रिटेन के बीच लंबी त्रिपक्षीय वार्ता शुरू हुई, जिसके पास उस समय भी परमाणु हथियार थे।
5 अगस्त, 1963 को सोवियत संघ के विदेश मंत्री आंद्रेई ग्रोमीको, अमेरिकी विदेश मंत्री डीन रस्क और ब्रिटिश विदेश सचिव एलेक डगलस-होम ने मास्को में वायुमंडल में, बाहरी अंतरिक्ष में और पानी के नीचे परमाणु परीक्षणों पर प्रतिबंध लगाने की संधि पर हस्ताक्षर किए, जिसे "मास्को संधि" के नाम से जाना जाता है। हस्ताक्षर समारोह में संयुक्त राष्ट्र महासचिव यू थांट ने भाग लिया, जिन्होंने हस्ताक्षरित संधि को "ऐतिहासिक निर्णय" कहा।
8 अगस्त, 1963 को संधि को अन्य देशों द्वारा हस्ताक्षर के लिए खोला गया। 10 अक्टूबर, 1963 को वह लागू हुआ। वर्तमान में संधि में 125 राज्य पक्षकार हैं।
प्रारंभ में सोवियत संघ, अमेरिका और ब्रिटेन की तीन परमाणु शक्तियों पर केंद्रित मास्को संधि जल्द ही हथियार नियंत्रण के क्षेत्र में सबसे सार्वभौमिक अंतरराष्ट्रीय समझौतों में से एक बन गई। भूमिगत परीक्षण के अपने कानूनी अधिकार को बरकरार रखते हुए परमाणु समूह के राज्यों के नेता अपने लोगों और अन्य देशों की जनता को यह आश्वासन देते नहीं थके कि वे उन पर व्यापक प्रतिबंध लगाने का प्रयास करेंगे।
10 सितंबर, 1996 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के 50वें सत्र में व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT) को अपनाया गया और 24 सितंबर को हस्ताक्षर के लिए खोला गया, जिस पर कई साल पहले जिनेवा में अंतर्राष्ट्रीय निरस्त्रीकरण सम्मेलन के प्रतिभागी काम करते थे।
नई संधि ने 1963 की मास्को संधि से शुरू की गई सीमित परमाणु परीक्षण प्रतिबंध व्यवस्था को पूर्ण शर्तों तक विस्तारित किया।
इस तथ्य के बावजूद कि CTBT कभी भी लागू नहीं हुआ, लगभग सभी परमाणु राज्यों ने (चाहे देश परमाणु अप्रसार संधि (1968) के तहत मान्यता प्राप्त हो या "अनौपचारिक" परमाणु शक्तियों के क्लब के सदस्य हो) परमाणु परीक्षणों पर स्वैच्छिक एक तरफा रोकें लगाई थीं।