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SCO ने संयुक्त राष्ट्र से बोझ हटा लिया है जो अप्रभावी और अत्यधिक राजनीतिक हो गया है: सेनापति
SCO ने संयुक्त राष्ट्र से बोझ हटा लिया है जो अप्रभावी और अत्यधिक राजनीतिक हो गया है: सेनापति
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नई दिल्ली में स्थित थिंक टैंक United Service Institution (USI) के निदेशक, सेवानिवृत्त महा सेनापति शशि भूषण अस्थाना ने भारत की SCO की अध्यक्षता के परिणामों के बारे में Sputnik के संवादताता को बताया।
2023-07-05T18:31+0530
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जैसे कि भारत अपनी SCO की अध्यक्षता समाप्त करनेवाला है, आपकी राय से समूह के भीतर इसकी उपलब्धियों का आकलन क्या है ?शशि भूषण अस्थाना: सबसे पहले, जहाँ तक भारत की बात है, इसने दोनों SCO देशों और पश्चिम के साथ संबंधों को बहुत अच्छी तरह से प्रबंधित किया है। शुरुआत से ही आशंकाएँ थीं कि भारत इस कठिन रास्ते पर कैसे चलेगा।लेकिन मुझे लगता है कि भारतीय कूटनीति ने दोनों समूहों को संभाला, अप्रतिम परिपक्वता से काम किया और मुद्दों को नहीं मिलाया।SCO का एक उद्देश्य है, सो केवल उन मुद्दों पर चर्चा की गई थी जो सारे सदस्यों के समान हित मेंं हैं। उदाहरण के लिए अफगानिस्तान और आतंकवाद वे दो मुद्दे हैं जो सभी SCO सदस्यों के लिए एक साझा कार्यावली हैं। इसलिए, इन मुद्दों पर चर्चा की गई। इस प्रकार SCO सदस्यों के लिए यूक्रेन एक आम मुद्दा नहीं है, इसलिए इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया था।संक्षेप में भारत ने SCO की अध्यक्षता संभालने में कूटनीतिक परिपक्वता दिखाई है।आज अधिक से अधिक देश SCO में सम्मिलित होने या कम से कम सहयोग करने के इच्छुक क्यों हैं? समूह में सम्मिलित होने से उन्हें मिलनेवाले प्रमुख लाभ क्या हैं?शशि भूषण अस्थाना: दुनिया बहुपक्षवाद की ओर बढ़ रही है। और हम देखते हैं कि अंतरराष्ट्रीय समूहों में से सबसे बड़ा यानी संयुक्त राष्ट्र अप्रभावी और पश्चिम द्वारा अत्यधिक राजनीतिक किया जा रहा है।इसलिए पूरी दुनिया में अन्य समूह स्थापित होते जाते हैं और संयुक्त राष्ट्र से बोझ हटाते हैं, और उस संदर्भ में वैश्विक आबादी के 40 प्रतिशत और विश्व के सकल घरेलू उत्पाद के 20 प्रतिशत संभालते हुए SCO एक महत्वपूर्ण मंच बन गया है।यह एक महत्वपूर्ण समूह है जहाँ P5 के दो सदस्य यानी चीन और रूस मौजूद हैं, भारत और एशिया के अन्य देश भी महत्वपूर्ण खिलाड़ी हैं। चाहे वह अटलांटिक चार्टर से निकला संयुक्त राष्ट्र या नाटो हो, अधिकांश समूह पश्चिमी-उन्मुख थे। SCO तो एक एशियाई-उन्मुख समूह है, और बहुपक्षवाद के युग में यह संतुलन प्रदान कर पाया है।SCO उन देशों को कई लाभ प्रदान करता है जो समूह में सम्मिलित होना चाहते हैं। सबसे पहले यह विभिन्न मध्य एशियाई देशों तक पहुँच प्रदान करता है जो प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध हैं। इसी तरह जब हम चीन की बात करते हैं तो यह एक आर्थिक महाशक्ति है, जहाँ प्रमुख व्यापारिक समूह अपने कारखाने तैनात करते हैं।इसके अलावा रूस एक महत्वपूर्ण रक्षा उपकरण निर्माता और आपूर्तिकर्ता है, भारत दवाइयों के क्षेत्र में अग्रणी है और यह दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। इसलिए जो राष्ट्र SCO सदस्य बनना चाहते हैं, वे इन देशों के साथ जुड़ने और उनसे सर्वोत्तम लाभ प्राप्त करने के इच्छुक हैं।दूसरा मुख्य कारण यह है कि आप किसी संगठन को तब तक प्रभावित नहीं कर सकते जब तक आप उस संगठन का हिस्सा न हों। इस प्रकार यदि आप चाहते हैं कि SCO के देश आपके अनुकूल हों, तो बेहतर होगा कि आप उनके साथ जुड़ें।तीसरी बजह यह है कि पश्चिमी प्रभुत्व की स्थिति में ऐसा लगता है कि एक वैकल्पिक संगठन होना चाहिए, जहाँ व्यापार किया जा सकें। SCO के कुछ सदस्यों ने स्थानीय मुद्राओं में व्यापार की भी बात की है।यह एक और अहम कारक है, क्योंकि वर्तमान दुनिया में प्रतिद्वंद्वियों के बीच आर्थिक युद्ध भी हो रहे हैं। उन आर्थिक युद्धों के नज़रिये से कम असुरक्षित होने के लिए पश्चिम का दृष्टिकोण यह है कि आपको विभिन्न आर्थिक समूहों में भी सम्मिलित होना चाहिए।क्या आप सोचते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद का कारण बने आतंकवाद के मुद्दे पर SCO सदस्य आम सहमति पर पहुँच सकते हैं?शशि भूषण अस्थाना: जहाँ तक SCO सदस्य परवाह करते हैं, तो आतंकवाद पर आम सहमति हमेशा रही है, लेकिन ज़मीन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। बात यह है कि SCO में क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (RATS) नामक एक संरचना है, इसलिए समूह में हर कोई आतंक को एक बड़ा खतरा मानता है।लेकिन जब आतंकवाद को प्रायोजित करने वाले देशों को सजा देने की बात आती है तो कुछ राजनीतिक कारणों से राय बंट जाती है। उदाहरण के लिए चीन की पाकिस्तान के साथ सिमा वह पहलू है, जिसके परिणामस्वरूप प्रतिक्रिया "कमजोर" हो रही है। आम तौर पर आतंकवाद को ख़तरा मानकर वे एकमत हैं। यदि वे न होते, तो RATS जैसी संस्था न होती। साथ ही यह SCO देशों के लिए एक आम समस्या है क्योंकि कोई भी मध्य एशियाई देश पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक आंदोलन (ETIM) के खतरे से अछूता नहीं है, इसी तरह पाकिस्तान पर भी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP)* का खतरा मंडराता है।लगभग हर SCO सदस्य राष्ट्र आतंकवाद के खतरे का सामना कर रहा है। मध्य यूरोपीय क्षेत्र (CER) और पूर्वी यूरोपीय देशों पर भी अफगानिस्तान के कट्टरपंथी समूहों का खतरा मंडराता है।क्या SCO सदस्य देश सामान्य लक्ष्यों को प्राप्त करते और चुनौतियों का सामना करते समय मतभेदों को दूर कर पाए?शशि भूषण अस्थाना: किसी हद तक SCO देश अपने द्विपक्षीय मतभेदों को दूर करने में सक्षम हुए हैं। इसका सबूत यह है कि दिल्ली द्वारा आयोजित शिखर सम्मेलन में न सिर्फ बीजिंग बल्कि इस्लामाबाद ने भी भाग लिया था, यद्यपि यह एक आभासी शिखर सम्मेलन था, फिर भी इसमें सभी ने भाग लिया था।इसके अतिरिक्त जो एजेंडे SCO के लिए प्रासंगिक नहीं थे, उनपर ध्यान नहीं दिया गया था, जिससे पता चलता है कि SCO कई तरीकों से अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है। उस संदर्भ में भारत ने SCO को बहुत अच्छे से प्रबंधित किया है।*संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित
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SCO ने संयुक्त राष्ट्र से बोझ हटा लिया है जो अप्रभावी और अत्यधिक राजनीतिक हो गया है: सेनापति
चूँकि भारत SCO में अपनी अध्यक्षता के अंत तक चल रहा है, इसके नेतृत्व में संगठन के काम के परिणामों की प्रतीक्षा की जा सकती है। नई दिल्ली में स्थित थिंक टैंक United Service Institution (USI) के निदेशक, सेवानिवृत्त महा सेनापति शशि भूषण अस्थाना ने भारत की SCO की अध्यक्षता के परिणामों के बारे में Sputnik के संवादताता को बताया।
जैसे कि भारत अपनी SCO की अध्यक्षता समाप्त करनेवाला है, आपकी राय से समूह के भीतर इसकी उपलब्धियों का आकलन क्या है ?
शशि भूषण अस्थाना: सबसे पहले, जहाँ तक
भारत की बात है, इसने दोनों SCO देशों और पश्चिम के साथ संबंधों को बहुत अच्छी तरह से प्रबंधित किया है। शुरुआत से ही आशंकाएँ थीं कि भारत इस कठिन रास्ते पर कैसे चलेगा।
लेकिन मुझे लगता है कि भारतीय कूटनीति ने दोनों समूहों को संभाला, अप्रतिम परिपक्वता से काम किया और मुद्दों को नहीं मिलाया।
SCO का एक उद्देश्य है, सो केवल उन मुद्दों पर चर्चा की गई थी जो सारे सदस्यों के समान हित मेंं हैं। उदाहरण के लिए अफगानिस्तान और आतंकवाद वे दो मुद्दे हैं जो सभी SCO सदस्यों के लिए एक साझा कार्यावली हैं। इसलिए, इन मुद्दों पर चर्चा की गई। इस प्रकार SCO सदस्यों के लिए यूक्रेन एक आम मुद्दा नहीं है, इसलिए इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया था।
संक्षेप में भारत ने SCO की अध्यक्षता संभालने में कूटनीतिक परिपक्वता दिखाई है।
आज अधिक से अधिक देश SCO में सम्मिलित होने या कम से कम सहयोग करने के इच्छुक क्यों हैं? समूह में सम्मिलित होने से उन्हें मिलनेवाले प्रमुख लाभ क्या हैं?
शशि भूषण अस्थाना: दुनिया बहुपक्षवाद की ओर बढ़ रही है। और हम देखते हैं कि अंतरराष्ट्रीय समूहों में से सबसे बड़ा यानी संयुक्त राष्ट्र अप्रभावी और पश्चिम द्वारा अत्यधिक राजनीतिक किया जा रहा है।
इसलिए पूरी दुनिया में अन्य समूह स्थापित होते जाते हैं और संयुक्त राष्ट्र से बोझ हटाते हैं, और उस संदर्भ में वैश्विक आबादी के 40 प्रतिशत और विश्व के सकल घरेलू उत्पाद के 20 प्रतिशत संभालते हुए SCO एक महत्वपूर्ण मंच बन गया है।
यह एक महत्वपूर्ण समूह है जहाँ P5 के दो सदस्य यानी चीन और रूस मौजूद हैं, भारत और एशिया के अन्य देश भी महत्वपूर्ण खिलाड़ी हैं। चाहे वह अटलांटिक चार्टर से निकला संयुक्त राष्ट्र या नाटो हो, अधिकांश समूह पश्चिमी-उन्मुख थे। SCO तो एक एशियाई-उन्मुख समूह है, और बहुपक्षवाद के युग में यह संतुलन प्रदान कर पाया है।
SCO उन देशों को कई लाभ प्रदान करता है जो समूह में सम्मिलित होना चाहते हैं। सबसे पहले यह विभिन्न मध्य एशियाई देशों तक पहुँच प्रदान करता है जो प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध हैं। इसी तरह जब हम चीन की बात करते हैं तो यह एक आर्थिक महाशक्ति है, जहाँ प्रमुख व्यापारिक समूह अपने कारखाने तैनात करते हैं।
इसके अलावा रूस एक महत्वपूर्ण रक्षा उपकरण निर्माता और आपूर्तिकर्ता है, भारत दवाइयों के क्षेत्र में अग्रणी है और यह दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। इसलिए जो राष्ट्र SCO सदस्य बनना चाहते हैं, वे इन देशों के साथ जुड़ने और उनसे सर्वोत्तम लाभ प्राप्त करने के इच्छुक हैं।
दूसरा मुख्य कारण यह है कि आप किसी संगठन को तब तक प्रभावित नहीं कर सकते जब तक आप उस संगठन का हिस्सा न हों। इस प्रकार यदि आप चाहते हैं कि SCO के देश आपके अनुकूल हों, तो बेहतर होगा कि आप उनके साथ जुड़ें।
तीसरी बजह यह है कि पश्चिमी प्रभुत्व की स्थिति में ऐसा लगता है कि एक वैकल्पिक संगठन होना चाहिए, जहाँ व्यापार किया जा सकें। SCO के कुछ सदस्यों ने स्थानीय मुद्राओं में व्यापार की भी बात की है।
यह एक और अहम कारक है, क्योंकि वर्तमान दुनिया में प्रतिद्वंद्वियों के बीच आर्थिक युद्ध भी हो रहे हैं। उन आर्थिक युद्धों के नज़रिये से कम असुरक्षित होने के लिए पश्चिम का दृष्टिकोण यह है कि आपको विभिन्न आर्थिक समूहों में भी सम्मिलित होना चाहिए।
क्या आप सोचते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद का कारण बने आतंकवाद के मुद्दे पर SCO सदस्य आम सहमति पर पहुँच सकते हैं?
शशि भूषण अस्थाना: जहाँ तक SCO सदस्य परवाह करते हैं, तो आतंकवाद पर आम सहमति हमेशा रही है, लेकिन ज़मीन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। बात यह है कि SCO में क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (RATS) नामक एक संरचना है, इसलिए समूह में हर कोई आतंक को एक बड़ा खतरा मानता है।
लेकिन जब आतंकवाद को प्रायोजित करने वाले देशों को सजा देने की बात आती है तो कुछ राजनीतिक कारणों से राय बंट जाती है। उदाहरण के लिए चीन की पाकिस्तान के साथ सिमा वह पहलू है, जिसके परिणामस्वरूप प्रतिक्रिया "कमजोर" हो रही है। आम तौर पर आतंकवाद को ख़तरा मानकर वे एकमत हैं। यदि वे न होते, तो RATS जैसी संस्था न होती। साथ ही यह SCO देशों के लिए एक आम समस्या है क्योंकि कोई भी मध्य एशियाई देश पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक आंदोलन (ETIM) के खतरे से अछूता नहीं है, इसी तरह पाकिस्तान पर भी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP)* का खतरा मंडराता है।
लगभग हर SCO सदस्य राष्ट्र आतंकवाद के खतरे का सामना कर रहा है। मध्य यूरोपीय क्षेत्र (CER) और पूर्वी यूरोपीय देशों पर भी अफगानिस्तान के कट्टरपंथी समूहों का खतरा मंडराता है।
क्या SCO सदस्य देश सामान्य लक्ष्यों को प्राप्त करते और चुनौतियों का सामना करते समय मतभेदों को दूर कर पाए?
शशि भूषण अस्थाना: किसी हद तक SCO देश अपने द्विपक्षीय मतभेदों को दूर करने में सक्षम हुए हैं। इसका सबूत यह है कि दिल्ली द्वारा आयोजित शिखर सम्मेलन में न सिर्फ बीजिंग बल्कि
इस्लामाबाद ने भी भाग लिया था, यद्यपि यह एक आभासी शिखर सम्मेलन था, फिर भी इसमें सभी ने भाग लिया था।
इसके अतिरिक्त जो एजेंडे SCO के लिए प्रासंगिक नहीं थे, उनपर ध्यान नहीं दिया गया था, जिससे पता चलता है कि SCO कई तरीकों से अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है। उस संदर्भ में भारत ने SCO को बहुत अच्छे से प्रबंधित किया है।
*संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित