ब्रिक्स देशों के अंतरिक्ष संघ का लाभ
"स्पेस साइंस एक मेगा विज्ञान है, इनके बजट बहुत होते हैं और इसमें तकनीक की जरूरत होती है। विकसित देश धीरे-धीरे आगे बढ़ जाते हैं लेकिन सभी देश यह नहीं कर पाते, इसीलिए देखिये अभी तक मात्र चार ही देश हैं जिन्होंने चंद्रमान पर सॉफ्ट लैन्डिंग की, जिसमें ब्रिक्स के तीन देश हैं और चौथा देश सिर्फ वही ब्रिक्स का हिस्सा नहीं है," प्रोफेसर डॉ.मोहम्मद नईमुद्दीन ने बताया।
अंतरिक्ष संघ पर ब्रिक्स देशों के संबंधों का असर
"आप देखें अगर रशियन स्पेस एजेंसी हमें सपोर्ट कर रही है, तो नासा को नहीं करना चाहिए था लेकिन नासा ने भी आगे आकार भारत के साथ सहयोग किया, देखिये एक तरफ रूस का यूक्रेन में विशेष सैन्य अभियान चल रहा है लेकिन सर्न के प्रयोगों में रूस और यूक्रेन दोनों सहयोग कर रहे हैं और मिलकर काम कर रहे हैं। इसलिए यह सब जियोपॉलिटिकल मुद्दे हैं और विज्ञान इस मुद्दों से आगे काम करता है। क्योंकि यह पूरी मानव जाति के लिए है," प्रोफेसर डॉ. नईमुद्दीन ने बताया।
"आप देखेंगे भारत और चीन को, दोनों के बीच कुछ मुद्दे रहे हैं, लेकिन वेज्ञानिक स्तर पर हम सहयोग कर रहे हैं और विज्ञान के लिए चीन आगे बढ़कर सामने आ सकता है, और चीन एक और बड़ा प्रयोग करने की बात कर रहा है जो सर्न की तर्ज पर उससे कहीं अधिक बड़ा होगा और उसमें वह हर प्रकार के सहयोग के लिए [दूसरे देशों को] आमंत्रित कर रहे हैं, उसमें भारत को भी बुलाया गया है," डॉ नईमुद्दीन ने आगे बताया।
ब्रिक्स अंतरिक्ष संघ से वैज्ञानिक प्रयोगों में तेजी
"देखिये वैज्ञानिक सहयोग का लाभ यही होता है की आप एक साथ कई संसाधनों और वैज्ञानिकों को एक मंच पर ला पाते हैं, और जब सभी लोग एक साथ काम करते हैं तो किसी भी प्रयोग का विकास तेज़ हो जाता है। और उसका लाभ सहयोग कर रहे सभी लोगों को होता है," प्रोफेसर डॉ मोहम्मद नईमुद्दीन ने कहा।
ब्रिक्स अंतरिक्ष अनुसंधान संघ से मौसम निगरानी में सहायता
"भारत WMO का संस्थापक सदस्य है और ब्रिक्स देश भी WMO के सदस्य हैं तदनुसार, सभी डेटा एक मानक प्रक्रिया में ब्रिक्स देशों के बीच साझा किया जाता है और अगर हम भारत पर ध्यान दें तो यह मौसम विज्ञान के विषयों में एक विकसित देश है। भारत की अपनी अवलोकन, निगरानी और पूर्वानुमान प्रणाली है। इस लिहाज से भारत जलवायु सेवाओं पर आत्मनिर्भर है। इतना ही नहीं, भारत कई देशों का भी समर्थन करता है," मौसम विज्ञान महानिदेशक डॉ. मृत्युंजय मोहपात्रा ने बताया।