विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

शुक्र ग्रह पर ऐसा बहुत कुछ है जिसके बारे में अभी जानना बाकी है: वैज्ञानिक

शुक्र सोलर सिस्टम में सूर्य से दूसरा ग्रह है और पृथ्वी के निकट है और पृथ्वी के आकार और घनत्व में समान होने के कारण इसे पृथ्वी का जुड़वां कहा जाता है, हाल के वीनस मिशनों में ESA का वीनस एक्सप्रेस और जापान का अकात्सुकी वीनस क्लाइमेट ऑर्बिटर मिशन शामिल हैं।
Sputnik
भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो अंतरिक्ष में नए नए कीर्तिमान स्थापित करती जा रही है। मंगलयान, चंद्रयान, आदित्य L-1 और कतार में लगे है दो बड़े मिशन एक गगनयान और दूसरा शुक्रयान
गगनयान एक ऐसा मिशन है जिसमें भारत मानव को अंतरिक्ष में भेजेगा और शुक्रयान के जरिए शुक्र ग्रह के वातावरण के बारे में जानकारी इकट्ठा की जाएगी। हाल ही में इसरो के चेयरमैन डॉ.एस सोमनाथ ने दिल्ली में बात करते हुए कहा कि सौर मंडल के सबसे चमकीले ग्रह शुक्र को मिशन के लिए पहले से ही कॉन्फ़िगर किया गया है और इस मिशन के लिए पेलोड विकसित किए गए हैं।
इसरो प्रमुख एस सोमनाथ राजधानी दिल्ली में भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी को संबोधित कर रहे थे।
''संकल्पनात्मक चरण में हमारे पास बहुत सारे मिशन हैं। शुक्र के लिए एक मिशन पहले से ही कॉन्फ़िगर किया गया है। इसके लिए पेलोड पहले ही विकसित हो चुके हैं।” इसरो अध्यक्ष ने आगे कहा कि शुक्र एक दिलचस्प ग्रह है और इसकी खोज से अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में कुछ सवालों के जवाब देने में मदद मिलेगी। कोई आधिकारिक अपडेट नहीं है, लेकिन 'शुक्रयान' की लॉन्च तिथि दिसंबर 2024 में होने की उम्मीद है," इसरो प्रमुख सोमनाथ ने कहा।
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Sputnik ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के चेयरमैन एस सोमनाथ के इस बयान को ज्यादा समझने के लिए भारत सरकार में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के विज्ञान प्रसार में वैज्ञानिक डॉ टी वी वेंकटेश्वरन से बात की, जिन्होंने बताया कि इसरो शुक्र ग्रह की ओर अपना मिशन लॉन्च करने के लिए लगभग तैयार है और इसे वीनस ऑर्बिटर मिशन कहा जाता है जो मार्स ऑर्बिटर मिशन से समानता रखता है।

"शुक्रयान के बारे में बहुत पहले 2012 में हम सोचते थे। डॉ. सोमनाथ की घोषणा से साफ पता चलता है कि बहुत जल्द हम शुक्र ग्रह की यात्रा करेंगे। शुक्र ग्रह के बारे में बहुत सारे रहस्य हैं। और अगर देखा जाए तो शुक्र और पृथ्वी का आकार कुछ-कुछ समान है लेकिन यह बहुत ही रहस्यमयी ग्रह है, यहां तक कि पावर टेलीस्कोप के साथ भी आप मूल रूप से जमीन को नहीं देख पाएंगे क्योंकि यह हमेशा स्थायी रूप से ढका रहता है," वैज्ञानिक डॉ टी वी वेंकटेश्वरन ने बताया।

वास्तव में, ऐसी बहुत सी बातें हैं जो हम शुक्र से जान सकते हैं जो शायद हमारे जलवायु परिवर्तन को बेहतर ढंग से समझने में हमारी सहायता कर सकती हैं। शुक्र ग्रह के बारे में जानने के लिए बहुत कुछ ऐसी बातें हैं जिनके बारे में अभी तक कोई जानकारी नहीं है, इसकी गति, इसका तापमान और ऐसे कई कारक हैं जो इस ग्रह को अपने आप में विचित्र बनाते हैं।
डॉ वेंकटेश्वरन कहते हैं कि इस ग्रह के हालात से यह पता लगाने में आसानी होगी की वहाँ का वातावरण कैसे रहने लायक नहीं बचा।

"इसके वायुमंडल में भारी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसें हैं, और इसके कारण यह बहुत, बहुत गर्म ग्रह बन गया है, ऐसे कई प्रश्न हैं जो हम शुक्र के बारे में पूछ सकते हैं, जो हमारे लिए बहुत दिलचस्प होंगे, खासकर पृथ्वी पर ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के समय में। शुक्र का पानी कहां चला गया है? शुक्र की सतह की संरचना क्या है? इसके बारे में हमें बहुत कुछ ज्ञात नहीं है क्योंकि हम 60 किलोमीटर से नीचे नहीं देख सकते क्योंकि शुक्र की सतह से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर वह पूरी तरह से ढका हुआ है," वैज्ञानिक डॉ टी वी वेंकटेश्वरन ने बताया Sputnik को।

टी वी वेंकटेश्वरन कहते हैं कि शुक्र ग्रह में ऐसी कौन सी चीज़ है जो बादलों में मौजूद UV किरणों को अवशोषित कर रही है। आप देखिए, सूरज भारी मात्रा में UV किरणें उत्सर्जित करता है, लेकिन हम पृथ्वी से इसे परावर्तित होते हुए नहीं देख पाते हैं। तो इसका मतलब है कि कुछ न कुछ इसे अवशोषित करेगा, ये शुक्र के बारे में कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न हैं, जो हमें ग्रह के बारे में बेहतर समझ देंगे, बल्कि हमारी अपनी प्रकृति को समझने के लिए दर्पण की तरह भी काम करेंगे। तो इसीलिए शुक्र का अध्ययन करना एक बहुत ही दिलचस्प क्षेत्र है।
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शुक्र ग्रह के लिए इस परियोजना का विचार 2012 में गर्मियों में रखा गया था और फिर लगभग 2017 से वैज्ञानिकों ने इस पर काम करना शुरू कर दिया है, इसरो ने यह देखने के लिए प्रस्ताव मांगे कि हम शुक्र के बारे में किस तरह की जानकारी जुटाएंगे और हमें किस तरह के उपकरण की आवश्यकता होगी जिन्हें शुक्र पर ले जाया जाएगा और फिर लोग उन वैज्ञानिक उपकरणों को विकसित करने पर काम कर रहे हैं जिन्हें आमतौर पर पेलोड कहा जाता है और यही वर्तमान स्थिति है।

"इसरो और अन्य अनुसंधान संस्थान एक साथ आकर चर्चा करेंगे कि अंतरिक्ष यान कौन सा होगा। यह विचार मंगल ऑर्बिटर मिशन की तरह है, अंतरिक्ष यान शुक्र के चारों ओर परिक्रमा करेगा। जब यह बहुत करीब होगा तो इसकी दूरी ग्रह से लगभग 500 किलोमीटर है और जब यह बहुत दूर होगा तो यह लगभग 60,000 किलोमीटर दूर होगा। अनुसंधान के दृष्टिकोण से सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि, जब आप इसके पास होंगे, तो आप एक करीबी तस्वीर प्राप्त कर सकते हैं, जब आप लगभग 60,000 किलोमीटर दूर होते हैं, तो आप पूरे ग्रह की छवि प्राप्त कर सकते हैं जिससे आप स्थानीय क्षेत्र में हो रहे बदलावों को देख पाएंगे," डॉ टी वी वेंकटेश्वरन ने कहा।

जब शुक्रयान शुक्र से काफी दूरी पर होगा तब आप यह भी देख पाएंगे कि ग्रह पर वैश्विक स्तर पर क्या बदलाव हो रहे हैं। हम ठीक उसी तकनीक से अध्ययन कर पाएंगे जिस तकनीक का उपयोग करके हमने मंगल ग्रह पर अध्ययन किया था। डॉ वेंकटेश्वरन आखिर में कहते हैं कि वास्तव में उस तरह की तकनीक का उपयोग कोई और नहीं करता है और यह मंगल के बारे में गहराई से समझने में बहुत उपयोगी रही है तो उसी तरह हम शुक्र पर भी वायुमंडलीय गतिशीलता को समझने में सक्षम होंगे।
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