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पिछले कुछ वर्षों से फ़िलिस्तीनी-इजरायली संघर्ष पर भारत का रुख कैसा रहा है?

इजरायल-हमास के बीच सबसे खूनी तनावों में से एक में हमास ने शनिवार (7 अक्टूबर) को इजरायल के खिलाफ जमीनी, हवाई और समुद्री सैन्य अभियान शुरू किया था।
Sputnik
सप्ताहांत में फिलिस्तीनी सैन्य आंदोलन हमास के हमले के बाद इजरायल ने युद्ध की स्थिति का उद्घोष किया है, जिसमें दोनों पक्षों के सैकड़ों लोग मारे गए, इंटरनेट पर संघर्ष के संबंधित सर्च कई गुना बढ़ गई है।
बहुत लोग फिलिस्तीनी-इजरायल संघर्ष पर भारत के रुख के बारे में पढ़ने में दिलचस्पी लेते हैं, विशेषतः यह देखते हुए कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने इजरायल पर हमास के हमले की खबर आने के बाद यहूदी राज्य के साथ एकजुटता व्यक्त की है।
इस बीच, Sputnik India ने यह मालूम किया है कि फ़िलिस्तीन-इजरायल संघर्ष पर भारत का रुख कैसे विकसित हुआ है।
1947 में ब्रिटिशों से अपनी आजादी के बाद पहले वर्षों में भारत ने फिलिस्तीन स्वतंत्र राज्य की स्थापना का पूरा समर्थन किया था। भारत प्रमुख गैर-मुस्लिम देशों में से एक था, जिन्होंने फिलिस्तीन का समर्थन किया था।

यासर अराफ़ात और फ़िलिस्तीन को भारत का समर्थन

1974 में भारत ने औपचारिक रूप से यासिर अराफात के नेतृत्व वाले फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (PLO) को मान्यता दी थी, जिसने स्वतंत्र फ़िलिस्तीन के निर्माण के लिए शांतिपूर्ण अभियान चलाया। इसके बाद नई दिल्ली और फ़िलिस्तीन के बीच संबंध मजबूत हो गए।
अगले वर्ष PLO ने भारतीय राजधानी में एक कार्यालय खोला। पांच साल बाद यह कार्यालय उच्चायोग में परिवर्तित हो गया।
इसके बाद नई दिल्ली ने 1988 में फिलिस्तीन राज्य को औपचारिक मान्यता दी। 1966 में भारत ने गाजा में एक राजनयिक कार्यालय खोला था जो वर्षों बाद रामल्लाह में स्थानांतरित हो गया।
लेकिन 2004 में अराफात की मृत्यु के बाद भारत सहित अन्य देशों में फिलिस्तीन का समर्थन कम होने लगा। इसके बावजूद नई दिल्ली ने 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के एक प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया जिसने फिलिस्तीन को वैश्विक निकाय में "गैर-सदस्य पर्यवेक्षक राज्य" बनने में मदद की।
Palestinian leader Yasser Arafat (L) greets Indian Prime Minister Atal Behari Vajpayee, 23 August 2001 ahead of a meeting at the Premier's residence in New Delhi.

मोदी के नेतृत्व में भारत ने इज़रायल से संबंधों को मजबूत किया

लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के साथ नई दिल्ली ने अपने ऊपर इज़रायल के साथ अपने संबंधों को बढ़ाने के लिए एक मिशन लिया, जिसमें भारतीय नेता ने तेल अवीव के साथ देश के रक्षा संबंधों को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया।
इज़रायल, जो अपने परिष्कृत हथियारों के लिए जाना जाता है, भारत को हथियारों के संभावित निर्यातकों में से एक था, विशेषतः ऐसे समय में जब मोदी उन देशों के साथ सहयोग करना चाहते थे जो भारत को प्रौद्योगिकी देने और इसमें सैन्य उपकरणों का उत्पादन करने के लिए तैयार थे।
दरअसल 2017 में मोदी भारत के पहले प्रधान मंत्री बने, जिन्होंने इज़रायल का दौरा किया
Israeli Prime Minister Benjamin Netanyahu (R) uses a spinning wheel as his wife Sara Netanyahu (C) and Indian Prime Minister Narendra Modi look on during a visit to Gandhi Ashram in Ahmedabad on January 17, 2018.
इजरायल-फिलिस्तीन मुद्दे पर भारत के रुख को लेकर एक नया चरण 2019 में दिखाई दिया, जब भारत ने उस प्रस्ताव पर मतदान से परहेज किया, जिसमें गाजा में यहूदी बस्तियां स्थापित करने के अपने कार्यक्रम के दौरान इजरायल द्वारा किए गए मानवाधिकार उल्लंघनों की जांच की मांग की गई।
पिछले चार वर्षों से भारत इज़रायल से संबंधों को मजबूत कर रहा है, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने खुले तौर पर इजरायल के सशस्त्र बलों और रक्षा क्षेत्र की प्रशंसा की है।
इज़राइल-हमास युद्ध
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