"जब भी मानव अधिकार के प्रश्न ऐतिहासिक और पारंपरिक स्तर पर होंगे और भारत की जो एक वृहत समझ है उसमें भारत कभी भी राष्ट्रीय हित से समझौता नहीं करेगी, इस आधार पर कि स्वयं का हित कहीं से क्षतिपूर्ति कर रहा है। एक व्यवहारवाद दृष्टिकोण है कि इज़राइल से संबंध चाहे डिफेंस हो, कृषि हो या अन्य कोई कारण हो और दूसरी तरफ फिलिस्तीनी मुद्दों को लेकर जो एक समर्थन है, मुख्यतः जो अंतर्राष्ट्रीय कानून के माध्यम से स्पष्ट है उसमें भारत इस बात को लेकर प्रतिबद्ध है कि मानव अधिकार के प्रश्न को लेकर जितने भी प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र में आएंगे उसमें भारत पीछे नहीं हटेगा," डॉ प्रेम आनंद मिश्रा ने Sputnik India को बताया।
"भारत का यह बहुत साफ़ विचार है कि व्यवहारवाद जहाँ पर भी होगा समर्थन लेने या देने का तो इज़राइल को आगे भी समर्थन करेंगे लेकिन भारत की फिलिस्तीन को लेकर अंतर्राष्ट्रीय कानून के अंतर्गत दो राज्य सिद्धांत और मानव अधिकार के प्रति जो प्रतिबद्धता है, वह उससे पूरी तरह इनकार नहीं करेंगे," डॉ मिश्रा ने कहा।
"अंतर्राष्ट्रीय संबंध और व्यवस्था में अनिश्चितता जितनी भी अधिक रहती है, मुख्यतः संघर्ष एक अनिश्चित स्थिति है। उसमें लंबी अवधि के दौरान विदेश नीति कभी-कभी परिस्थितिजन्य हो जाती है। लेकिन प्रतिक्रिया दो तरह की होती है एक तो मुद्दे आधारित और दूसरा समग्र नीति के आधार पर। चूँकि यहाँ स्थिति अनिश्चित है तो भारत यह देखेगी कि समग्र अपेक्षा चाहे वह ग्लोबल साउथ के लीडरशिप के लिहाज से हो या संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय कानून मानने का मामला हो तो भारत नियम आधारित व्यवस्था को नजरअंदाज नहीं करना चाहेगा," डॉ मिश्रा ने बताया।
"इज़राइल भारत को कई स्तर पर समर्थन करती है क्योंकि भारत की सुरक्षा के सन्दर्भ में चीन, पाकिस्तान और अन्य अनपेक्षित चुनौतियां हैं। इज़राइल से भारत को तकनीक और रक्षा तकनीक मिलती है लेकिन भारत सरकार डिहायफ़नेशन की नीति अपनाती है जिसके अंतर्गत इज़राइल के साथ संबंध अलग होगी और फिलिस्तीन के साथ संबंध अलग होगी, यानी कि दोनों को अलग-अलग देखा जाए," डॉ मिश्रा ने टिप्पणी की।