Обломки зданий, пострадавших в результате ракетных ударов ВС Израиля по Газе - Sputnik भारत, 1920
इज़राइल-हमास युद्ध

संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन के पक्ष में भारत के वोट के क्या हैं मायने? विशेषज्ञ से जानिए

© AP Photo / Adel HanaPalestinians search for the bodies of the al Meghari family killed in the Israeli bombardment of the Gaza Strip in Bureij refugee camp, Gaza Strip, Tuesday, Nov. 14, 2023.
Palestinians search for the bodies of the al Meghari family killed in the Israeli bombardment of the Gaza Strip in Bureij refugee camp, Gaza Strip, Tuesday, Nov. 14, 2023.  - Sputnik भारत, 1920, 17.11.2023
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भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में पिछले सप्ताह एक प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया जो कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्र में इज़राइली निपटान गतिविधियों की निंदा करता है।
भारत उन 145 देशों में शामिल था, जिन्होंने बांग्लादेश, भूटान, चीन, फ्रांस, जापान, मलेशिया, मालदीव, रूस, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका और ब्रिटेन के साथ प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया।
"पूर्वी येरुशलम और कब्जे वाले सीरियाई गोलान सहित कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्र में इज़राइली बस्तियां" शीर्षक वाला संयुक्त राष्ट्र मसौदा प्रस्ताव भारी बहुमत से पारित किया गया था।
संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा सहित मात्र सात देशों ने प्रस्ताव के विरुद्ध मतदान किया। प्रस्ताव के विरुद्ध मतदान करने वाले अन्य पांच देश हंगरी, इज़राइल, मार्शल द्वीप, माइक्रोनेशिया और नाउरू थे, वहीं 18 देशों ने मतदान में भाग नहीं लिया।
हालांकि, पिछले महीने, भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक मसौदा प्रस्ताव पर मतदान से परहेज किया था, जिसमें इज़राइल-हमास संघर्ष में तत्काल मानवीय युद्धविराम का आह्वान किया गया था।
इज़राइल-हमास युद्ध पर पश्चिमी प्रवचन मानवीय युद्धविराम से लेकर मानवीय विराम तक सिमटा हुआ है, जो नागरिकों को आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए निर्दिष्ट घंटों के दौरान लड़ाई को रोकने के लिए एक युद्धकालीन अभ्यास है।
क्या हालिया वोट भारत के लिए एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक बदलाव का प्रतीक है, जो इज़राइल-फिलिस्तीनी संघर्ष और निपटान मुद्दों पर वैश्विक भावनाओं के साथ अपनी स्थिति को संरेखित करता है।
ऐसे में अब इज़राइल के खिलाफ जाकर फिलीस्तीन के पक्ष में वोट करने के निहितार्थ जानने के लिए Sputnik India ने दिल्ली के प्रतिष्ठित जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के नेल्सन मंडेला सेंटर फ़ॉर पीस एंड कॉनफ़्लिक्ट रेज़ोल्यूशन में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉ प्रेम आनंद मिश्रा से बात की। उनके अनुसार, भारत का ये कदम अंतर्राष्ट्रीय न्याय में नई दिल्ली के विश्वास को दिखाता है।

"जब भी मानव अधिकार के प्रश्न ऐतिहासिक और पारंपरिक स्तर पर होंगे और भारत की जो एक वृहत समझ है उसमें भारत कभी भी राष्ट्रीय हित से समझौता नहीं करेगी, इस आधार पर कि स्वयं का हित कहीं से क्षतिपूर्ति कर रहा है। एक व्यवहारवाद दृष्टिकोण है कि इज़राइल से संबंध चाहे डिफेंस हो, कृषि हो या अन्य कोई कारण हो और दूसरी तरफ फिलिस्तीनी मुद्दों को लेकर जो एक समर्थन है, मुख्यतः जो अंतर्राष्ट्रीय कानून के माध्यम से स्पष्ट है उसमें भारत इस बात को लेकर प्रतिबद्ध है कि मानव अधिकार के प्रश्न को लेकर जितने भी प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र में आएंगे उसमें भारत पीछे नहीं हटेगा," डॉ प्रेम आनंद मिश्रा ने Sputnik India को बताया।

साथ ही उन्होंने रेखांकित किया, "क्या भारत की विदेश नीति आइडियोलॉजिकल हो चुकी है एक बड़ा प्रश्न चिन्ह है तो चाहे कांग्रेस की सरकार हो या भाजपा की या आने वाले समय में जो भी अन्य सरकार होगी वे व्यवहारवाद को आइडियोलॉजिकल नहीं बनाना चाहती है, वे चाहती हैं कि मुद्दे आधारित समर्थन किया जाए। इसलिए जब हमास हमला करता है तो हम उसकी भी निंदा करें और फिलिस्तीनी मुद्दे को भी समाप्त नहीं कर सकते मात्र इस कारण से कि इज़राइल के साथ हमारे संबंध बेहतर है।"

"भारत का यह बहुत साफ़ विचार है कि व्यवहारवाद जहाँ पर भी होगा समर्थन लेने या देने का तो इज़राइल को आगे भी समर्थन करेंगे लेकिन भारत की फिलिस्तीन को लेकर अंतर्राष्ट्रीय कानून के अंतर्गत दो राज्य सिद्धांत और मानव अधिकार के प्रति जो प्रतिबद्धता है, वह उससे पूरी तरह इनकार नहीं करेंगे," डॉ मिश्रा ने कहा।

दरअसल नई दिल्ली "इज़राइल के साथ शांति से सुरक्षित और मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर रहने वाले एक संप्रभु, स्वतंत्र और व्यवहार्य फिलिस्तीन राज्य की स्थापना के लिए सीधी बातचीत फिर से आरंभ करने" की वकालत करती है।जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 7 अक्टूबर को इज़राइल में किए गए आतंकी कृत्यों के लिए हमास की आलोचना की, वहीं विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट कर दिया कि भारत आतंकवादी हमलों के विरुद्ध खड़ा है, लेकिन इज़राइल-फिलिस्तीन पर उसका रुख अपरिवर्तित रहेगा।

"अंतर्राष्ट्रीय संबंध और व्यवस्था में अनिश्चितता जितनी भी अधिक रहती है, मुख्यतः संघर्ष एक अनिश्चित स्थिति है। उसमें लंबी अवधि के दौरान विदेश नीति कभी-कभी परिस्थितिजन्य हो जाती है। लेकिन प्रतिक्रिया दो तरह की होती है एक तो मुद्दे आधारित और दूसरा समग्र नीति के आधार पर। चूँकि यहाँ स्थिति अनिश्चित है तो भारत यह देखेगी कि समग्र अपेक्षा चाहे वह ग्लोबल साउथ के लीडरशिप के लिहाज से हो या संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय कानून मानने का मामला हो तो भारत नियम आधारित व्यवस्था को नजरअंदाज नहीं करना चाहेगा," डॉ मिश्रा ने बताया।

ऐसे समय में जब हर दिन मायने रखता है, सच है कि नई दिल्ली फ़िलिस्तीनी मुद्दे और दो-राज्य समाधान के समर्थन पर अपने पारंपरिक रुख पर कायम है। वहीं सरकार आतंकवादी हमलों के लिए जीरो टॉलरेंस की नीति के अंतर्गत "इजराइल के साथ खड़ी है।"

"इज़राइल भारत को कई स्तर पर समर्थन करती है क्योंकि भारत की सुरक्षा के सन्दर्भ में चीन, पाकिस्तान और अन्य अनपेक्षित चुनौतियां हैं। इज़राइल से भारत को तकनीक और रक्षा तकनीक मिलती है लेकिन भारत सरकार डिहायफ़नेशन की नीति अपनाती है जिसके अंतर्गत इज़राइल के साथ संबंध अलग होगी और फिलिस्तीन के साथ संबंध अलग होगी, यानी कि दोनों को अलग-अलग देखा जाए," डॉ मिश्रा ने टिप्पणी की।

गौरतलब है कि भारत ने बार बार नागरिक हताहतों से बचने और गाजा पट्टी में संघर्ष में फंसे लोगों को मानवीय सहायता प्रदान करने की आवश्यकता पर जोर दिया है।
Israeli soldiers ride in an armoured vehicle as it moves into positioned close to the Israel's border with the Gaza Strip, in southern Israel on November 16, 2023. - Sputnik भारत, 1920, 17.11.2023
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