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चंद्रयान-4 जैसा मिशन देश की उन्नत तकनीक, प्रगति को दर्शाता है: विशेषज्ञ

भारत अंतरिक्ष में नए नए आयाम स्थापित कर रहा है। मंगलयान, चंद्रयान और आदित्य L1 जैसे मिशनों ने साबित किया है कि भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो किसी भी काम करने में सक्षम है। इसी कड़ी में इसरो चंद्रयान-4 मिशन की तैयारी में जुट गया है।
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इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) ने अब चंद्रयान-4 मिशन पर काम करना शुरू कर दिया है। इस मिशन के तहत चंद्रमा से मिट्टी के नमूने लेकर पृथ्वी पर वापस लाया जाएगा। इसकी सफलता भारत की अंतरिक्ष अन्वेषण में संभावनाओं को विस्तार देगी।
चंद्रयान-4 की सफलता मिट्टी के नमूने पृथ्वी पर वापस लाने की उसकी क्षमता पर निर्भर करेगी। इसरो के अनुसार, इस प्रक्रिया के दौरान लैंडर मॉड्यूल अंतरिक्ष में घूम रहे मॉड्यूल के साथ डॉकिंग भी करेगा, जिसके बाद नमूनों के साथ केंद्रीय मॉड्यूल की वापसी होगी। इस ऑपरेशन में दो लॉन्च वाहन शामिल होंगे, जो मिशन की जटिलता को दर्शाते हैं।
हाल ही में अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (SAC/इसरो) के निदेशक नीलेश देसाई ने पुणे में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि चंद्रयान-4 मिशन में चंद्रमा की सतह से नमूना वापसी पृथ्वी पर लाना शामिल होगा।

“इस मिशन में, लैंडिंग चंद्रयान -3 के समान होगी लेकिन केंद्रीय मॉड्यूल परिक्रमा मॉड्यूल के साथ डॉक करने के बाद वापस आ जाएगा, जो बाद में पृथ्वी के वायुमंडल के पास अलग हो जाएगा और पुनः प्रवेश मॉड्यूल मिट्टी के और चंद्रमा की चट्टान के नमूने के साथ वापस आ जाएगा। यह एक बहुत ही महत्वाकांक्षी मिशन है, उम्मीद है कि अगले पांच से सात वर्षों में हम चंद्रमा की सतह से नमूना लाने की इस चुनौती को पूरा कर लेंगे," उन्होंने कहा।

इसरो द्वारा पूर्व में अंजाम दिए गए सभी अंतरिक्ष मिशनों की तुलना में चंद्रयान-4 मिशन अधिक जटिल होगा। रिपोर्ट के मुताबिक चंद्रयान-3 के रोवर की तुलना में चंद्रयान-4 में अधिक वजन का रोवर चंद्रमा की सतह पर उतारा जाएगा। इसके बाद सटीक लैंडिंग के लिए सही जगह का चुनाव करना भी एक बड़ी चुनौती होगी।
चंद्रयान-4 मिशन की जानकारी सामने आने के बाद Sputnik India ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के भौतिकी एवं खगोल भौतिकी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ मोहम्मद नईमुद्दीन से बात की।
In this photo released by the Indian Space Research Organisation (ISRO), Indian spacecraft Chandrayaan-3, the word for “moon craft” in Sanskrit, lifts off from Sriharikota, India.
उन्होंने बताया कि चंद्रयान-4 मिशन के जरिए चंद्रमा की सतह और उसके वातावरण के बारे में विस्तृत जानकारी इकट्ठी की जाएगी, क्योंकि चंद्रयान-3 चंद्रमा की सतह पर सीमित विश्लेषण कर सका था। चंद्रयान-4 के जरिए लाए गए नमूनों का पृथ्वी पर विस्तृत अध्ययन किया जा सकेगा।

"वैज्ञानिक चंद्रमा की मिट्टी की छोटी-छोटी बारीकियों का पता लगाने के लिए विस्तृत अध्ययन करना चाहते हैं। एक बार जब पृथ्वी पर नमूना आ जाएगा, तो विभिन्न रासायनिक और भौतिक प्रयोगशालाओं में विस्तृत अध्ययन किया जा सकता है, जिसके जरिए नमूनों में मिट्टी की संरचना के साथ साथ पानी, संभावित ऑक्सीजन की उपस्थिति और जीवन का पता लगाया जा सकेगा," मोहम्मद नईमुद्दीन ने कहा।

दिल्ली विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर ने आगे बताया कि पहले भी चंद्रमा से नमूने से पृथ्वी पर लाए गए हैं, लेकिन भारत चंद्रयान-4 की मदद से चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव से नमूने इकट्ठे करेगा, जहां का किसी भी देश ने अभी तक कोई अध्ययन नहीं किया है। पानी के लिए सबसे संभावित स्थान चंद्रमा के दक्षिणी भाग को ही बताया जाता है।

"रूसी और अमेरिकी निश्चित रूप से मिट्टी के नमूने वापस लाए हैं, लेकिन जिस क्षेत्र को हमने कवर नहीं किया है वह चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव भाग है। यह उम्मीद की जाती है कि यदि चंद्रमा पर कोई जीवन या कोई पानी मौजूद होता, तो वह हिस्सा सबसे संभावित स्थान होगा," उन्होंने कहा।

Chandrayaan3: Pragyan rover starts rolling out
चुनौतियों के बारे में बात किए जाने पर भौतिकी एवं खगोल भौतिकी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ मोहम्मद नईमुद्दीन आगे बताते हैं कि चंद्रयान-4 के सामने ज्यादातर चुनौतियां चंद्रयान-3 जैसी ही होंगी, जैसे 14 दिन की रोशनी और फिर 14 दिन का अंधेरा। इसके लिए चंद्र दिवस की शुरुआत में भारत को वहां रोवर पहुंचाना होगा ताकि मिशन में फिट होने वाले सौर पैनलों से ज्यादा से ज्यादा ऊर्जा प्राप्त की जा सके।

"इस मिशन को मिट्टी के नमूनों को वापस लाने के अतिरिक्त, चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करना भी एक मुख्य चुनौती होगी। इसके अलावा रोवर चंद्रमा पर उतरकर मिट्टी के नमूने इकट्ठे करेगा और फिर चंद्रमा की सतह से रॉकेट की मदद से रोवर वापस पृथ्वी की ओर रवाना होगा। यह पुरी प्रक्रिया बहुत चुनौतीपूर्ण होगी," प्रोफेसर मोहम्मद नईमुद्दीन ने बताया।

उन्होंने Sputnik India को बताया कि वैज्ञानिकों को चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण बल पर भी काबू पाना होगा, क्योंकि "आपको मूल रूप से चंद्रमा की सतह से प्रक्षेपण करना होगा और जैसा हम सभी जानते हैं कि चंद्रमा पर पृथ्वी का 160 गुरुत्वाकर्षण है। इसलिए इस नई मैन्युवर को डिजाइन करते समय उन बातों का ध्यान रखना होगा।"
इस तरह के मिशनों की आवश्यकता पर जोर देते हुए डॉ मोहम्मद नईमुद्दीन ने आगे बताया कि इस तरह के मिशनों के दो पहलू हैं, पहला वैज्ञानिक और दूसरा राजनीतिक और यह मिशन किसी भी देश की उन्नत तकनीक, प्रगति को दर्शाता है। उनके अनुसार, चंद्रयान-3 के साथ भारत ने कुछ ऐसा किया जो उन उन्नत देशों में से किसी ने नहीं किया।

"चंद्रयान-3 की सफलता ने यह दर्शाया कि आपके पास किस तरह की तकनीक है। ऐसी तकनीकों का उपयोग कई अन्य क्षेत्रों में भी किया जाता है, जिससे देश को आर्थिक लाभ होता है। सभी देश इस तरह की चीजों के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। तो यह अपनी राजनीतिक और सैन्य और तकनीकी शक्ति दिखाने का एक और तरीका है, और मेरी राय में अंतरिक्ष अभियानों के माध्यम से राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य महत्वाकांक्षाओं को फिर से सक्रिय कर दिया गया है," डॉ नईमुद्दीन ने कहा।

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