भारतीय समाचार एजेंसी के मुताबिक इसका निर्णय हाल ही में रक्षा मंत्रालय की एक उच्चस्तरीय बैठक में लिया गया, इन राइफलों को आतंकवाद विरोधी अभियानों के साथ साथ अन्य जगह तैनात जवानों को दिया जाएगा।
इससे पहले भी सेना भारत 70,000 से अधिक सिग सॉयर असॉल्ट राइफलों को ले चुका है, जिनका इस्तेमाल सेना द्वारा लद्दाख सेक्टर और कश्मीर घाटी में किया जा रहा है। 7.62 x 51 मिमी कैलिबर की 72,400 SiG 716 राइफलें फरवरी 2019 में खरीदी गई, जिनमें से 66400 सेना में, 4000 वायुसेना को और 2000 भारतीय नौसेना के लिए थी।
इसके अलावा दुनिया भर में मशहूर रूसी राइफल अमेठी के पास आयुध फैक्ट्री में दो कंपनियों के संयुक्त उद्यम से AK-203 तैयार की जा रही है, जो सेना को जल्द ही मिलने वाली है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय रक्षा बलों अपनी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए हाल ही में बड़ी संख्या में रूसी एके-103 भी हासिल की हैं।
Sputnik ने यह जानने की कोशिश की कि सिग सॉयर राइफल कैसी हैं और यह भारतीय सेना के लिए विभिन्न अभियानों मे कितनी कारगर है?
सिग सॉयर राइफल क्या है?
सिग 716 असॉल्ट राइफल उच्च कैलिबर (7.62 x 51 मिमी) की राइफल होने के कारण, INSAS (इंडियन स्मॉल आर्म्स सिस्टम) राइफल (5.56 x 51 मिमी कैलिबर) की तुलना में लंबी प्रभावी रेंज के साथ अधिक घातक है। इसके अलावा राइफल (7.62 x 39 मिमी) का भी उपयोग किया जाता है।
इसमें M1913 सैन्य मानक रेल भी मिलती है, जिस पर आवश्यकता के अनुसार नाइट विजन डिवाइस, टॉर्च या कोई अन्य उपकरण लगाया जा सकता है। SiG 716 का निर्माण अमेरिकी कंपनी सिग सॉयर द्वारा किया जाता है, इसका इस्तेमाल उज्बेकिस्तान के साथ 'डस्टलिक' अभ्यास में भी किया गया था।
सिग सॉयर कैसे काम करती है?
SiG 716 राइफल में शॉर्ट-स्ट्रोक पिस्टन-चालित ऑपरेटिंग सिस्टम है, जिसकी वजह से चलाने वाले को कम झटका लगता है, इसके परिणामस्वरूप अन्य राइफलों की तुलना में यह अधिक सटीकता से काम करती है।
इसके एक शॉर्ट-स्ट्रोक पुशरोड गैस एक्शन 7.62 मिमी ऑटोलोडर है जो SR25 पैटर्न के साथ संगत है। इसमें 16-इंच बैरल, एम-एलओके हैंडगार्ड और छह-स्थिति वाला टेलीस्कोपिंग स्टॉक है। SiG 716 की फायरिंग रेंज 550 मीटर है और आग की दर 600-650 राउंड प्रति मिनट है।
SiG 716 में अधिक सटीकता और 600 मीटर की दूरी से मारने की क्षमता है, इसके अलावा SiG 716 के पहले बैच को कथित तौर पर देसी तरीके से संशोधित किया गया था। इन राइफलों के साथ ऑप्टिकल डिवाइस नहीं था।
सेना ने इस पर अपनी मौजूदा दृष्टि प्रणालियों को एकीकृत करके इस कमी को दूर किया। इसके अलावा, सेना ने इसे बेहतर पकड़ के लिए एक अतिरिक्त हैंडल भी दिया।
बताया जाता है कि सेना ने अमेरिकी निर्मित गोला-बारूद को स्थानीय रूप से निर्मित 7.62 मीडियम मशीन गन की गोलियों से बदल दिया था क्योंकि उनकी कीमत कहीं अधिक होती है।
बता दें कि इसका इस्तेमाल भारत,मेक्सिको, पेरू, स्विट्जरलैंड और यूक्रेन द्वारा किया जाता है।