"कर्नाटक के तुमुकुरु में HAL द्वारा फैक्ट्री भी खोला गया है जहां हम बड़े आकार का हेलीकॉप्टर स्वयं बनाएंगे। अगले 8 से 10 सालों में जब भी हमारा बड़ा हेलीकॉप्टर बनकर तैयार होगा हम वही उपयोग में लाएंगे, आगे अब अमेरिकी चिनूक की आवश्यकता नहीं है, और इस निर्णय से हमारी परिचालन तैयारी में किसी भी प्रकार का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा," एयर मार्शल अनिल चोपड़ा (सेवानिवृत्त) भारत के इस निर्णय पर अपना विचार रखते हुए कहते हैं।
"भारत विश्व में बड़ी शक्तियों में से एक हैं, हमारी अर्थव्यवस्था 5वीं स्थान पर है और आने वाले समय में तीसरे स्थान पर आ जाएगी। हम एक ग्लोबल पावर हैं और जो भी रक्षा क्षेत्र में सामग्री की आवश्यकता है वह हम देश में ही बनाएं। अगर देश को बड़ी शक्ति बनाना है तो भारत को उत्पादन क्षमता और बढ़ाने की आवश्यकता है," एयर मार्शल अनिल चोपड़ा कहते हैं।
"हमने एलसीए जहाज बना दिया और उसके नए वेरिएन्ट बना रहे हैं, साथ ही AMCA और ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट में C-295 भारत में बना रहे हैं। इसके साथ आने वाले समय में हम एयरलाइनर भी बनाएंगे," चोपड़ा जोर देकर कहते हैं।
क्या MI-26 भारतीय वायु सेना के लिए लाभप्रद है?
"रूसी MI-26 विश्व का सबसे बड़ा हेलीकॉप्टर है और भारतीय वायु सेना ने इसका उपयोग बहुत किया है। अभी जितने भी MI-26 हेलिकाप्टर भारत के पास हैं उनकी लाइफ अभी बहुत बड़ी है। अगर इसे थोड़ा अपग्रेड कर देते हैं तो यह और भी प्रभावशाली बन जाएगा। लेह लद्दाख में MI-26 भारतीय वायु सेना के लिए बहुत कार्य किया है अगर थोड़े ही खर्च में इसका रखरखाव कार्य हो जाता है तो भारतीय वायु सेना के लिए बहुत लाभप्रद सिद्ध होगा, साथ ही भारतीय वायु सेना के बेड़े को और भी सबलता प्रदान करेगा," चोपड़ा मानते हैं।